आपदा काल में लूट सके तो लूट, नहीं तो अवसर जाएगा चूक
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]विनीत दुबे[/mkd_highlight]
जब से देश के प्रथम सेवक ने आपदा को अवसर बनाने का मंत्र इस देश केा दिया है। तब से ही लोग किसी भी अवसर को छोड़ना नहीं चाहते हैं, यंत्र- तंत्र – सवत्र लोग इस आपदा में अवसर ही तालश रहे हैं और अवसर का बखूबी लाभ उठा रहे हैं। इस आपदा काल में जनसेवा के अवसर का बखूबी लाभ उठाकर पुण्य अर्जन में जुटे हुए हैं तो जनसेवकों से कहीं अधिक तादाद में अवसरवादी तत्व लोगों की मजबूरी का लाभ उठाकर लूट में लग गए हैं। कोई भी इस आपदा काल में मिले अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहता है।
बीते दिनों कई घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि अवसरों पर लाभ उठाने वाले अपने जमीर की आवाज नहीं सुनते हैं शायद, वे अपने आस पास होने वाली घटनाओं से भी अपना मुंह फेर लेते हैं। पिछले दिनों एक तरफ देश के अधिकांश हिस्सों से मजदूरों के पलायन की खबरें सुनने और देखने को मिली तो उन बेघर हुए मजदूरों की सेवा के लिए भरी दोपहरी में भोजन पानी की व्यवस्था में जुटे समाजसेवियों को सेवा का अवसर पाते हुए देखा। वहीं दूसरी तरफ अपने घरों की रवाना हुए मजदूरों से वाहन संचालकों द्वारा मनमाने पैसे वसूलते हुए देखा तो लगा कि आपदा में अवसर के अपने अपने मायने हैं। कुछ लोगों ने आपदा में सेवा का अवसर तलाश लिया तो कुछ लोगों ने खुली लूट का अवसर तलाशा। कमोबेश यही हालत अन्य मामलों में भी सामने आए शहरों और गांवों में समाजसेवियों ने जरूरतमंदों को खाने, पीने और दवाओं का निशुल्क वितरण किया तो कतिपय व्यापारियों ने दाल, तेल, चीनी आटा जैसी दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं के मनमाने दाम वसूल कर इस आपदा काल में लूट का अवसर नहीं छोड़ा।
ऐसे समय में सरकार ने भी कुछ वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर कतिपय विक्रेताओं को खुलेआम मनमाने दाम वसूलने का अवसर प्रदान कर दिया। लाॅकडाउन काल में सुपारी के दाम 350 से बढ़कर 800 रूपए प्रतिकिलो तक जा पहंुचे तो गुटखा पाउच आदि भी चार गुना दाम तक बिक रहे हैं। मजेदार बात तो यह है कि सरकार द्वारा विक्रय पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी उतनी ही तादाद में बिक्री हो रही है, जिस पर न तो सरकार का ही नियंत्रण है और न ही स्थानीय प्रशासन इस ओर ध्यान दे पा रहा है। आपदा में कमाई का अवसर तो सरकार ने भी नहीं छोड़ा, पिछले दो महीनों से तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है इसके बाद भी सरकार ने डीजल पेट्रोल के दामों में कोई कमी नहीं की बल्कि टैक्स में बढ़ोत्तरी कर दी तो राज्य सरकारों ने भी इस अवसर में कतई चूक नहीं और अपने हिस्से के भी 2 से 5 रूपए प्रतिलीटर तक बढ़ा डाले।
देश में लाक डाउन घोषित होने के बाद से ही प्रदेश के सभी टोल नाकों को बंद कर दिया गया था। जैसे ही वाहनों के आवागमन की छूट मिली वैसे ही टोल कंपनियों ने टोल वसूलना प्रारंभ कर दिया। आपदा के इस काल में मध्यप्रदेश के टोल नाकों की जमकर चांटी कटी क्योंकि गुजरात और महाराष्ट्र से मजदूरों को लेकर आने वाले वाहनों की कतारें करीब एक पखवाड़े तक लगी रहीं और सामान्य दिनों की अपेक्षा 8 से 10 हजार अधिक वाहनों की आवाजाही से बंद के दिनों का न केवल घाटा पूरा हो गया बल्कि अच्छी खासी कमाई भी हुई। जानकारी के मुताबिक टोल नाकों वालो ने मजदूरों से भरे हुए ट्रकों से दो गुना तक राशि वसूली और आपदा के इस अवसर का लाभ उठाया। यह तो कुछ मामलों के उदाहरण मात्र हैं यदि विस्तार से लिखा जाए तो इस फेहरिस्त में अनेकों उदाहरण जुड़ते चले जाएंगे।
बहरहाल देश में सबसे खस्ता हालत मध्यमवर्गीय परिवारों की हो रही है। इन परिवारों को न तो कर्ज की किश्तों में राहत मिल पाई है और न ही बंद दिनों का वेतन। आने वाले दिनों में नौकरी में भी आपदा की ही चपेट में हैं उन्हे अपने परिवार को पालने का अवसर तलाशने की चिंता सता रही है। सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज की खबरों का विस्तार भी राहत प्रदान करता हुए नजर नहीं आ रहा है। आपदा के दिनों में देश के करोड़ों मध्यमवर्गीय परिवार भी राहत का अवसर तलाश रहे हैं।