मप्र उपचुनाव: दांव पर जनता की कमाई
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]
इसी साल के मार्च का शुरुआती वक्त… कोरोना के कठोर कदमों की आहट साफ सुनाई दे रही थी। उसी दौर में भोपाल से लेकर दिल्ली तक सियासी मौसम का बसंत अपने पूरे शबाब पर था। एक लोकतांत्रिक सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके… यानि हॉर्स ट्रेडिंग.. सीधे और साफ शब्दों में कहें तो सौदेबाजी… से अपदस्थ करने की पटकथा लिखी तो दिल्ली में गई… लेकिन उसका फिल्मांकन पहले बेगलूरु …. फिर सीहोर और कुछ हिस्सा राजस्थान में पूरा किया गया…। प्रदेश की राजधानी भोपाल में इसका अंतिम दृश्य फिल्माया गया… और कमलनाथ की विदाई के साथ कमल की सत्ता पंद्रह महीने के बाद पुनः स्थापित हो गई…।
इन दृश्यों को याद कराने का मकसद क्या है… असल में जब कमलनाथ बतोर सीएम सत्ता पर काबिज हों… और संगठन के सर्वे सर्वा हों… तब आपका गुप्तचर तंत्र इतना निष्क्रिय हो गया था क्या… जो आपको अपने ही मंत्रिमंडल के मंत्रियों और विधायकों के बागी हो सकने की भनक तक नहीं लग पाई…. और 22 कांग्रेसी मंत्री और विधायाकों ने भाजपा से ग़लबहियाँ कर ली….? इसके बाद और भी तीन कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा के साथ सात फेरे ले लिए….? पीसीसी चीफ आपको मालूम ही नहीं पड़ा…।
ये दोनों तरह के घटनाएं….एक की सीनाजोरी तो एक की लापरवाही बता रहीं हैं…..। जिन विधायकों ने कांग्रेस से नाता तोड़ा… उन्हें भाजपा ने गले लगाया….। हुजूर…. आप दोनों की आँख मिचोली में जनता की गाढ़ी कमाई तो दांव पर लग गई न…..। अब कुल 28 सीटों पर तीन नवंबर को वोटिंग और दस नवंबर को चुनाव परिणाम आ जायेंगे….। शिवराज जी आपकी चुनावी रैलियों का भारी भरकम खर्च तो उसी जनता की जेब पर पड़ेगा न…. जो लॉक डाउन में बेरोजगार हुई है…. जिनके व्यापार मंदी के कठिन दौर से गुजर रहे हैं….. जिनकी नौकरियां जा चुकी हैं…. जिनका महंगाई भत्ता आपने रोक दिया है….. जिन किसानों की सोयाबीन की फसल बर्बाद हो चुकी है… जो मजदूर काम करने को तैयार हैं लेकिन काम नहीं मिल रहा है… वो मंडी कर्मचारी और बिजली कंपनी के कर्मचारी जिनके सिर पर बेरोजगार हो जाने की तलवार लटक रही है… निजी स्कूल के वह शिक्षक जो रोजगार से लगे होने के बाद भी… बेरोजगार से हैं…..।
जनता की इस तरह की सभी किस्मे आपकी सत्ता की रस्साकशी का खामियाजा चुनावी खर्च के रूप में भुगतेंगी….? जो कि गैर जरूरी सा है….। खैर आप राजनीतिज्ञों को क्या फर्क पड़ता है… आपको तो हर सुख सुविधा… घटी दरों में जनता के टैक्स के पैसे से मिल ही रही है…. जनता ही पिस रही है… आगे भी पिसती रहेगी…. उस जनता पर ही आपके दांव लगे हैं…. उसी जनता की जेब की दम पर ही आप दांव चल रहे हैं… उसकी मेहनत की कमाई ही दांव पर लगी है….। आप दोनों तो रहनुमा का वेश धारण करे रहिए….?