दवा बाजार में दवाओं का टोटा शुरू
–बीपी, किडनी, शुगर पेशेंट भी परेशान, सर्दी-खांसी-बुखार की दवाइयों का संकट गहराने लगा
–रॉ मटेरियल के संकट से बंद पड़ी हैं फैक्ट्रियां, सीएंडएफ के गोदाम खुलें तो राहत मिले
[mkd_highlight background_color=”” color=””] कीर्ति राणा[/mkd_highlight]
मध्यप्रदेश। लॉकडाउन लंबा खिंचने की आशंका के चलते प्रशासन ने जरूरी दवाइयों के मंडराते संकट के निराकरण में तत्परता नहीं दिखाई तो दवा बाजार में भी लॉक डाउन के हालात बनते देर नहीं लगेगी। कोरोना के लक्षण सर्दी-खांसी-बुखार होने से अधिकांश लोगों द्वारा इन दवाइयों की अत्यधिक मात्रा में खरीदी करने से ये दवाइयां मार्केट में कम हो ही रही हैं। इसके साथ ही बीपी, किडनी और शुगर पेशेंट के लिए नियमित डोज वाली दवाइयों का संकट भी गहराने लगा है। यही नहीं जिन पेशेंट को सप्ताह में दो बार डायलिसिस कराना होती है वे भी तनाव ग्रस्त हैं। प्रशासन ने दवाई दुकानें खुली रखने की अनुमति दे रखी है। एक से दूसरे स्थान पर दवाइयां ले जाने वाले दुकानदारों को भी सहूलियत दे रखी है। इस सबके बाद भी दवाइयों का संकट गहराने लगा है तो उसका मुख्य कारण है दवा बाजार के थोक दुकानदारों तक ही दवाइयां नहीं पहुंच पा रही हैं। इंदौर दवा बाजार में थोक-रिटेल मिलाकर करीब 450 दुकानें हैं जिनमें से करीब 250 दुकानें नियमित खुल रही हैं किंतु कई दवाइयां इनके पास भी नहीं है।
–दवाइयों की सप्लाय में इसलिए है परेशानी
देश में जितनी भी दवाई निर्माता कंपनियां हैं सबके इंदौर में सीएंडएफ (केरि एंड फारवर्ड) गोदाम हैं। कंपनियां सीधे इन्हें भेजती हैं, ये दवा बाजार के थोक व्यापारी को माल भेजते हैं और उनसे खुदरा व्यापारी दवाइयां लेते हैं।
इस महामारी के विश्वव्यापी असर के चलते चीन, जर्मनी आदि देशों से भारतीय दवा निर्माता कंपनियों को रा मटेरियल की सप्लाय नहीं हो पा रही है।देश की प्रमुख दवा निर्माता कंपनियों में उत्पादन बंद होने का प्रमुख कारण रा मटेरियल के साथ ही कर्मचारियों का नहीं आ पाना, ट्रांसपोर्टेशन, कोरियर सर्विस आदि बंद होना भी है।
–सीएंडएफ गोदाम खुलवा सकता है जिला प्रशासन
दवाई संकट को रोकने के लिए जो काम जिला प्रशासन कर सकता है वह भी नहीं हो पा रहे हैं।औषधि निर्माता कंपनी पीके फार्मा के संचालक और आयुष ड्रग मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन (एडमा) के सचिव हनीष अजमेरा ने इस प्रतिनिधि से चर्चा में जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि इंदौर में देवास नाका, लसुड़िया, पालदा, राऊ में विभिन्न दवा कंपनियों के सीएंडएफ गोदाम हैं इन्हें ड्रग इंस्पेक्टर के माध्यम से वार्निंग देकर खुलवाएं।
साथ ही धार, देवास और उज्जैन जिला प्रशासन से तालमेल स्थापित कर इन जिलों में जिन दवा उत्पादक कंपनियों के सीएंडएफ गोदाम हैं वहां से भी दवाइयां जुटाई जा सकती हैं।
–बंद कंपनियां लॉक डाउन शुरु करवाएं
शहर में ही 100 से अधिक दवा निर्माता फैक्टरियां पोलोग्राउंड, सांवेर रोड, पालदा आदि क्षेत्रों में हैं। इन सभी को चालू कराया जा सकता है।इनकी समस्या यह भी है कि इनका स्टॉफ भी नियमित आ जा सके।
प्रशासन इन फैक्टरी मालिकों से स्टॉफ की सूची लेकर संबंधित थानों की मदद से उन्हें काम पर आने के लिए राजी कर सकता है। लॉकडाउन की शुरुआत में कर्मचारी आ भी रहे थे लेकिन पुलिस कर्मियों द्वारा नियमों का सख्ती से पालन कराने में प्रताड़ित होने के चलते घरों में कैद हो गए।
जिला प्रशासन इन्हें कर्फ्यू पास और फैक्टरी से जुड़े वाहनों को पास जारी कर दे तो स्थानीय स्तर पर दवा उत्पादन आसानी से शुरु हो सकता है।अभी सिर्फ सांवेर रोड स्थित इप्का फैक्टरी ही चालू है किंतु वहां भी पर्याप्त स्टॉफ नहीं है।
इन फैक्टरियों के चालू हो जाने पर एलर्जी, कफ, कोल्ड से जुड़ी दवाइयों का संकट कुछ तो हल हो ही जाएगा।आज की स्थिति में कोल्डरिन, सेरिडान, सिनेरेस्ट, एस्प्रिन, रिकोफास्ट, डिस्प्रिन, पेरासिटामाल, सिट्रीजन जैसी सर्वाधिक उपयोग में ली जाने वाली टेबलेट भी बाजार से गायब हो रही हैं।
एमवायएच के सामने खुदरा दवाई विक्रेता यूनिक केमिस्ट संचालक रोहित तनेजा की परेशानी यह है कि दुकान पर सहयोग करने वाले लड़के ही नहीं आ रहे हैं। स्वंय और पत्नी ग्राहकों को दवाई भी दें रहे है और दवाइयां खत्म हो जाएं तो लेने भी स्वंय ही जाना पड़ता है।
देवास नाका, तीन इमली पालदा में सन फार्मा, रैनबेक्सी के गोदाम खुले भी हैं तो वहां भी मेनपॉवर नहीं है।एक आदमी माल निकालेगा, पैकिंग करेगा, बिल भी बनाएगा को टाईम लगेगा ही।जबकि पहले 4-5 लड़के होते थे, मेनपॉवर कम और लोड अधिक होने से सप्लाय 80 फीसदी प्रभावित हुई है।
–‘क्या करें, आधी दुकानें ही खुल पा रही हैं’
दवा बाजार में करीब 450 दुकानें हैं। एसोसिएशन के अध्यक्ष विनय बाकलीवाल स्वीकारते हैं आधी दुकानें ही खुल पा रही हैं।चीन, जर्मनी, अमेरिका आदि से रा मटेरियल नहीं आ पाने से एक तरफ जहां देश की दवा निर्माता कंपनियों का उत्पादन प्रभावित हुआ है वहीं दवा बाजार में मेन पॉवर संकट भी कारण है। पीथमपुर, पोलोग्राउंड, सांवेर रोड की जिन दवाई निर्माता कंपनियों के पास माल है भी तो पैकेजिंग मटेरियल, बॉक्स, प्लास्टिक की बोतलों का संकट है।जिला प्रशासन तत्काल दवाई कारोबार से जुड़े सभी पक्षों की संयुक्त बैठक बुलाए, संकट दूर करने की दिशा में शीघ्र पहल नहीं हुई तो मामला गंभीर हो जाएगा।
–अत्याधिक दवाइयां खरीदने से भी गहराया संकट
लॉक डाउन के बाद जब प्रशासन ने दवाइयों की दुकान खोलने के निर्देश दिए तो लोगों ने घबराहट में तीन-तीन गुना अति आवश्यक दवाइयां खरीद ली । इसके कारण यह समस्या उत्पन्न हुई कि आर्थिक रुप से कमजोर बीमार लोगों को दवाइयां अब नहीं मिल पा रही है और वे दर-दर भटक रहे हैं। सोशल डिस्टेंस के कारण लोगों का नंबर दुकान पर काफी देर बाद आता है और जब वह पर्चा दिखाता है तो उसे यही जवाब मिलता है कि यह दवाई खत्म हो चुकी है ।
प्रमुख दुकानों पर तो आधे घंटे तक अपना नंबर आने का इंतजार करना पड़ता है और फिर अंत में उसे खाली हाथ ही यहां से लौटना पड़ता है। लोगों को दवाइयां नहीं मिलने का कारण यही बताया गया है कि खुदरा विक्रेता बेच की दवाइयां वापस स्टाक नहीं कर पा रहा है क्योंकि दवा बाजार के थोक विक्रेता छूट मिलने के बावजूद अपनी दुकानें नहीं खोल पा रहे हैं ।
–दो दवा व्यापारियों की मौत
लॉकडाउन के बाद से अब तक दवा बाजार में दो दवाई दुकानदारों की मौत हो चुकी है। तीन दशक से अधिक समय से कारोबार कर रहे दो कारोबारियों के निधन के बाद से यहां के अधिकांश दुकानदारों को आशंका है कि कहीं दोनों की मौत का कारण कोरोना संक्रमित होना तो नहीं। इस दहशत के चलते भी कई दुकानदार अपनी दुकानों के ताले नहीं खोल रहे हैं।
अधिकांश दुकानदार चाहते हैं कि नगर निगम पूरे दवाबाजार को सेनेटाइज कर दे लेकिन इस संबंध में भी आज तक कोई पहल नहीं हुई है।दुकानदारों के सामने निजी स्तर पर प्रति दुकान 200 रु में सेनेटाइज करने का प्रस्ताव भी एक निजी व्यक्ति ने रखा था, एसोसिएशन ने ऐसे किसी प्रस्ताव की पेक्षा नगर निगम से ही करनाने का विश्वास भी दिलाया था किंतु बात आगे नहीं बड़ी।