भोपाल और सीहोर में फंसे राजस्थान के 50 से अधिक झूले वाले,ई पास आवेदन हुआ निरस्त
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]वसीम उददीन[/mkd_highlight]
मध्यप्रदेश। प्रदेश सरकार हजारों मजदरों को उनका घर भेज रही है और अन्य राज्यों से प्रदेश ला रही है,लेकिन अभी कुछ जिलों में दूसरे राज्यों के रहने वाले दिहाडी मजदुर और छोटे छोटे काम करने वाले कई लोग फंसे हुए है। कुछ परिवार को लॉकडाउन में बिछड भी गए। बच्चें और मां बाप अलग अलग जिलों के गांव में रहने का मजबूर है। इनमें से कुछ ने ईपास आवदेन भी किया लेकिन उनका आवदेन निरस्त हो गया। ऐसे ही राजस्थान के टाटोटी निवासी झूला लगा कर अपना पेट भरने वाले 50 से अधिक लोग सीहोर और भोपाल के गांव में फंसे है।
जानकारी के अनुसार राजस्थान के टाटोटी के रहने वाले कई परिवार हर साल विभिन्न प्रकार के झूले लेकर प्रदेश के जिलों के बडे गांव में आते है। यह गांव के मैदान में झूले लगाकर अपने परिवार के भेट भरने लासक पैसा जुटा कर वापस राजस्थान लौट जाते है,लेकिन इस बार कोरोना संक्रामण की वजह से लागू किया गए लॉेडाउन में यह परिवार अलग अलग गांव में फंस गए। अब इन्हें लॉक डाउन खुलने का इंतजार है।
–दो जिलों में फंसे लगभग 50 लोग, ई पास आवेदन हुआ निरस्त
राजस्थान के रहने वाले अजमेरी गोल्डन झूले के मालिक लतीफ खा के बेटे महमूद खां, सलीम खा भोपाल जिले के मूदला में फंसे सलीम खां ने हमारे संवाददाता वसीम उददीन को बताया कि सीहोर जिले के श्यामपुर तहसील के खंडवा में 28 लोग एवं भोपाल जिले के मुंडला में 13 लोग लॉक डाउन के चलते फंसे हुए हैं दोनों ही जगह झूला लगाने गए हुए थे लेकिन लॉक डाउन के चलते निकल नहीं पा रहे हैं, वही लतीफ खा ने ई पास के लिए आवेदन किया था जिस को निरस्त कर दिया गया है।
–झूले वालों के नाम से जाना जाता है गांव
राजस्थान के अजमेर जिले के ग्राम टाटोटी में 450 गाड़ियां लोड होकर यहां वहां झूला लगाकर अपनी रोजी-रोटी की तलाश में अपना वतन छोड़कर निकल जाते हैं इस गांव को झूले वाले के नाम से जाना जाता है यहां की आबादी लगभग 5000 है उन्हीं में से लतीफ खा का परिवार है जो सीहोर जिले के खंडवा और भोपाल जिले के मुंडला में फंसा हुआ है।
लगभग 100 सालों से पूर्वजों के जवानों से यही काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है अजमेरी गोल्डन झूले के मालिक लतीफ खा का कहना है कि हम मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में उस जमाने से आ रहे हैं जब लकड़ी के झूले हुआ करते थे और हम अपनी बैल गाड़ियों में उन झूलों को लेकर यहां वहां झूला लगाते फिरते थे, 8 महीने हम मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ व अन्य जगहों पर झूला लगाते रहते हैं उसके बाद बारिश नजदीक होते ही अपने वतन लौट जाते हैं बताया जाता है कि इस गांव को झूले वाले के नाम से जाना जाता है वहां किसी के मकान नहीं है जिस तरह से यह जगह जगह तंबू डाल कर( जिसे राजस्थानी भाषा में राउटी) कहते हैं अपना गुजारा करते हैं उसी तरह तंबू डालकर वहां बारिश में यह लोग सब एक साथ रहते हैं।
–बच्चे और मां बाप अलग अलग गांव में…
महमूद खां का कहना है कि मैं सीहोर जिले की श्यामपुर तहसील के खंडवा गांव में अपने पिताजी के साथ था और मेरी पत्नी भोपाल जिले के मूडला में थी जब वहां से फोन आया कि उसे प्रसव होने वाला है तो मैं चला गया बाकी मेरे बच्चे खंडवा में ही है जब बाद में खंडवा लौटा तो गांव वालों ने मुझे घुसने नहीं दिया मुझे वापस भागा दिया। मुझे वापस मूडला जाना पड़ा जिसकी वजह से मेरे बच्चे खंडवा में है और मैं मूडला में हूं..।