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भारत का स्वाभिमान.. पांच किस्सों में पढे..

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]

 

 

 

स्वाभिमान.. जो पहचान होता है.. हमारी..। उस स्वाभिमान को जगाता है… हमारा अतीत.. जिसे हम बीता हुआ कल… अथवा इतिहास के नाम से भी जानते हैं…। समय हमेशा साक्षी रहा है कि… स्वाभिमान खोकर जीना…पल पल की मृत्यु की तरह कष्टकारी होता है..। राणा प्रताप ने भी आज़ादी के स्वाभिमान के चलते… गुलामी की हलवा पुरी खाने से बेहतर विकल्प घास की रोटियाँ खाने को चुना…। हम ज्यादा पुरानी नहीं… आज़ाद भारत के आधुनिक इतिहास के पांच किस्से.. आपसे साझा करते हैं…।
1- पहला किस्सा लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल का है। जब देश अमेरिका से लाल गेहूं का आयात कर.. अपने देश की खाद्यान्न की कमी को पूरा किया करता था…। अमेरिका से मांग की… उसने अनसुना कर.. भारत के गिडगिड़ाये जाने का इंतजार किया..। शास्त्री जी को अमेरिका के सामने गिडगिड़ाना रास नहीं आया..। उन्होंने गेहूं की मांग और आपूर्ति के सिद्धांत को ध्यान में रखकर…. बेकार पड़ी जमीन पर गेहूं का उत्पादन बढ़ाए जाने का आवाहन किया.. खास कर रेलवे के सड़क क्रासिंग वाले गेटों के किनारे की जमीन… गेटमेन के हवाले कर दी.. उस पर जो कुछ भी पैदा होगा.. उसका मनचाहा उपयोग वह गेटमेन ही करेगा..। दूसरा संपूर्ण देश से….हफ्ते में एक दिन के उपवास का निवेदन किया….। परिणाम में… मांग का घटना… और उत्पादन का बढ़ना हुआ…। देश खाद्यान्न में न केवल आत्मनिर्भर हुआ…. वरन.. आज की स्थिति में खाद्यान्न का बड़ा.. निर्यातक देश भी बना…।

2- अब बात 1971 के उस दौर की जब आयरन लेडी के नाम से दुनिया में मशहूर हुई इंदिरागांधी भारत का नेतृत्व कर रही थी। अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने इंदिरा गांधी के अमेरिका दौरे पर… उनसे मिलने के लिए.. 45 मिनट का लंबा इंतजार कराया..। उस समय इंदिरा जी चुप रहीं… लेकिन 1971 का दिसंबर आते ही… जब पाकिस्तान से वर्तमान बांग्लादेश को लेकर… युद्ध हुआ..। तब निकसन का फोन आया… इंदिरा जी ने तल्खी भरे अंदाज में उन्हें जवाब दिया… और युद्ध जारी रखा..। अमेरिका ने सातवां बेड़ा तैनात कर.. भारत को डराने की भी कोशिश की… लेकिन भारत ने पाकिस्तान से.. बांग्लादेश को आज़ाद करा ही दिया…।

3- तीसरे क्रम पर अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री होने के समय का किस्सा है। साल 1999 का… स्थिति कारगिल युद्ध की… तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ने… बाजपेयी जी पर बहुत दवाब डाला… युद्ध विराम का.. लेकिन बाजपेयी जी ने… पूरे साहस के साथ कहा… हम युद्ध के पक्ष में नही है.. लेकिन अपनी भूमि के एक इंच रकबे पर भी किसी का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं कर सकते..। नतीजा विषम परिस्थितियों में भी.. हमारी सेना ने पाकिस्तानी फौज को उनकी सीमा रेखा के अंदर तक.. धकेल दिया..। तब युद्ध विराम हुआ..। जानकारी के लिए याद कर लें.. कि इस दौर में अमेरिका दुनिया की सुपर पॉवर बन चुका था…। सोवियत रूस का विघटन होने का लाभ उसको मिल रहा था..।

4- चतुर्थ कथानक मौनी बाबा के नाम से मशहूर किये गए प्रधानमंत्री डॉ मन मोहन सिंह के कार्यकाल का है। जब विश्व में न्यूक्लियर संधि की मुहिम अमेरिका ने चला रखी थी…। भारत परमाणु शक्ति बन चुका था…। तो अमेरिका ने वादा किया कि.. आपके अमुक परमाणु ठिकाने के हिसाब से संधि की जाएगी…। जब संधि की नौबत आई तो… अमेरिका अपने वादे से पलट गया… मनमोहन सिंह जी से अमेरिका के तत्कालीन राष्टृपति ने बात कर दवाब बनाना चाहा… डॉ सिंह ने अमेरिकी राष्टृपति से बात ही नही की.. उन्होंने विदेश मंत्री से बात करने को कहा.. और नतीजा यह हुआ कि.. अमेरिका को भारत की शर्तों पर संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े…।

5- यह किस्सा आज के दौर का है… जब भारत के दुनिया में खास हैसियत के डंके बजाए जा रहे हैं…। देश का नेतृत्व 56 इंची सीने वाले प्रधानमंत्री कर रहे हैं..। दुनियाँ कोरोना के संकट से जूझ रही है….। क्लोरोक्वीन जैसी दवा की मांग बड़ी हुई है..। अमेरिका के राष्टृपति ट्रंप और हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी की टेलीफोन पर दोस्ताना बातचीत होती है… दवा की मांग को लेकर..। कुछ ही समय बीतता है.. ट्रंप की धमकी भरे बयान आ जाते हैं..। भारत के दवा सप्लाई नहीं करने पर परिणाम भुगतने के…। मीडिया में खूब चर्चा होती है…। विपक्ष का बयान भी आता है…। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता देश को बताते हैं… देश की जरूरतो के हिसाब से स्टॉक रख कर… मानवीयता के आधार पर.. अमेरिका को दवाई भेजी जाएगी…। धमकी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं… कोई सफाई नहीं..। अमेरिकी राष्टृपति के इस बयान पर आप पार्टी के सांसद.. संजय सिंह का कहना… भारत अमेरिका का गुलाम नहीं है.. जो उसकी धमकी भरे आदेश को मानने को बाध्य हो…।

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