पढाने वाले शिक्षक ही नहीं बिगाडते है बोर्ड का रिजल्ट
– सरकार की नजरें इधर भी हो तो बदल सकती है व्यवस्था
– दक्षता आंकलन परीक्षा के बाद शिक्षकों में दिख रही नाराजगी
जोरावर सिंह
मध्यप्रदेश। प्रदेश में बीते तीन और चार जनवरी को दक्षता आंकलन की परीक्षा आयोजित की गई। इसमें उन शिक्षकों को शामिल किया गया था। जिनके स्कूलों के परीक्षा परिणाम कमजोर रहे थे। इस परीक्षा से शिक्षकों में नाराजगी है। शिक्षक संगठनों का यह भी कहना है कि प्रदेश में हजारों शिक्षक पद पर पदस्थ होने के बाद अन्य दपफतरों में काम कर रहे है। उन्हें भी स्कूलों में भेजा जाना चाहिए, तभी जाकर स्थितियां सुधरेंगी।
गौरतलब है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढाई को बेहतर बनाने और बेहतर परीक्षा परिणाम लाने के लिए सरकार सख्त हो रही है। इसके चलते सरकार ने पफरमान जारी कर दिया था कि जिन स्कूलों की बोर्ड कक्षाओं का परीक्षा परिणाम 40 प्रतिशत से कम रहा है। उन शिक्षकों को दक्षता आंकलन परीक्षा देना होगी। यह परीक्षा 3 और 4 जनवरी को ही प्रदेश भर में आयोजित की जा चुकी है। इसमें प्रदेश में करीब छह हजार से अधिक शिक्षकों की परीक्षा आयोजित की गई थी। इसमें कई शिक्षकों ने परीक्षा नहीं दी अब उनके लिए फिर से परीक्षा का आयोजन किया जाएगा।
क्या इन्हें न माना जाए दोषी
प्रदेश सरकार के दक्षता आंकलन परीक्षा का शिक्षक संगठन यूं ही विरोध नही कर रहे है। उसकी कई वजहें है। पहली बडी वजह यह है कि प्रदेश में करीब 12 हजार शिक्षक अन्य विभागों में जिनकी सियासी पहुंच है। वह प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे है, जबकि प्रदेश में करीब 18 हजार स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे है और सैकडों स्कूलों में प्राचार्य और हेडमास्टरों की कमी है। प्रभारियों के भरोसे ही स्कूलों का संचालन हो रहा है। जब भी सरकारी स्कूल खुलते है। नया शिक्षा सत्र शुरू होता है तो प्रति नियुक्ति पर अन्य विभागों में काम करने वाले शिक्षकों को वापस स्कूलों में भेजे जाने की बात होती है पर भेजा नहीं जाता है।
मास्साब बने हुए है बाबू
प्रदेश के कई विभागों में ऐसे शिक्षक जो सियासी पहुंच रखते है, वह प्रतिनियुक्ति पर अन्य विभागों में डयूटी लगवा लेते हैं। कई अन्य शिक्षक शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में एवं सडकों के किनारे के गांव जहां शहर से बाइक से या पिफर आवागमन के साधन ज्यादा बेहतर हों, वहां टिक जाते है, ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षकों कमी के कारण कई विषयों की पढाई प्रभावित होती है। इसका खामियाजा उन शिक्षकों उठाना पडता है, जो शिक्षकों की कमी के बावजूद विद्या अध्ययन कराने में लगे हुए है।
जबकि जो शिक्षक पद पर पदस्थ होने के बाद भी सालों से अपने स्कूल नहीं गए है। वह इस जिम्मेदारी से बचे हुए है। अब बडा सवाल यह है कि बिना पहुंच वाले शिक्षकों की तो एक ओर दक्षता परीक्षा ली जा रही है, जो शिक्षक दपफतरों में काम रहे। वह पढाने में कितने दक्ष इसका आंकलन कौन करेगा। क्यो बोर्ड कक्षाओं का रिजल्ट सुधारने की जिम्मेदारी उनकी नहीं है। चूंकि अब शिक्षकों को जबरन रिटायर किया जा रहा है तो शिक्षकों में खासी नाराजगी देखी जा रही है। कई संगठनों ने आवाज उठाई है। दफतरों में काम करने वाले शिक्षकों को उनके मूल विभाग में भेजा जाए, इससे पढाई में सुधार हो सके।