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देश की लगभग 70% सोयाबीन फसल सुखने की कगार पर, बारिश का इंतज़ार

 

मध्यप्रदेश ।  सोयाबीन की समय पर बुवाई तो हो गई लेकिन बारिश का इंतज़ार है… दस दिन पुरानी इस फसल के लिए आशा से आसमान लटका है। मध्यप्रदेश में पूरे देश का लगभग 70% सोयाबीन उपजाया जाता है पिछले साल प्रदेश में लगभग 55 लाख हेक्टेयर हेक्टेयर जमीन पर सोयाबीन लगाया गया था इस बार भी इसके आसपास का ही होगा।
तीन महीनों के भीतर तैयार होने वाली इस प्रोटीनयुक्त नकदी फसल ने किसानों की तकदीर बदली है। सत्तर के दशक में सोयाबीन को पहली बार मध्यप्रदेश में लाने का श्रेय जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों को है। यहां वैज्ञानिकों ने इस फसल की देशी वैरायटी तैयार की और किसानों को इसे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया।  आरंभ में सोयाबीन मालवा के देवास, इंदौर धार, उज्जैन, झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, नीमच, शाजापुर और राजगढ़ जिलों में लगाया गया। एक समय तो पूरे मध्यप्रदेश का पचास प्रतिशत से ज्यादा सोयाबीन केवल मालवा में होता था। तब प्रचलित था कि “Malwa is India’s midwest and Indore is Chicago” ।
दुनिया में सबसे पहले और सबसे ज्यादा सोयाबीन अमेरिका के मिडवेस्ट इलाके में उगाया जाना आरंभ हुआ था।  नब्बे के दशक के आस-पास जब सीहोर, रायसेन, भोपाल, विदिशा, सागर, दमोह, गुना, हरदा, होशंगाबाद, बैतूल और विंध्य के पठार के आसपास वाले जिलों के किसानों ने जब सोयाबीन उपजाना चालू किया तो मानो बाहर ही आ गयी।
सोयाबीन की फसल के कारण किसानों में संपन्नता का दौर आया है। बुंदेलखंड के किसान सोयाबीन को नकदी फसल के रूप में ही लेते हैं बारिश के समय उगाई जाने वाली फसल किसानों की जेबों में पर्याप्त पैसा भर देती है।
शर्त यह है कि फसल खराब न हो। हालांकि, सोयाबीन मैं लागत बहुत आती है और ज़मीन भी खराब होती है इसलिए सामान्य रूप से छोटे किसान इसका फायदा उतना नहीं ले पाते जितना कि बड़े किसान। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार के समय आई किसान क्रेडिट कार्ड की स्कीम ने काफी हद तक इस समस्या का भी हल किया है।
इस बार प्रदेश में अच्छी फसल आने की संभावना है लेकिन पानी समय पर आया तो….आखिर किसानी आज भी भगवान भरोसे ज्यादा है।

( लेखक दीपक तिवारी वरिष्ठ पत्रकार है )

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