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किसान आंदोलन : किसानों की सत्ता से तकरार कोई नई बात नहीं,पहले भी हुए आंदोलन

 

दिल्ली। किसान सडकों आन्दोलित है कहीं कम कहीं ज्यादा पर किसान अपने अपने तरीके से विरोध कर रहे हैं; यूं तो किसानों की सत्ता से तकरार कोई नहीं बात नहीं है; किसान आन्दोलन आजादी के पहले भी हुए जब अंग्रेज सत्ता में थे, आजादी के बाद भी किसानों के आन्दोलन हो रहे है, पर आजादी के बाद कई आन्दोलन हुए उसमें कुछ सपफल हुए तो कुछ असपफल हो गए इस बार भी किसान आन्दोलन में किसानों ने चारों तरपफ से दिल्ली को घेर लिया है, वह केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कानूनों का विरोध कर है अब लब्बोलुआब यह है किसान अपनी मांग पर अडे हुए है; किसानों की आवाज पहले कहीं ज्यादा बुलंद हो रही है इसे किसानों की जागरूकता कहा जाए या पिफर समय की मांग पर अब इस आन्दोलन से देश की सियासत पर क्या असर पडेगा इसके मायने भी तलाशे जा रहे है।

गौरतलब है कि जब केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के लिए तीन कानून लाए गए। तभी से किसान इनका विरोध कर रहे थे, सबसे पहले हरियाणा और पंजाब से किसानों की आवाज बुलंद होना शुरू हुई और बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश सहित दक्षिणके राज्यों तक इसकी धमक दिखाई देने लगी । जब राज्यों में किसानों की बात नहीं बनी तो किसानों ने दिल्ली कूच कर दिया; तब माना जा रहा था कि हमेशा की तरह से किसानों का आन्दोलन दिल्ली में पहुंचने के बाद आठ पन्द्रह दिन में ठंडा हो जाएगा। और किसान संगठन सहित किसान अपने अपने घर लौट जाएंगे।

-किसानों को रोकने के प्रयास

इस समय कोरोना काल चल रहा है और भीड एकत्रित होने से कोरोना पफैलने का भी खतरा भी अधिक है शायद सरकार की भी यही मंशा रही हो, इसलिए किसानों को आने से रोकने के लिए सरकार ने मार्गों पर बैरीगेटस लगवाए, पुलिस और किसानों के बीच तकरारें भी हुई, किसानों पर पानी की बौछारे भी छोडी गई; पर कई स्थानों पर किसान बल अधिक होने के कारण से वह बैरीगेटस तोडकर आगे बढ गए; जब किसानों ने दिल्ली जाने वाले मार्गो पर डेरा जमा लिया तो सरकार की मुश्किलें बढी सरकार ने किसानों के साथ दिसम्बर के साथ वार्ता की पर वह असपफल रही। कुल मिलाकर किसान अपनी मांग पर अडे हुए है।

-इतिहास के झरोखे से…

किसानों और सरकार के बीच तनातनी का यह कोई नया मामला नहीं है, आजादी के पहले भी दमन के खिलापफ किसानों ने आन्दोलन किए जिनका नेत2त्व कभी महात्मा गांधी तो लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने किया; आजादी के पहले नील की खेती के विरोध में पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण का सत्याग्रह और बारदोली आंदोलन हुए, किसानों के आंदोलन या उनके विद्रोह की शुरुआत सन् 1859 से मानी जाती है। इसे विडम्बना माना जाए कि तब से लेकर आज तक किसान अपनी मांगो लिए सरकारों से लडते आ रहे है।

-आजादी के पूर्व के किसान आन्दोलन

देश में जब भी किसानों के आन्दोलनों की बात होगी तब इन आन्दोलनों का भी जिक्र आएगा; जिनमें सन् 1918 में खेड़ा सत्याग्रह गांधीजी द्वारा शुरू किया गया, ‘मेड़ता बंधुओं’ ने भी सन् 1922 में बारदोली सत्याग्रह, नील उत्पादकों के खिलाफ बंगाल में सन् 1859-1860 में किया गया। दक्कन का विद्रोह, दिसंबर सन् 1874 में साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन, मदन सन् 1919 उत्तर प्रदेश में हुआ आन्दोलन, वहीं उत्तर प्रदेश का एका आन्दोलन, जो लगान वसूली के विरोध में किया गया; केरल का मोपला विद्रोह, कूका विद्रोह,महाराष्ट के रामोसी किसानों का विद्रोह, आनध्र् प्रदेश में 1879 में शुरू हुआ किसान आन्दोलन, 1914 में बिहार में ताना भगत आन्दोलन, मुंडा आन्दोलन, बंगाल में 1946 में तेभागा आन्दोलन, तेलंगाना आन्दोलन, इसके उदाहरण हैं। ये सभी आन्दोलन किसानों के लिए हुए तो वहीं इनमें किसानों की बडी भूमिका रही।

-आजादी के बाद के आन्दोलन

ऐसा नहीं भारत के आजाद होने के बाद किसानों को कुछ समस्याएं ही नहीं रही किसानों की परेशानियां अभी भी हैं, इसीलिए तो किसान आन्दोलन में है पर आजाद भारत के कुछ आन्दोलनों की बात की जाए तो उनमें केरल में वन वर्षा साइलेंट वैली को बचाने के लिए साइलेंट वैली आन्दोलन, 1970 के दशक में वनों की कटाई के विरोध में चिपको आन्दोलन, जेपी आन्दोलन इसमें भी किसानों के हति शामिल थे; 1980 में झारखंड के आदिवासियों ने जंगल बचाओ आन्दोलन चलाया, नर्मदा बचाओ आन्दोलन जैसे कई आन्दोलनों में किसानों की महती भूमिका रही। एक बार पिफर किसान आन्दोलन की राह पर मजबूती के साथ खडे दिखाई दे रहे है।

-किसानों की तैयारी गजब

इस बार अपनी मांगों पर अडे किसानों की तैयारी गजब है, वह पूरे इंतजाम के साथ आए है, राशन पानी साथ है, इस आन्दोलन में पढे लिखे किसान और उनकी युवा पीढी का भी साथ है। किसानों को अब धीरे धीरे पूरे देश में अन्य वर्गो अन्य संगठनों, विपक्ष, सामाजिक संगठनों का भी सहयोग और समर्थन मिलने लगा है इसलिए सरकार को इस किसान आन्दोलन को दबाना भारी पड रहा हैं, इससे इस समय तो किसानों का पलडा भारी पडता हुआ नजर आ रहा है।

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