बुद्ध पूर्णिमा विशेष : चेतना बनकर धरती पर अवतरित हुए गौतम बुद्ध
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]मनीषा शाह[/mkd_highlight]
आज 7 मई वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को संपूर्ण विश्व बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मना रहा है। गौतम बुद्ध सिर्फ एक नाम या महामानव या महात्मा ही नहीं वरन एक चेतना बनकर इस धरती पर अवतरित हुए… यह चेतना जितनी उस युग में प्रासंगिक थी जब वह राजकुमार सिद्धार्थ बोधिसत्व तलाश रहे थे,अपितु यह एक ऐसी अमर चेतना बनकर आए जो आज इस कठोर समय में भी हमें जीवन जीने की कला सिखा रही है… इस समय जब सारा विश्व कोरोना नामक महामारी से जूझ रहा है,ऐसे समय में भगवान गौतम बुद्ध की चेतना उनके द्वारा प्रदत उपदेश मानव को इस कोरोना नामक महामारी से हौसले के साथ झेलने एवं लड़ने की उम्मीद निरंतर जगा रही है,शायद इसलिए भी इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं जब चांद अपनी संपूर्ण उज्जवलित छटा पर होता है और अंधकार के समय में भी रोशनी दिखाता हुआ प्रतीत होता है
राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की यात्रा एक पल में उपजी चेतना नहीं वरन प्रत्येक दिन अपने आसपास घट रही घटनाओं और क्षीण होते मनुष्य शरीर की आभा के रहस्य को जानना था… इससे हमें यह पता चलता है की जीवन की सफलता केवल भाग्य पर नहीं परंतु प्रत्येक दिन की मेहनत और अनुभव का निचोड़ होती है… और वही हमें अपने उचित गंतव्य पर पहुंचाती है… भगवान बुद्ध यही नहीं रुके उन्होंने अपनी सफलता को केवल स्वयं तक सीमित ना रखकर प्राप्त की हुई इस चेतना को संपूर्ण विश्व में प्रचारित किया और आज संपूर्ण विश्व बुद्ध धर्म अर्थात बुद्ध के वचनों को मानता है … क्योंकि ज्ञान वह नहीं जो स्वयं तक संकुचित रह जाए… परंतु ज्ञान तो उन्मुक्त रूप से सभी दिशाओं में फैलता है तभी उस सच्चे ज्ञान की पहचान होती है…. अब तो यह जानना और भी अति आवश्यक हो गया है… सही अर्थों में ज्ञान क्या है और आज के समय में कैसे प्रासंगिक तथा तर्कसंगत बन पडा है… जब आज हम एक वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं… और अपने अपने घरों में बंध चुके हैं… ऐसे में भगवान गौतम बुद्ध के सूत्र हमें आगे का मार्ग दिखाते हैं ..
भगवान बुद्ध अपने संदेश में कहते हैं… “जो बुरा समय बीत गया है उसको याद नहीं करना चाहिए, भविष्य के सपने भी नहीं देखना चाहिए, बल्कि वर्तमान में ध्यान केंद्रित करना चाहिए ।”
यह वचन बहुत ही प्रासंगिक है .. क्योंकि अब वह समय नहीं रहा जब इस महामारी के स्रोत पर जाया जाए आगे क्या होने वाला है उस पर सोचा जाए परंतु इस बात पर ध्यान लगाना है कि क्या कुछ ऐसा किया जाना चाहिए इस समय जो सबसे अधिक दुर्लभ वस्तु है अर्थात मनुष्य स्वयं एवं स्वयं का जीवन उसका अस्तित्व इस पृथ्वी पर कैसे बचाया जाए….
बुद्ध अपने संदेश में कहते है.. न हीं सुख स्थाई है यह और न हीं दुख …बुरा समय आने पर उसका डटकर सामना करना चाहिए और हमेशा रोशनी की तलाश करना चाहिए””
बुध का यह वचन कितना प्रासंगिक है… आज यह महामारी काल बुरा जरूर है चाहे स्वास्थ्य की दृष्टि से या आर्थिक स्तर पर.. परंतु यह वह भी समय है.. या अवसर है जब हम स्वयं को और अपने कौशल को बनाए रखें.. ना केवल बनाए रखें परंतु अपने कौशल को और अधिक नीखारे… जब या दुख के बादल छठ जाएं… सूर्य की रोशनी के समान उभर कर आएं और प्रकाशित हो..
भगवान बुध अपने संदेश में कहते हैं ..””. शंका से हमेशा बचना चाहिए बेवजह किसी पर शक नहीं करना चाहिए शंका लोगों को अलग कर देती है”””
महामारी के इस काल में भगवान हमें शिक्षा दे रहे हैं कि किसी भ्रांति को अपने जहन में ना लाएं और उसे फैलाने से भी परहेज करें… क्योंकि यह एक वैश्विक आपदा है… और इससे निजात पाने का एक मात्र माध्यम है… किसी पर दोषारोपण नहीं करते हुए..सावधानी… सतर्कता… एवं एकजुटता से महामारी से मुकाबला किया जाए…।
इन सभी संदेशों की मूलभूत प्रेरणा को भगवान गौतम बुद्ध ने इन बातों के द्वारा चरितार्थ किया “प्रेम अहिंसा एवं करुणा”
गौतम बुद्ध ने हमेशा यही संदेश दिया कि प्रत्येक प्राणी के साथ प्रेम से रहो तो कोई ऐसी परेशानी या आपदा नहीं है जिससे जीता नहीं जा सकता..
इसी भावना के साथ बुद्ध पूर्णिमा की सभी को शुभकामनाएं बधाई
बुद्धम शरणम गच्छामि
धर्मं शरणम गच्छामि