विश्व बधिर दिवस : आवाजों की इस दुनिया में वे उँगलियों से बोलते हैं…..
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शालिनी रस्तोगी[/mkd_highlight]
आवाजों की इस दुनिया में
वे उँगलियों से बोलते हैं,
वे होंठों को पढ़ते हैं,
वे आँखों को देख
भावों को समझते हैं।
तुम्हारे ज़िस्म की कोई जुम्बिश
रहती नहीं अछूती
उनकी आँखों से
हर बात कह-सुन लेते हैं,
वे इशारों-इशारों से।
कई बातें वे हमसे-तुमसे
बेहतर ही समझते हैं।
वे जो बोल-सुन नहीं सकते है।
एक कमी देकर
हज़ार हुनर दिए हैं ऊपरवाले ने उन्हें।
उन प्रतिभाओं का सम्मान करो,
सम्मान, स्वामिमान, सहयोग, स्वाबलाम्वन दे
राह उनकी आसान करो।
बेजुबानी को उनकी समझो
उनकी तुम आवाज़ बनो।
स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री का देश के नाम उद्बोधन दूरदर्शन पर सीधा प्रसारित किया जा रहा था। वहीं स्क्रीन के कोने में एक महिला प्रधान मंत्री के बोलने के साथ-साथ उनकी बात को शारीरिक हाव-भाव, हाथों व उँगलियों के इशारों से बड़ी कुशलता के साथ मूक-बधिरों के लिए प्रस्तुत करती ज रही थी। उसकी मुख-मुद्रा, उँगलियों व हाथों का कुशल सञ्चालन बरबस ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। मन में यही विचार आ रहा था कि ये मूक-बधिर लोग भला सामान्य लोगों से कहाँ कम हैं? अपनी अलग संकेत भाषा के साथ वे भी दुनिया को अपने ढंग से परिभाषित कर रहे हैं। हम उनकी बात नहीं समझते तो यह हमारी कमी है न कि उनकी।
सितम्बर के अंतिम सप्ताह को ‘विश्व मूक-बधिर सप्ताह’ के रूप में मनाया जाता है। विश्व बधिर संघ (डब्ल्यूएफडी) ने 26 सितम्बर 1958 से ‘विश्व बधिर दिवस’ की शुरुआत की। इस दिन बधिरों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अधिकारों के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के साथ-साथ समाज और देश में उनकी उपयोगिता के बारे में भी बताया जाता है।
जागरूकता, हाँ! हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या इस विकलांगता के प्रति जागरूकता का आभाव है। शारीरिक रूप से कोई विकृति नज़र न आने के कारण इस समस्या के प्रति परिवारजन लम्बे समय तक अनजान रहते हैं। जिससे समय रहते उचित चिकित्सीय सहायता इस विकलांगता से ग्रसित बच्चों को नहीं मिल पाती। बधिरों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन “नोएडा डेफ सोसायटी” की रूमा रोका ने भी कहा, “सबसे बड़ी समस्या जागरूकता का अभाव है। हमारे यहां व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए आने वाले अधिकतर बच्चे देश के पिछड़े इलाकों से आते हैं। समाज के पिछड़े तबकों से सम्बंधित इनके अभिभावकों में जागरूकता एवं सुविधाओं के अभाव के कारण इन बच्चों के पास मूलभूत ज्ञान का अभाव होता है।”
किसी भी प्रकार की कमी यदि शरीर में हो तो आत्मग्लानि तो होती ही है। क्योंकि मानसिक रूप से वे सही होते हैं। इसलिए मूक-बधिरों को इस प्रकार की सोच नहीं रखनी चाहिए। सोसाइटी मूक-बधिरों को भावुक तरीके से लेती है। इस दिशा में लोगों की सपोर्ट की आवश्यकता भी है। इनकी मदद और सामान्य जीवन यापन के लिए समाज के लोगों को उनके लिए आगे आना चाहिए और आ भी रहे हैं। – डॉ. मनोज साहू, मनोरोग विशेषज्ञ
सुनने की शक्ति न होने के कारण वे बोलने में असमर्थ होते हैं। भारत में लगभग जन्मजात मूक-बधिरों की जनसंख्या 10 लाख है। बाद में किसी कारण से सुनने की क्षमता पर प्रभाव पड़ने पर भी लोगों की संख्या लाखों में है। भारत में इस वक्त कुल मूक-बधिरों की संख्या लगभग 20 लाख है। लोगों को इस दिशा में जनजागृति की जरूरत है। डॉक्टर, पैरामेडिकल, सामाजिक संस्था और माता-पिता को भी इस दिशा में जागरूक होने की आवश्यकता है। -डॉ. राकेश गुप्ता, ईएनटी विशेषज्ञ
ऐसा नहीं है कि देश या विश्व में मूक-बधिरों की सहायता के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। बधिर दिवस के मौके पर लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए दिल्ली में इंडिया गेट से जंतर मंतर तक मार्च का आयोजन किया जाता रहा है। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय बधिरों के कल्याण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को भी ‘दीन दयाल उपाध्याय योजना’ के तहत सहायता भी मुहैया कराता रहा है। साथ ही बधिरों को नौकरी देने वाली कम्पनियों को छूट का भी प्रावधान है।
हालांकि आज विज्ञान ने इस अक्षमता को दूर करने के लिए अनेक उपाय किए हैं। कई मामलों में सर्जरी करके ,मशीनें लगाकर और विशेष यंत्रों की सहायता से मूक बधिर व्यक्ति उसको ना केवल पढ़ सकता है बल्कि कुछ तो बोलने भी लगते है। आज सरकार द्वारा मूक-बधिरों के उत्थान के लिए ना केवल चिकित्सीय उपाय किए जा रहे हैं बल्कि उनको सक्षम बनाने के मूक-बधिर स्कूल भी बनाए गए हैं। जहाँ पर वे अपनी उच्चशिक्षा ग्रहण करके ऊँचे पदों पर भी पदस्थ हैं। यहाँ तक कि इन लोगों ने अनेक प्रकार की ऐसी प्रतियोगिताएँ भी उत्तीर्ण की है जो कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल होता है| आपको जानकर भी आश्चर्य होगा कि एक मूक-बधिर अच्छा संगीत दे सकता है।
यह सब सरकार के उपाय के साथ मूक बधिर के परिवार के सहयोग से संभव होता है मूक बधिर की इच्छा शक्ति और लगन पर भी निर्भर करता है कि वह अपने आप को एक सामान्य व्यक्ति की दृष्टिकोण से देखता है या एक विकलांग के दृष्टिकोण से देखता है।
आवश्यकता है तो बस उनको सम्मान व सहयोग देकर उनमें स्वाभिमान का भाव उत्पन्न करने की , उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने की काबिलियत देने की| वे केवल मूक-बधिर हैं मूढ़ नहीं।