कोरोना संक्रमण : सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत पहचानिए सरकार….
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]विनीत दुबे[/mkd_highlight]
पिछले 45 दिनों से मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण के सैंकड़ों प्रकरण सामने आ गए हैं और अभी कई प्रकरण सामने आने बाकी हैं। भोपाल की ही बात करें तो यहां एक निजी अस्पताल और एम्स ने सरकार को राहत की सांस दी है जहां से कोरोना पीड़ित रोगियों के ठीक होने के समाचार मिले हैं यदि स्थिति इंदौर के भी एक निजी अस्पताल में कोरोना पाजिटिव रोगियों का बेहतर उपचार हुआ और रोगी स्वस्थ होकर अपने घर लौट रहे हैं। वहीं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं वेटिलेटर पर नजर आ रही हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत जानना अति आवश्यक हो चला है।
अपनी चैथी पारी में प्रदेश की सरकार के मुखिया बने शिवराजसिंह चैहान पिछले 40 दिनों से लगातार भाषण दे रहे हैं कभी टीवी पर तो कभी फेसबुक लाइव होकर। वे अपने भाषणों बड़े भावुक होकर कहते हैं कि हम कोरोना की हरा देंगे मगर कैसे हराएंगे यह नहीं बताते। वो तो भला हो इन निजी अस्पतालों की जो कुछ हद तक रोगियों की जान बचाने में सफल रहे नहीं तो सरकार को रोने के लिए मजदूर भी नहीं मिलते। क्योंकि मजदूर अभी अपनी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
मुख्यमंत्री भाषणों से बचे हुए समय में अधिकारियों की मीटिंग में जुट जाते हैं वहां भी लगातार तीन तीन घंटे भाषण पेल देते हैं वे भूल जाते हैं कि यह सभा नहीं बल्कि अधिकारियों की मीटिंग है। इन सब के बीच उन्हे यह विचार करने का भी मौका नहीं मिलता कि पिछले 15 सालों में उनकी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए क्या कदम उठाए और उन प्रयासों का नतीजा क्या निकला। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत आज भी वैसी ही जैसी पहले थी सरकारी अस्पतालों में लगातार बढ़ती भीड़ और बदहाल व्यवस्थाओं ने लोगों का सरकारी तंत्र से विश्वास उठा दिया है कहीं व्यवस्थाएं नहीं हैं तो कहीं व्यवस्थाओं को संभालने वाले।
वर्तमान समय में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर विचार करने का समय है। प्रदेश भर में जिला और सामुदायिक अस्पतालों स्थिति को परखने और सुधार करने का खाका बनाया जा सकता है ताकि अपने वाले समय में किसी भी प्रकार की मेडिकल इमरजंेसी के समय हम निजी अस्पतालों की ओर ताकने के लिए विवश न हों। सरकारी अस्पतालों के अलावा जहां तहां दो चार कमरों में खुल रहे निजी अस्पतालों की हकीकत से भी रूबरू होने का भी यही समय है। इन अस्पतालों में सुविधाओं की जांच पड़ताल की जाना चाहिए कि ये अस्पताल वाकई उपचार भी करते हैं कि सिर्फ लोगों से मनमाने पैसे वसूलने के लिए ही दुकानें चला रहे हैं।
शहर दर शहर पचासों अस्पताल बने हुए हैं जहां मरहम पट्टी और प्राथमिक उपचार के नाम पर लोगों से हजारों रूपए वसूले जाते हैं, इन अस्पतालों की ईमानदारी से जांच आवश्यक है। यदि सरकार आम लोगों को रोजगार न दे सके तो कम से कम अच्छी स्वास्थ्य सेवा तो उपलब्घ करा ही सकती है यदि यह भी नहीं करा सकती तो फिर सरकार को ही अपना को-रोना टेस्ट कराना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की गाड़ी को पटरी पर नहीं ला सकती है यदि सरकार और उसके नुमाइंदे कुछ दिन पूरी शक्ति के साथ जुट जाएं तो चंद महीनों में ही प्रदेश के सरकार अस्पताल निजी अस्पतालों को बंद होने की स्थिति में ला सकते हैं। लेकिन इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। यदि वह समय है जब सरकार अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की समीक्षा कर उसमें ठोस सुधार के प्रयास करे। इन सब के बीच आधी अधूरी सुविधाओं के बीच कोरोना संक्रमण की रोकथाम और उपचार में पूरी निष्ठा से काम में जुटे सभी स्वास्थ्यकर्मियों के प्रयास वाकई सराहनीय और वंदनीय हैं।