विवेकानंद जयंती : आज की युवा पीढ़ी एक भ्रम में
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]परम पूज्य साध्वी शाश्वत पूर्णा श्री जी ( वीरायतन , राजगीर )[/mkd_highlight]
12 जनवरी का दिन भारत मे स्वामी विवेकानंद की जयंती के के रूप में मनाया जाता है। यह वह व्यक्ति हैं जिसने युवा अवस्था का सही मायने में आदर्श स्थापित किया । अपनी उर्जा का ज्ञान उपार्जन एवं संस्कृति के प्रचार में सदुपयोग करके एक मिसाल कायम की । सफलता , अनुकूलताओं मे बस जाने वालों को नहीं परंतु प्रतिकूलताओं से गले मिलने जो तत्पर है उसे पसंद करती है । यह संदेश अपने जीवन द्वारा विवेकानंद जी ने विश्व को दिया। आज की युवा पीढ़ी एक भ्रम में जी रही है ।अपने मानसिक मायाजाल और भविष्य की रंगीन अपेक्षाओं को वर्तमान समझ कर उसी को वास्तविक मान कर जी रही है। यही कारण है वह डरा हुआ निराश हताश कमजोर युवा वर्ग कोई सक्षम इतिहास नहीं लिख पा रहा।
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन का एक प्रसंग है विवेकानंद जी एक बार एक जंगल के बीच से निकलने वाले रास्ते पर चल रहे थे। उस जंगल में कोई जंगली पशु तो नहीं थे परंतु बंदरों का निवास था जब वे चल रहे थे एक बंदर उनकी तरफ अजीब नज़रों से देखने लगा जैसे कि वह उन्हें मारना चाहता हो विवेकानंद जी ने अपने चलने की गति बढ़ाई वह बंदर भी अपने साथी के साथ उनके पीछे-पीछे तेज गति से आने लगा अब विवेकानंद जी भयभीत होकर दौड़ने लगे और पीछे देखा अब पूरा बंदरों का झुंड उनके पीछे दौड़ रहा है सामना करना चाहिए यह सोच कर विवेकानंद जी मुड़े और बंदरों के झुंड की तरफ दौड़ने लगे आश्चर्य सारे बंदर उन्हें अपनी तरफ आता देख इधर उधर हो गए वह बंदर जो अभी तक डरा रहे थे वह सारे भाग गए दूर चले गए डर कर कहीं छुप गए। यह प्रसंग बहुत कुछ कह रहा है। समस्या मनुष्य को तोड़ने के लिए नहीं बल्कि तैयार करने के लिए आती है और ज्यादा बेहतर बनाने के लिए आती है। उबलते हुए पानी में आलू डाला जाए और 10 मिनट तक उबाला जाए तो जो आलू पहले कड़क था वह नरम हो जाता है लेकिन उबलते हुए पानी में अगर चाय पत्ती डाली जाए और उसे 2 मिनट तक उबाला जाए तो क्या होगा ? चाय पत्ती अपना रंग अपनी सुगंध अपना स्वाद इस प्रतिकूल उबलते पानी को देखकर निखर उठेगी ।वह उबलता पानी स्वादिष्ट चाय बन जाएगी । जीवन में भी जो प्रतिकूलता को अवसर समझकर स्वीकार कर लेता है उसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है । लेकिन जो डर जाता है वह नरम होकर मिट जाता है।
आज छोटी-छोटी बातों पर युवा आत्महत्या कर लेते हैं। किस प्रकार की धारणा में जी रही है युवा पीढ़ी ? अगर व्यक्ति चाहे तब भी अपने शरीर को इच्छा अनुरूप नहीं चला सकता व्यक्ति चाहे तब भी सिर के पीछे आंख नहीं हो सकती तो क्या इस बात को लेकर वह दुखी होगा नहीं होगा । इन कमियों को ,अपूर्णता को, कमजोरी को स्वीकार करते हैं जानते हैं कि यह संभव नहीं तो जैसा है वैसा ही स्वीकार करते हैं। और हजारों कमियों कमजोरियों के साथ खुशी पूर्ण जीवन जीते हैं।
तो फिर आसपास की अपूर्ण व्यवस्था, प्रतिकूल संयोग, प्रतिकूल व्यक्ति के साथ क्यों खुश नहीं रह सकते। क्योंकि व्यक्ति स्वयं को नहीं दुनिया को बदलना चाहता है इसी कारण से वह प्रत्येक प्रकार की नकारात्मक भावना जैसे अपूर्णता, द्वेष, उद्वेग के अंधकार से घीरा रहता है। जो स्वयं पर काम करता है स्वयं को पूर्ण बनाने का निरंतर प्रयास करता है वही व्यक्ति बड़ी से बड़ी मुश्किल से बाहर निकल कर सफल होता है। व्यक्ति को अपने विचारों को नकारात्मकता से बचाने के लिए सर्वप्रथम अपेक्षाओं को कम से कम करना चाहिए हो सके तो निरपेक्ष बनने का प्रयत्न करना चाहिए जिससे किसी भी परिस्थिति में मन विचलित ना हो दूसरा जीवन का प्रत्येक क्षण हजारों संभावनाओं के साथ जिएं जिससे मन हमेशा सजग और बदलाव के लिए तैयार रहे। तीसरा आने वाली प्रत्येक चुनौती एवं परिस्थिति कुछ शुभ मान लेने के लिए है । चाहे जो समक्ष हैं वह दुखदाई, अशुभ दिख रहा है परंतु फल शुभ ही होगा यह हम विश्वास रखें। आज के दिन इस कलम के माध्यम से युवा पीढ़ी को एकमात्र संदेश देना चाहती हूं आपकी चाहत और अपेक्षा के चश्मे से इस दुनिया को ना देखो परंतु वास्तविकता के स्वीकार की आंखों से देखते हुए चलोगे तो चाहे मार्ग पर पत्थर हो कांटे हो आप जरुर सफलता प्राप्त करोगे। जीवन अमूल्य है और हम जीवंत हैं उस से बढ़कर और कोई खबर हमें संतुष्ट नहीं कर सकती। युवा पीढ़ी के आदर्श भारतीय संस्कृति को विदेश में फैलाने वाले नई दिशा प्रदान करने वाले विवेकानंद जी की जन्म जयंती पर सभी को आशीर्वाद और शुभेक्षा के साथ अपने जीवन की ज्योति से अंधकार का नाश कर इस धरा को प्रकाशित करते रहे।