मध्यप्रदेश की सियासतः घर जल गया है अपने ही चिराग से
उपचुनावों में हुए घाल मेल आने लगा सामने
किसी को मंत्री पद का इंतजार तो हार की हताशा से उबरने के प्रयास
मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश् को यूं ही अजब गजब का प्रदेश नहीं कहा जाता है, यहां की सियासत को समझ पाना इतना भी आसान नहीं है। कौन किसके साथ दिखता है और है किसके साथ कुछ पता नहीं चलता है। यही कारण है कि यहां चुनाव के परिणाम चौकाने वाले ही आते है। मध्य प्रदेश में अभी हाल में ही उपचुनाव हुए थे, चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे थे और कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर गया। भाजपा प्रदेश में सरकार चला रही है और कांग्रेस मंथन कर रही है। उनके मंथन से क्या निकलेगा यह तो कहना अभी मुश्किल है पर जो कुछ सियासी गलियारों से निकलकर सामने आ रहा है, उससे तो यही लगता है कि घर जल गया है अपने ही चराग से।
प्रदेश की सियासत में क्या निकलकर आया है इस पर गौर फरमाए तो पहला आडियो कभी कांग्रेस सरकार मंत्री रहे गोविंद सिंह राजपूत और अब वह भाजपा के नेता है उनकी जीत पर कांग्रेस के एक कददार नेता बधाई दे रहे है। उनकी बधाई का आडियो प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है। आडियाे की सत्यता कितनी है यह तो जांच का विषय है पर इस आडियो ने मध्यप्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। दूसरा वीडियो जो सुर्खियों में बना हुआ है इसमें कांग्रेस सरकार मे मंत्री रही इमरती देबी जो भाजपा की नेता भर है। उप चुनाव तो वह हार गई है उस वीडियों में भी कुछ लोग उन्हें अपशब्द कह रहे है।
समझने लगी है जनता
2018 के आम चुनावों में जिन विधान सभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार हजारों वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हीं सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार हजारों वोटों से चुनाव हार गए हैए केवल 15 से 20 महीने के बीच मतदाताओं का हदय परिवर्तन कैसे हुआ, अब जनता के सामने कुछ बाते खुलकर सामने आने लगी है तो जनता भी समझने लगी है। कब कौन सी पार्टी अंदर खाने किस पार्टी के लिए मददगार बनती है तो वहीं कई नेता किस पार्टी के है किस पार्टी के पदाधिकारी है मदद किस नेता और किस पार्टी की कौन से चुनाव में करनी है। सब कुछ सियासत में तय होता है। खेल तो बस इसलिए रचा जाता है कि जनता को दिखाना है, ताकि जनता कुछ पल के लिए खुश हो ले।
तो सब मिला जुला है
उल्लेखनीय है चुनाव कोई सा भी हो इसमें भीतरघात और भीतर घातियों दोनों का ही बडा ही महत्वपूर्ण् योगदान और स्थान होता है। चुनाव के परिणाम के बाद क्या होता है, यह अलग बात है पर मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों में भाजपा के उम्मीदवारों के साथ कई और स्थानों पर भी कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता पिछले दरवाजे है मददगार बने होगे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उपचुनाव एक तरफा ही था। एक तरफ सियासत रही और एक तरफ जनता। पर उपचुनाव आम जनता को भी कई सबक दे गया है। पर आम जनता कितना सबक लेंगे यह तो वक्त बताएगा।