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नगरीय निकाय चुनाव मध्यप्रदेश 2021 : कोरे वादों से निकाय चुनावों में नहीं चलेगा काम

 

 

-कोरे वादों से निकाय चुनावों में नहीं चलेगा काम
-धरातल पर विकास का तैयार करना होगा मसौदा
-सुविधाओं के टोटे में जीवन यापन कर रहे है शहर के लोग

 

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]जोरावर सिंह[/mkd_highlight]

 

 

 

 

मध्यप्रदेश। प्रदेश में सीहोर जिले की सीहोर नगर पालिका सबसे बडी नगर पालिका है, इस शहर में एक लाख से अधिक आबादी निवास करती है। करीब 84 हजार से अधिक मतदाता है, इसमें युवा मतदाताओं की इस बार के निकाय चुनावों में बडी भूमिका रहेगीय अब जनता में जागरूकता बढी तो कोरे वादों से काम नहीं चलेगा। धरातल पर विकास का मसौदा तैयार करना होगा।
गौर तलब है कि सीहोर नगर पालिका क्षेत्र का विस्तार पांच सालों में हुआ है कभी छावनी, कस्बा, गंज , मंडी और बढियाखेडी क्षेत्र में सिमटी नगर पालिका के तहत क्रिसेट होटल,सैकडाखेडी मार्ग, हाउसिंग बोर्ड कालोनी क्षेत्र मंडी औद्योगिक क्षेत्र, कस्बा इन्दौर नाकाए गणेश मंदिर के पीछे तक नई कालोनियां विकसित हो गई है, अब इन क्षेत्रों के मतदाताओं की भी इस बार के नगर पालिका चुनावों में निर्णायक भूमिका रहेगी। नगर पालिका में अधिकांश तौर पर कांग्रेस का ज्यादा कब्जा रहा है। पर अब दो बार से लगातार भाजपा के कब्जे में हैय सियासत इस बार पिफर बदली हैए जिसका असर दिखाई भी दे रहा है।

— सुविधाओं के लिहाज से शहर

सुविधाओं के लिहाज से शहर की बात की जाए तो शहर में पीने के पानी की किल्लत है, गर्मी के दिनों में शहर के अधिकांश वार्डो में टैंकरों से पीने का पानी सप्लाई होता हैय इस कार्यकाल में सीवेज लाइन डाली गई है पर 35 वार्डो में से करीब आधा दर्जन से अधिक वार्डों में सीवेज लाईन नहीं डाली जा सकी हैय शहर में पार्को के लिहाज से केवल गांधी पार्क को छोड दिया जाए तो अन्य पार्को में सुधार की गुंजाइश है, शहर के प्रमुख बाजार को छोडकर शहर के अन्य क्षेत्रों में प्रकाश की समुचित व्यवस्था नहीं हैय लाइब्रेरियां प्रत्येक वार्ड में स्थापित किये जाने की बात हर चुनाव में होती हैए धरातल पर नहीं आई है। रोजगार के लिए नगर पालिका शहर में कोई बडा बाजार खडा नहीं कर पाई हैय बस स्टैंड स्थित रैन बसेरा का भी सदुपयोग नहीं हो पा रहा हैय थोडी बहुत चमक दमक टाउन हाल में देखी जा सकती हैए सडकों के लिए भूमिपूजन तो हो रहे है, निर्माण कार्य कई सडकों का अधूरा है।

— नहीं मिल पा रहा है लाभ

नगर पालिका मुख्य काम सापफ सफाई व्यवस्था, शहर की सडकें, चौक चौराहों का सौंदर्यीकरण, बिजली की व्यवस्थाए शहर में पार्को का रख रखाव प्रमुख काम है। यह व्यवस्थित रहे और शहर के निवासियों को रोजगार के संसाधन उपल्ब्ध कराये जाएंए अब हालात यह है कि शहर में प्रमुख सडकों की हालत भी ठीक नहीं है, स्वच्छता के लिए कचरा तो डोर टू डोर एकत्रित किया जा रहा हैय नालियों की सापफ सपफाई ठीक तरह से नहीं होती हैय शहर में पिछडे इलाके है, जहां चौक चौराहों पर प्रकाश की सही व्यवस्था नहीं है, पूरे शहर में पीने के पानी की सप्लाई साल भर नहीं हो पाती हैए जबकि शहर में जमोनिया जलाशय, भगवान पुरा जलाशय, काहिरी डेम से पानी की सप्लाई शहर को होती हैय प्रबंधन में कहां कमी है इससे शहर के लोगों को इन जल स्रोतों का लाभ शहर के लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

— पानी की निकासी भी बनी समस्या

शहर में बीते कुछ वर्षों से आबादी में लगातार बढोत्तरी हो रही है। अब सीहोर शहर की आबादी करीब सवा लाख के पार हो गई है। शहर में बीते पांच वर्षो में तीन दर्जन से अधिक कालोनियां विकसित हुई है। इस कारण से शहर में बरसात के पानी की निकासी में अवरोध उत्पन्न हुआ है। इसका नतीजा है कि बरसात में जिस दिन भी दो से तीन इंच बरसात लगातार हो जाती है, उस दिन शहर को बाढ की स्थिति का सामना करना पडता है। इससे एक दर्जन मुहल्लों में पानी भर जाता है, यहां के रहवासियों को आर्थिक नुकसान का सामना करना होता है। अब तो शहर के प्रमुख बाजार को भी इसका सामना करना पडता है। इससे कारोबारियों को भी नुकसान होता है। इसकी भरपाई की मांगे उठती रहती है। इसलिए इस बार निकाय चुनाव में शहर में बरसात के पानी निकासी की समस्या का समाधान भी एक नया मुददा बनेगा।

— क्या बोलती है सियासत

सीहोर शहर की सियासत में यूं तो कभी कांग्रेस का दबदबा माना जाता था, पर वर्तमान भाजपा के विधायक सुदेश राय जो कभी कांग्रेस में थे, उनके भाजपा में शामिल होने के बाद से कांग्रेस अपना दबदबा बरकरार नहीं रख पाई, लगातार दो बार से कांग्रेस को निकाय चुनावों में शिकस्त का सामना करना पडा। पर इस बार प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आई थी, इसके बाद से कांग्रेस थोडी उर्जा का संचार हुआ है। भाजपा एक बार पिफर प्रदेश में सत्ता में लौटी है ऐसे में इसका प्रभाव शहर की सियासत में देखा जा रहा है। शहर की सियासत में कांग्रेस यह भी मायने रखता है कि वर्तमान में तो कांग्रेस के कददावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक अभी तो भाजपा में पूरी उर्जा के साथ जुटे हुए दिखाई नहीं दे रहे है, उनका रुख क्या होगा यह तो निकाय चुनावों में ही पता चलेगा, पर कांग्रेस के लिहाज से श्री सिंधिया के समर्थकों की भरपाई करना भी कांग्रेस के लिए चुनोती होगा।

— डेमेज कंट्रोल भी जरूरी

सीहोर के निकाय चुनावों में अभी तक मुख्य भूमिका में भाजपा और कांग्रेस में ही टक्कर होती रही है, कभी कांग्रेस निकाय चुनाव में जीत हासिल करती है तो कभी भाजपा पर भाजपा निकाय चुनावों में अभी तक अपनी पार्टी में होने वाले डेमेज को कंट?ोल कर लेती है, कांग्रेस डेमेज कंट?ोल करने में सपफल नहीं हो पाती है; पिछले निकाय चुनाव की ही बात करें तो कांग्रेस ने राहुल यादव को निकाय चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था, पर कांग्रेस के पूर्व विधायक रहे शंकरलाल साबू के सुपुत्र सुरेश साबू की पत्नी भी निकाय चुनाव के मैदान में थी, शायद इसी का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पडा था कि कांग्रेस को सीहोर नगर पालिका में हार का सामना करना पडा था। कांग्रेस के लिहाज से इस बार के निकाय चुनाव में डेमेज कंट?ोल करना भी एक बडी चुनौती रहेगी।

— भाजपा और कांग्रेस के दावेदार

निकाय चुनाव भले ही दो महीने आगे खिसक गए है, पर निकाय चुनावों में अध्यक्ष पद की दावेदारी करने वाले मैदान संभाले हुए है, वह सक्रियता बनाए हुए है, इस बार भाजपा में करीब चार उम्मीदवार जो शहर में अपनी पकड रखते है, वह दावेदार माने जा रहे है। वहीं शहर के युवा नेता गौरव सन्नी महाजन के समर्थक भी इस बार अलग रूप में नजर आ रहे है। ऐसे में भाजपा किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी। यह तो निकाय चुनावों में ही सामने आएगा, पर अभी सियासत में चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि इस समय नगर पालिका पर भाजपा का कब्जा है और नगर पालिका द्वारा बीते दो तीन महीने से शहर में लगातार विकास कार्यो की आधार शिला रखी जा रही है; इसका लाभ उसे कितना मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा। वहीं कांग्रेस में भी निकाय चुनावों के लिए दो से तीन दावेदार बताए जा रहे है, इस बार दोनों ही दलों में पार्टी के साथ साथ दावेदारों की व्यक्तिगत छवि की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

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