Top Stories

‘क्यों, सही है क्या राजीव गांधी की हत्या हो गई…!’

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]कीर्ति राणा[/mkd_highlight]

 

उस रात रोज की तरह दैनिक भास्कर में सिटी डेस्क पर काम चल रहा था….पीबीएक्स बोर्ड ऑपरेटर कालेजीने सिटी डेस्क पर फोन ट्रांसफर करते हुए कहा राणाजी का फोन है। सिटी चीफ (स्व)विनय लाखे जी ने फोनमेरी तरफ बढ़ाया।सराफा एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य (स्व)सागरमल छाबछरिया पूछ रहे थे क्यों रानाजी, सही है क्या, राजीव गांधी की हत्या हो गई? मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा नहीं तो दादा, आप को किस नेबताया? वो बोले सराफे से फोन आ रहे है। मैंने कहा दादा पता कर के बताता हूं।

फोन पटक कर लगभग भागते हुए टेलीप्रिंटर रूम में पहुंचते पहुंचते ही लाखे जी को भी बताया राजीव गांधी कीहत्या की अफवाह चल रही है सराफे में।प्रिंटर पर किर्र..किर्र की आवाज के साथ ऊपर उठते कागज को खींचकर फाड़ा। उस पर नजरें दौड़ाई तो फ्लेश…फ्लेश…फ्लेश के साथ पैरम्बदूर में बम विस्फोट…. राजीव गांधीनहीं रहे, ये लाइनें पढ़ते हुए दिल धक्क से रह गया।अगले ही पल सीधे पेज मैकिंग रूम में पहुंचा।रात के10.25 हो रहे थे और शाहिद मिर्जा डाक एडिशन का पेज वन छोड़ने की तैयारी में थे।’शाहिद पेज छोड़ना मत, राजीव गांधी की हत्या हो गई है’ यह सुन कर वो और पेज मैकिंग इंचार्ज कैलाश यादव सहित बाकी लोग भीअवाक रह गए।शाहिद ने गजब की दिमागी फुर्ती दिखाई, फटाफट पेज वन चेंज किया साथ में (शायद तीन) और पेज भी तैयार कर डाले।डाक एडिशम में हत्या की डिटेल खबर-फोटो आदि में भास्कर बाकी अखबारों परभारी पड़ा था।

एक महीने पहले ही तो 14 अप्रैल को आम्बेडकर जयंती पर बाबा साहब की जन्मस्थली महू जाने के लिए राजीव गांधी इंदौर आए थे।पूर्व प्रधानमंत्री के रूप में उनकी यह अंतिम इंदौर यात्रा साबित हुई। किसी भी दलके अन्य किसी राष्ट्रीय नेता की वैसी स्वागत रैली आज तक नहीं निकली, ऐतिहासिक रैली निकली थी।एयरपोर्ट से शुरू हुई रैली महू तक पहुंची थी।

महू से लौटकर फिर प्रेस कॉम्प्लेक्स में राजीव गांधी देर रात ‘लोकस्वामी’ अखबार के लोकार्पण समारोह मेंशामिल हुए थे।इस अखबार की शुरुआत कांग्रेस नेता महेश जोशी परिवार ने की थी। बाद में फिर सांध्यदैनिक लोकस्वामी जीतू (सोनी) भाई ने खरीद लिया था।विधानसभा चुनाव के वो दिन भी गजब थे जब उसी‘लोकस्वामी’ में (चुनाव लड़ रहे) अश्विन जोशी व महेश जोशी के खिलाफ कुछ न कुछ धमाका रोज होता था।

Related Articles

Back to top button