Top Stories

आखिर सुनने में हर्ज ही क्या है… सुन भी लिजिए हुजूर…

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]विनीत दुबे[/mkd_highlight]

 

किसी की बात को सुन लेना बड़ा ही दुश्कर काम होता है। आज कल के जमाने में ही नहीं पुरातन काल से यह चला आ रहा है कि जो भी सत्ता संभालता है वो किसी की नहीं सुनता चाहे कोई कितनी भी जोर जोर से अपनी बात कहे। सत्तासीनों के नहीं सुनने के कारण ही जनभावना नक्कार खाने की तूती साबित हो जाती है। किसी की बात सुन लेने में आखिर हर्ज ही क्या है… शायद कहने वाले ने कुछ ऐसा कहा हो जिसमें जनकल्याण की भावना छिपी हो तथा उस बात के सुन लेने से आपका और जनसाधारण का भला हो जाए।

पिछले 20-25 सालों के दौरान मैंने सैकड़ों ऐसे उदाहरण देखे हैं कि सत्तासीनों ने आम जनता की आवाज को नहीं सुना और न ही अपने सलाहकारों की बातों पर ही अमल किया परिणास्वरूप देर सबेर उन्हे अपनी सत्ता को गंवाना ही पड़ा। पुरातन काल से ही सत्ता की बागडोर संभालने वालों के पास सलाहकारों की एक मंडली होती थी जिसमें कुछ चाटुकार तो कुछ सच के पैरोकार हुआ करते थे। जो सच के हामी होते थे वे सत्तासीन को जनता की समस्याओं को बताते थे और न्यायोचित समाधान की वाकालात करते थे जबकि चाटूकार सत्तासीन को हकीकत से दूर रखते थे और झूठी वाहवाही करते थे।

पुरातन काल की बात करें तो यदि पितामह भीष्म ने ध्रतराष्ट्र के राजतिलक के समय महात्मा विदुर की बात मान ली होती तो महाभारत का युद्ध नहीं होता। यदि महाभारत युद्ध के पहले ध्रतराष्ट्र ने श्री कृष्ण की बात मानकर पांडवों को पांच गांव दे दिए होते तो कुल का विनाश नहीं होता। इन सब उदाहरणों के बावजूद लोग न तो कुछ सुनना चाहते हैं और न ही सच का आइना दिखाने वालों की बातों पर अमल करना चाहते हैं। सत्तासीन होने के बाद लोगं न जाने क्यों किसी की बात चाहे वो अच्छी हो या बुरी सुनने को तैयार ही नहीं होते हैं।

आज के दौर में भी सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाला हर शख्श अपने सुनने की सुविधा को त्याग देता है। आपने देखा है सत्तासीन व्यक्ति जनता के बीच सिर्फ वोट मांगने ही आते हैं उस समय वे एक मंच पर विराजमान होते हैं और वहां से बोलना प्रारंभ करते हैं और जब भीड़ में से कोई बोलने का प्रयास करे तो उसकी आवाज कोई नहीं सुनता है। यह बीमारी हर बड़े नेता से लगाकर छोटे से छोटे नेताओं में विकसित हो रही है यही कारण है कि आम जनता में नेताओं और सत्तासीनों प्रति नकारात्मक छवि निर्मित होती जा रही है।

आज देश और प्रदेश की सत्ता पर आसीन भद्रजन उन सभी सेवाओं का उपयोग करते हैं जिनके माध्यम से वह अपनी बात आम जनता तक पहुंचा सकें लेकिन जब जनता कोई अपनी कोई बात उन तक पहुंचाने का प्रयास करती है तो कोई सुनता ही नहीं है। देश में कुल मिलाकर एक तरफा संवाद की स्थिति है यही कारण है कि सत्ता को लगता है कि हमनें जनता के लिए सारा खजाना लुटा दिया और जनता को लगता है कि कुर्सी पर बैठने वाले सारा खजाना लूट कर ले गए।

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर प्रदेश के प्रथम जनसेवक के अनेक वीडियो धड़ाधड़ आ रहे हैं जिनमें वे कभी बड़े प्रसन्न तो कभी बहुत की दुखी मन से बोलते हैं। इस वीडियो के नीचे अनगिनत कमेंन्टस भी आते हैं जिनमें लोग अपनी समस्याओं को बता रहे होते हैं लेकिन इन बातों को सुनने और पढ़ने के लिए किसी के पास भी समय नहीं होता है। समझ में नहीं आता है कि आखिर आम जनता की बातों को यह सत्तासीन लोग सुनना क्यों नहीं चाहते।

मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि एक सत्तासीन व्यक्ति को सुनने की आदत डालना चाहिए ऐसा नहीं है कि वो वह बोले ही नहीं। वह जब मंच पर हो तो उसे बोलना चाहिए मंच पर मौन नहीं रहना चाहिए लेकिन जब वह मंच से नीचे उतरे तब उसे जनता की सुनना चाहिए। जब वह गांवों और शहरों में घूमें तो उसे जनता की समस्याओं को देखना चाहिए और वाजिव मांगों और सुझावों पर गंभीरता पूर्वक विचार कर निर्णय भी लेना चाहिए। जब तक सत्ता और जनता के बीच संवाद स्थापित नहीं होगा तब तक न तो कोई जनकल्याणकारी योजना फलीभूत होगी और न ही जनता की समस्याओं का समाधान होगा।

Related Articles

Back to top button