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तेरे वरगा हनुमान न मिलणा : धारावाहिक रामायण के हनुमान की अनकही कहानी
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]
तेरे वरगा हनुमान न मिलणा
राम और रावण से भी महंगे हनुमान..!
हनुमान अपनी पूंछ सम्हालो.. हनुमान जी का दूध-बादाम ले आओ.. हनुमान जी को कसरत के बाद बुला दो..
हनुमान जी को प्यास लगी है स्ट्रॉ दो…
बंदर की नाक सम्हालो , पीछे दो बंदर भेजो, दो राक्षस को खड़ा करो..
ए..कोई बंदर की पूंछ बदल दो.. आदि आदि ।
हनुमान जी की सबसे ज्यादा इज्जत थी । वो थे ही ऐसे । राम सीता रावण कुर्ते पहने हनुमान के साथ लोवर और टी शर्ट पहन कर एक साथ समुद्र किनारे घूमने भी निकल जाते ।
हनुमान सबसे अनुभवी और महंगे थे । पूरे 33 लाख यानि आज के हिसाब से लगभग 20 करोड़ फ़ीस लिया था । राम रावण और सीता को भी उतने पैसे नही मिले ।
राम रावण सीता तो शीशे के सामने चंद मिनटों में तैयार हो जाते लेकिन हनुमान पूरे तीन घण्टे में तैयार हो पाते ।
बंदरों के उत्पात से रात भर जागी माता सीता के नींद में ख़लल भी पड़ता लेकिन जगह इतनी तंग थी कि सब अर्जेस्ट कर के बिना शिकायत तकलीफ के एक दूसरे को सहयोग ले और दे कर काम चला ही लेते । वानर सेना एक बार मेकअप के बाद कुछ खा नही सकते थे । इसलिए उनको पानी भी स्ट्रॉ के जरिये खींच कर पीना होता था । चार राक्षस इधर भेजो ,सीता को माइक दो , मंदोदरी को चाय दो । सूर्पनखा को खून लगाओ आदि ऐसे बैक स्टेज आवाजें कैमेरामन्स और डायरेक्टर्स के बीच पूरे सेट पर कभी भी गूंजते रहती थीं ।
मुम्बई से 155 किमी दूर गुजरात के औद्योगिक शहर वापी से लगे समुद्र तटीय कस्बे उमरगांव में प्रसिद्ध धारावहिक रामायण की शूटिंग महीनों ,सालों चली । मुम्बईकर और गुजराती इस कस्बे को उमरगाम कहते हैं । और मुम्बई अब तो खुद वहां तक पहुच चुकी है । तब शांत समुद्र , सुंदर बीच , जंगल ,नदी, चट्टान, पठार , मैदान सब कुछ था जहां पूरे रामायण की पुनः रचना कैमरे पर की जा सकती थी । मुंबई से डेढ़ सौ किमी की दूरी जरूरी थी । क्योंकि समय पर एपिसोड देने की मजबूरी होती थी , ऐसे में कलाकारों की हर समय सेट या आसपास उपलब्धता बहुत जरूरी होता था । इसीलिए उमरगाम में सेट पर एक अस्थायी शहर या कालोनी बसा लिया गया था ।
सीता का कमरा राम का कमरा यहां तक कि अपने आप को तीनों लोकों के स्वामी मानने वाले लंकेश्वर, राजेश्वर, सोने के राजमहल में रहने वाले राजा रावण का भी आठ बाई दस फुट का एक कमरा भर यहां अपना था । सबसे बड़ा कमरा तो हनुमान जी का ही था । एक तो 127 किलो का भारी भरकम शरीर, 52 इंच का सीना । और 6 फुट 2 इंच ऊंचा शरीर । ऊपर से हर समय लटकती उनकी लंबी पूंछ । वानर राज भले ही न हों लेकिन 8 फुट के बेड और बिना सपोर्ट वाले सोफे के साथ पूरी फिल्मी बस्ती में हनुमान जी का कमरा ही सबसे बड़ा था । पूंछ की वजह से हनुमान जी को सोफे में बैठने में बड़ी मुश्किल होती थी । हनुमान सेट पर भी खाली समय मे अक्सर बैठने के बजाय खड़े रहना ही पसंद करते थे । कारण , 55 साल की उम्र के बाद भी मजबूत कदकाठी और हृष्ट-पुष्ट शरीर । क्योंकि यह थे केसरी नंदन, पवनपुत्र ,रामभक्त हनुमान..! यानि रुस्तम ए हिन्द पहलवान सरदार दारा सिंह ।
1928 में पंजाब प्रान्त में जन्मे दारा सिंह के चाचा का सिंगापुर आना जाना था । विदेश में आने जाने का चार्म तब पंजाब के युवकों को समझ आ चुका था । युवा दारा भी चाचा के साथ सिंगापुर गए और अपने जोरदार पहलवानी डीलडौल के कारण वहां मेहनत के काम मे लग गए । एक तो पंजाब का जट्ट, बांका जवान जिसे पहलवानी का थोड़ा बहुत शौक था । सिंगापुर में रेसलिंग शोज़ के ऑफर हुए लेकिन वहाँ लड़ने से मना करते रहे । अंततः वहां से लौट कर उन्होंने पहलवानी का रास्ता चुन ही लिया । बाद में भारत के अलग अलग शहरों में आते जाते फ़िल्म निर्माताओं की नजर उन पर पड़ी उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों में अपनी शर्तों पर काम करना शुरू कर दिया । इसी बीच उन्होंने ऐसी फिल्में भी की जिसमे उन्हें पहलवान (किंग कॉन्ग, हरक्यूलस, राका आदि) एवं हनुमान ,बजरंगबली ( जय बजरंगबली 1974 निर्देशक – चंद्रकांत)की भी भूमिका करना हुआ ।
हनुमान की भूमिका में दारा सिंह का कोई विकल्प हो ही नही सकता था । इस तरह दारा सिंह रामानन्द सागर की इस मेगा सीरियल *रामायण* के हनुमान बन गए ।
रामायण का प्रसारण शुरू हो चुका था । राम के अभिनय का भाग्य का अभी पता नही था । पता चलने पर अरुण गोविल ने खुद अप्रोच किया पर उनको निराशा हुई और कोई और राम की भूमिका के लिए चुन लिए गए । राम के एपिसोड की शूटिंग अभी शुरू नही हुई थी ,अचानक रामायण के निर्माता रामानंद सागर ने अरुण गोविल को बुलाकर कहा –
तेरे वरगा राम न मिलणा
यानि हमे इस रामायण के लिए तुमसे अच्छा राम नही मिलेगा । अब राम की भूमिका तुम ही करोगे ।
दूरदर्शन ,सरकारी चैनल है । जहां प्रसारण से पहले हर धारावाहिक ,कार्यक्रम को एक स्क्रीनिंग कमेटी को दिखाना और उस कमेटी की मंजूरी जरूरी होती थी । रामायण के हर एपिसोड को, किसी भी हाल में हर शनिवार शाम तक स्क्रीनिंग कराना होता था । अगर कमेटी ने कहानी पात्र घटना वेशभूषा संवाद को आधार माने गए ग्रन्थ और प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप नही पाया तो वह एपिसोड निरस्त किया या सुधार के लिए भेजा जा सकता था । कड़े मापदंडों और नियमों को ध्यान में रख एक एक विषय पात्र के चित्रण पर विशेषज्ञों की निगरानी टीम विशेष सावधानी की नजर रखती । समय की कमी और लोकप्रियता के कारण पहले तो अतिरिक्त एपिसोड अग्रिम तैयार कर ली जाती लेकिन उसे इतनी लिबर्टी मिली थी कि वीएचएस कॉपी से स्कीनिंग की जाने लगी । वरन दूरदर्शन में एक साथ तेरह एपिसोड जमा करने का रिवाज होता था । वह भी मुम्बई नही, दिल्ली दूरदर्शन । मुंबई में रामायण के निर्माण के सारे संसाधन और टेलीकास्ट दिल्ली से होता था । उसके लिए कलाकार, तकनीशियन ,स्टूडियो , मुंबई के होने के कारण आसपास ऐसी जगह जो मुंबई से एकदम नजदीक भी न हो और दूर भी न हो , इसलिए उमरगाम (उमरगांव) में शूटिंग शेडयूल लगाया गया ।
हर महीने 1 से 28 तारीख तक काम होता ,फिर दो दिनों की छुट्टी होती थी , अधिकतर शूटिंग टेम्परेरी साउंडप्रूफ इंडोर स्टूडियो में पूरी रात, पुट्ठों ,थर्मो शीट्स और लकड़ियों से बनाए हुए सेट्स पर स्पेशल इफेक्ट के साथ होती थी । बड़े कलाकार भी वहीं रहते और सारी रात शूटिंग कर दिन में अपने आबंटित कमरों में आराम करते थे । लेकिन जब आउटडोर शूट हो तो रात के अलावा शूटिंग दिन में भी किये जाते थे । जंगल के आउटडोर रात्रि शूटिंग में हरे हरे सांप भी निकलते , पर शूटिंग की ज़ल्दबाज़ी और पात्रों के अभिनय के लगन में ये मुश्किलें बाधा नही बनी । स्थल में फ़ोन तब कार्यालय में ही होते थे । जिससे कलाकारों की यदा कदा अपने घर वालों से बात हो जाती थी ।
रामायण की लोकप्रियता से उसके कलाकार अपने चरित्र के साथ ही वास्तविक जीवन मे भी जाने और पूजे जाने लगे ।
आज जब रामायण फिर से टीवी पर प्रसारित हो रहा है तब इसके अधिकतर युवा कलाकार बुजुर्ग हो चुके हैं । हनुमान यानी दारासिंह का आठ साल पहले निधन हो चुका है । लेकिन भारत के टीवी धारावाहिकों के इतिहास में इस ‘रामायण’ का न तो कलाकार मर सकता है न चरित्र । रामायण ग्रन्थ नही जीवन जीने का उपाय है , सीख है । और हनुमान पूरे रामायण में प्रबंध यानी मैनेजमेंट गुरु ।
वानर को इंसानों का पूर्वज माना जाता है । हनुमान रामायण के ऐसे चरित्र हैं जो वानर से सीधे भगवान बन जाते हैं और हमारे दिलों में ,श्रद्धा में आज सर्व सुलभ , विपदा नाशक ,सहज सरल ,मददगार साथी , रामभक्त राम उपासक के रूप में बसते हैं । जो अपनी नही अपने देव राम के जयकारे भर से खुश रहते हैं । ऐसे भगवान कोई दूसरे कहां मिलेंगे ।
रामानन्द सागर ने उस दिन वह वाक्य कहा तो राम के लिए था । लेकिन यह भी सच है दारासिंह जी , कि रामायण को..
“तेरे वरगा हनुमान न मिलणा”
और हे अंजनी कुमार , भक्तों को
“तेरे वरगा भगवान न मिलणा”
त्रेतायुग मे लक्ष्मण को संजीवनी लाकर बचाने वाले हनुमान आज कोरोना युग मे अपने भक्तों को कोई न कोई संजीवनी लाकर जरूर बचा लेंगे । इसी कामना के साथ , इस हनुमान जयंती पर..
जय श्री राम..!
आज बस इतना ही..!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )