मंथन जरुरी: कांग्रेस जहां हजारों से जीती थी वहां हजारों से हारी
मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश के में हुए उप चुनावों में जो परिणाम आये है उनमें चौकाने वाली बात यह है कि जजिन सीटों पर कांग्रेस पार्टी हजारों वोटों के अंतर से विधान सभा चुनाव जीती थी अब उन्ही सीटों पर हजारों के अंतर से चुनाव हार गई।
मध्य प्रदेश में 28 विधान सभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे इसमें भाजपा ने जबरजस्त वापसी करते हुए बंपर जीत हासिल कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया है, अब बडा सवाल यह है कि कांग्रेस पार्टी को जिन मतदाताओं ने जिताया था, उन्होंने ही हरा क्यो दिया वह भी बडे अंतर से। क्या कांग्रेस के नेता जो भाजपा में गए वह अपने समर्थकों के साथ मतदाताओं को भी ले गए आंकडों पर गौर करें तो डबरा ही ऐसी सीट रही है जहां कांग्रेस पहले करीब 57 हजार वोटों से जीती थी, पर वह इस सीट के सीट के अलावा महज चंद सीटे ही अपने पास बरकरार रखने में कामयाब रही।
भीतरघात के बावजूद बडे अंतर से हारे सांची
इसमें जिक्र किया जाए तो सांची विधान सभा सीट का ही उदाहरण ले ले यहां पर कांग्रेस पिछली बार करीब साढे दस हजार वोटों से जीती थी, भाजपा में भीतरघात की बाते भी सामने आई इसमें भाजपा ने अपने ही एक नेता को नोटिस थमाया इसके बाद भी डॉ प्रभुराम चौधरी भाजपा से भी 60 से अधिक वोटों के अंतर से उपचुनाव जीतने में कामयाब रहे।
भाजपा में आए तो बढ गया जीत का अंतर
दूसरा चौकाने वाला मामला सांवेर विधान सभा का है जहां पहले कांग्रेस तुलसी सिलावट महज 2945 वोटों के नजदीकी अंतर से चुनाव जीते थे, पर भाजपा में आने के बाद उनकी जीत का अंतर 20 हजार के आंकडे को भी पार कर गया। इसके साथ ही एक दर्जन सीटे ऐसी थी जहां कांग्रेस की जीत का अंतर15 हजार से लेकर बीस हजार के बीच था, इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी उप चुनाव को बडे अंतर से हार गई।
कांग्रेस में भी चला भीतरघाती वार
मध्यप्रदेश में पिछले चुनावों में जिन सीटों पर कांग्रेस वंपर वोट हासिल कर चुनाव जीती थी, उपचुनाव बडे अंतर से हार कर सत्ता के मैच से बाहर हो गई कांग्रेस इतने बडे अंतर से उपचुनाव क्यों हारी यह तो कांग्रेस पार्टी के मंथन का विषय है मगर सियासी गलियारों में चर्चा है कि जो विधायक कांग्रेस को छोडकर भाजपा में गए थे, उनसे कई कांग्रेसी भी जुडे हुए है, और अंदर ही अंदर मदद कर गए अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो वक्त ही बताएगा