अभिभावको बोले : वैक्सीन बने या कोरोना जाये तभी स्कूल जायेंगे बच्चे
जब तक कोरोना के खात्मे के लिये वैक्सीन नहीं बन जाती अथवा प्रदेश – देश या जहां बच्चा पढ़ने जाता है वहां से कोरोना खत्म नहीं हो जाता तब तक हम अभिभावक कतई बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे, ऐसा चाहे वो भिलाई छत्तीसगढ की डॉ सरोज तिवारी हों या देहरादून कीसिम्मी दुबे या शहडोल मध्यप्रदेश की राखी मिश्रा या सतना की श्रीमती तिवारी। ये ही क्यों सैकड़ों अभिभावकों से पूंछने पर कि स्कूल खुलने पर बच्चे को भेजेंगे या नहीं। यहां तक कि कई पेरेन्ट्स ने तो यह तक कह दिया कि बच्चा ही नहीं रहेगा तो कैसा स्कूल, कैसा रिजल्ट्स ? हम रिपीट करा लेंगे क्लास पर कोरोना खात्मे तक कतई बच्चे को स्कूल भेजकर रिस्क नहीं ले सकते।
आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ राकेश पाण्डेय कहते हैं कि पेरेन्ट्स का तो काम पर जाना मजबूरी है, पेट का सवाल है पर अपने जिगर के टुकड़े का जीवन लोग कैसे दांव पर लगा दें। हलॉकि डॉ पाण्डेय कहते हैं कि मास्क प्रयोग, सेनेटाइजर प्रयोग, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन, आयुर्वेद – आयुष दवाओं का इम्यूनिटी बढ़ाने के लिये उपयोग करें और कोरोना से डरना नहीं है। पर सौ फीसदी ग्यारंटी तो कोई भी स्कूल या सरकार नहीं दे सकती । भारत हो या अमेरिका, चीन, जापान, नेपाल, इटली या कोई भी देश सभी बच्चों को सुरक्षित देखना चाहते हैं। स्कूल में मैनेजमेंट बच्चों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग, साफ- सफाई, मास्क प्रयोग, पांच या दस- दस के ग्रुप में बैच, टॉयलेट में साफ-सफाई, बस्ते से लेकर कपडों को सेनेटाइजेशन, भोजन व्यवस्था अलग – अलग , आवागमन के साधनों में दूरी बनाकर बैठना, सभी कोशिश करेगा पर बच्चे तो आखिर बच्चे हैं , एक- दूसरे से बिना मिले रह ही नहीं पायेंगे और भय के वातावरण में पढाई कैसे संभव है।
वहीं दूसरी तरफ स्कूल की फीस नहीं जमा होगी तो स्कूल , वहां का स्टॉफ कैसे रहगुजर कर सकेगा। सब कुछ समझने के बाद तो यही समझ में आता है कि सितंबर – अक्टूबर तक संभव हो कि कोरोना नियंत्रण में हो , या कोई निश्चित वैक्सीन इजाद हो जावे, वर्ना बच्चे केवल ऑनलाइन ही पढाई कर सकेंगे। डॉ राकेश पाण्डेय ने आग्रह किया है कि ऑनलाइन पढाई के बाद रोजाना दिन में एक बार त्रिफला जल से आखें जरूर धो लें। शुद्ध काजल का प्रयोग भी आखों के लिये बेहतर है। अब निर्णय सरकार को लेना है।