UP POLITICS : उत्तर प्रदेश में पक सकती है क्षेत्रीय दलों के गठबंधन की खिचडी
– औवेसी और राजभर की गलबहियां खिलाएंगी कौन सा गुल
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा चुनावों के लिए अभी से सियासी दल अपनी चाले चलने लगे है शह और मात का खेल शुरू हो गया है। इसका आगाज आमआदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा चुनाव लडने की घोषणा करके कर दिया है, वहीं बिहार में मिली सपफलता से गदगद औवेसी भी यूपी कूच कर आए है। अब सियासी खेल अभी से दिलचस्प होने लगा है। हाल ही में औवेसी और राजभर भी गले मिले है। इसके मायने अलग अलग तरीके से निकाले जाने लगे है।
गौरतलब है कि एआईआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी छोटे.छोटे दलों को मिलाकर बड़ा गठबंधन बनाने की जुगत में हैं। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर की लखनऊ में मुलाकात हुई और सपा से अलग होकर पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव की तारीफ भी ओवैसी ने की। इससे यूपी की सियासत में नई हलचल शुरू हो गई हैय यदि उत्तर प्रदेश की सियासत में नया गठबंधन सामने आता है तो यह बडे दलों के वोटों में सेंध लगा सकते है। इससे विधान सभा चुनावों के परिणाम भी चौकाने वाले हो सकते है।
टूट चुका है गठबंधन
उत्त्तर प्रदेश में सत्तारूढ भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही बडी पार्टियां है जिनके पास अपना कैडर वोट हैय भाजपा को चुनौती देने के लिए अपने गिले शिकवे भुलाकर समाज वादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ थाए गठबंधन ने भाजपा को कडी चुनौती भी दी और लोकसभा में सीटे जीतने में भी सफल रहा है। पर गठबंधन ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकाए दोनों ही दल अभी अलग है।
लोगों को किया है आर्कषित
उत्तर प्रदेश की सियासत में सत्ताधारी दलों के नेताओं के अलावा पूर्व सीएम मायावती, अखिलेश यादव की गरीब और दलित पिछडे समाज में एक अलग पहचान है, लेकिन कुछ समय से आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने जब से उत्तर प्रदेश के मुददों को उठाना शुरू किया है तभी से वह आमजनों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब होते दिख रहे हैय उनकी यह कामयाबी उत्तर प्रदेश में मजबूत माने जाने वाले दलों की टेंशन बढा सकती है।
बन सकती है सामूहिक ताकत
भारत की सियासत में उत्तर प्रदेश की भूमिका है यही वजह है कि यहा राष्टीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दल बनते बिगडते रहते है। एक दर्जन से अधिक सियासी दल यहा पर विधान सभा चुनावों में मैदान में उतरते हैय क्षेत्रीय दल जिस क्षेत्र में अपना प्रभाव रखते है वहां यातो वह विधान सभा में जीत दर्ज करते हैए या पिफर चुनाव हराने जिताने में अपनी भूमिका निभाते है यदि क्षेत्रीय दलों को कोई गठबंधन सामने आता है तो उत्त्र प्रदेश में उनके हाथ कितनी सपफलता लगेगी यह तो अभी नहीं कहा जा सकता हैय पर सत्ता की मास्टर चाबी अपने पास रख सकता है।