कोरोना संकट काल में सोचें, कुछ तो सकारात्मक है !
[mkd_highlight background_color=”” color=”RED”]शालिनी रस्तोगी[/mkd_highlight]
कोविड 19 का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इस मुद्दे को लेकर सर्वे, रिसर्च एवं मैनेजमेंट कंपनी ‘क्वाल्ट्रिक्स’ द्वारा वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य को लेकर किए गए एक नवीनतम अध्ययन से प्राप्त आंकड़े लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली मानसिक परेशानियों के विषय में जानकारी देते हैं।
कोविड-19 के प्रकोप से 67% लोगों ने तनाव बढ़ने की रिपोर्ट की है। 57% का कहना है कि उन्हें इस महामारी के प्रकोप के बाद से अधिक चिंता का अनुभव हो रहा है।
54% कहते हैं कि वे भावनात्मक रूप से अधिक थक गए हैं। 53% कहते हैं कि वे दिन-प्रतिदिन उदासी महसूस करते हैं।50% महसूस करते हैं कि वे अधिक चिड़चिड़े हैं। 42% की रिपोर्ट में उनके समग्र मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है।
आज की परिस्थिति में ये आंकड़े चौकाने वाले नहीं बल्कि डराने वाले हैं| वास्तव में कोरोना से जितना नुकसान जान-माल का हो रहा है उससे कई गुना अधिक लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल रहा है।
कुछ समय बाद निश्चित रूप से इस महामारी के चुंगल से निकल आएगा, परन्तु यदि अभी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को नहीं निराशा और मानसिक बीमारियों के दौर से उबरने में पता नहीं कितना समय लग जाएगा। निश्चय ही आज का दौर नकारात्मकता का है।
कितने ही लोग घर बैठे लॉक डाउन के ख़त्म होने के इंतज़ार में अवसाद और कुंठा का शिकार हो रहे हैं| ऊपर दिए गए आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं।
यह सच है कि परिस्थितियाँ हमारे वश में नहीं है और हमारे पास घर पर रहने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है। तो क्या ऐसे में यह बेहतर नहीं होगा कि हम परिस्थितियों के नकारात्मक पहलू देखने की जगह उसके सकारात्मक पक्ष देखें।
नकारात्मक सोच वैसे भी व्यक्तित्व में ही नहीं वातावरण में भी नकारात्मकता भर देती है। तो इस समय में भी बहुत कुछ है जो सकारात्मक है। आइए, उस सकारात्मकता को खोजते हैं।
हममें से बहुत से लोग हैं जो इस समय घर परिवार से दूर बिलकुल अकेले हैं| अब अकेलापन तथा एकांत दो अलग अलग भाव हैं जिनके साथ हम यह समय काट सकते हैं।
एक ओर अकेलापन जहाँ निराशा, अवसाद और कुंठा की नकारात्मकता से भरा हुआ है वहीं एकांत मानसिक शांति, आत्म बोध और आत्मसाक्षात्कार की दिव्य अनुभूतियों से भरा हुआ है।
यह वही एकांत है जो भागमभाग से भरी ज़िन्दगी में दुर्लभ हो चुका था। अपने बारे में सोचने का समय निकलना हमारे लिए असंभव हो गया था। अपने से बात करना, अपने मन के उन कोनों में झाँक कर देखना जिनपर विस्मृतियों के जाले लग गए हैं, आध्यात्म के कुछ पल जो हमें हमसे ही मिलवा सकें, यह सब कुछ जैसे स्वप्न की बातें हो चुकी थीं।
ऐसे कितने ही भाव, कितने ही विचार जिनपर मनन करने का हमें मौका ही नहीं मिलता था या जिन्हें हमने अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे नीचे रख छोड़ा था की जब समय मिलेगा, तब सोचेंगे। तो वह समय आ गया जव आप आत्म पर पड़े परदे को सरकाकर आत्मसाक्षात्कार करें। और अकेलेपन से दुखी व कुंठित होने की जगह एकांत का आनंद लें।
चलिए, समय न होने के बहानों की कैद से बाहर निकालते हैं उन शौक व रुचियों को जो रोज़ी-रोटी के हिसाब में आपने कहीं पीछे छोड़ दी थीं।
स्टोर में रखे कैनवास ब्रश और रंगों को झाड़-पोंछ कर उसे फिर बाहर लाया जाए, वो बहुत शौक से लिया गया गिटार कब से आपकी उँगलियों के स्पर्श को तरस रहा है, उसमें बंद तरानों को फिर छेड़ा जाए, और हाँ बच्चों को जो आप अपने हुनर की कहानियाँ सुनते थे आज वक्त है उस हुनर को बच्चों में हस्तांतरित करने का।
तो आप ही कहें कि इन सब कामों को करने का इससे बेहतर समय कब आएगा| हुनरशाला के साथ-साथ संस्कारशाला भी चलाइए| बच्चों को घर के कामों में हाथ बँटाने की शिक्षा उनके मन में काम का सम्मान पैदा करेगी| ‘मैं’ की जगह ‘हम’ का भाव जागृत होगा।
आज के समय में आप अपने परिवार के साथ हैं, सुरक्षित हैं इससे ज्यादा सकारात्मक बात भला और क्या होगी| कोई भी आर्थिक हानि आपकी और आपके परिवार से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती। इस सकारात्मकता के साथ आप इस मुश्किल समय से निस्संदेह बाहर निकल आएँगे| बस आशा, विश्वास का दीपक बुझाने मत दीजिए,और सोचिए …कुछ तो सकारात्मक है!
( लेखिका साहित्यकार है )