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‘कोरोना काल’ या पर्यटन काल
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”] होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]
मुख्य सड़क से लगे फुटपाथ पर एक मकान के बाहर सोशल डिस्टेंसिंग का ख़याल रख ,बड़ी विद्वता का सुंदर परिचय देते एक परिवार के सात-आठ लोग कुछ बैठे-कुछ खड़े क्वालिटी टाइम बिता रहे थे । पुलिस की सायरन बजाती एक ट्रक निकली । कुछ दूर जाकर ,ट्रक ने रिवर्स गियर लगाया , उतर कर चार जवान छापेमारों की तरह झपटे और उस परिवार पर डंडे बरसा कर खदेड़ा और सारी कुर्सियां ट्रक में लोड कर ले गए ।
बताओ भला , ऐसी पुलिस..!
मेरे भाई ..! जनता कर्फ्यू,सोशल डिस्टेन्स, लॉकडाउन ,क्वालिटी टाइम ,क्वेरेन्टाइन कन्टोन्मेंट, सन्नाटा, हॉट-स्पॉट, जैसे कई नए नए शब्द या इन शब्दों के नए अर्थ और परिभाषा इस मुए-करोना ने दे दिया है । आज वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने तो अपने ताजे लेख https://m.facebook.com/story. php?story_fbid= 10222243672503942&id= 1329151902 में ‘कोरोना कर्फ़्यू’, ‘कोरोना काल’ और ‘ सन्नाटे की शांति’ जैसे तीन और नए शब्द भी शब्दकोष को दे दिया ।
कुछ तो समझो, नासमझियां दिखा कर अपना मज़ाक क्यों उड़वा रहे हो । क़्वालिटी टाइम अपने घर मे बिताओ । क्या सड़क का फुटपाट लॉकडाउन में परिवार के सन्नाटा दर्शन का दर्शक दीर्घा है । बोलते हो पुलिस मारती है । गई न अब कुर्सी भी..!
अपने टीवी के रिमोट को पन्नी चिपका कर रिमोट गार्ड में रखने वाले , खुद अपनी और अपने आसपास के लोगों की सुरक्षा को ताक पर रख कर खौफ़ का मज़ाक उड़ा रहे हैं । बंदूक की एक गोली से एक आदमी मरेगा , कोरोना का एक मरीज आठ, आठ सौ और आठ हजार लोगों को भी मार सकता है । पूछिये कैसे..?
दिल्ली के दिलशाद गार्डन में सत्रह मार्च को सऊदी अरब से एक महिला आई वह जाने अनजाने ,अपने परिवार और मुहल्ला क्लिनिक के डॉक्टर और उसके परिवार के कुल आठ लोगों को संक्रमित कर दी । डॉक्टर रोज 100 मरीज को भी देखे तो आठ दिन में वह 800 लोग और वो फिर आगे ये लोग आठ हजार लोगों को भी संक्रमित कर सकते थे ।
उसी एक महिला के कारण यही दिलशाद गार्डन 22 मार्च तक देश का पहला हॉटस्पॉट बन चुका था । दिल्ली में इसके अलावा अब निजामुद्दीन वेस्ट भी हॉटस्पॉट बन चुका है । देश भर में इस समय दस से ज्यादा ऐसे हॉटस्पॉट्स बन चुके हैं । उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा का एक सेक्टर, और मेरठ ,महारास्ट्र में मुम्बई और पुणे । मध्यप्रदेश का इंदौर , और तो और भीलवाड़ा का एक अस्पताल ही हॉटस्पॉट बन गया है जहां संक्रमण का इलाज नही उल्टे, फैलाव हो गया ।
अकेले छत्तीसगढ़ जैसे छोटे से राज्य में जहां इस समय एक भी हॉटस्पॉट नही है , पिछली रात तक 70 हज़ार से ज्यादा लोग होम क्वेरेंटाइन किये गए हैं ।
देश के महारास्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली ,तीन राज्य हॉटस्पॉट्स हैं , इस देश मे 3000 के करीब मरीज, मुझे मिलाकर कल शाम तक 12 हजार लोग सेपरेट क्वेरेन्टाइन में आ चुके थे । वुहान से चला यह वायरस सबसे ज्यादा अमेरिका को प्रभावित कर चुका है और वह अब भारत से मदद मांग रहा है । शनिवार को एक लाख नए मिलाकर आज तीन लाख से ज्यादा मरीज और अब तक आठ हजार से ज्यादा मौत का आंकड़ा आ चुका है ।
अमेरिका विश्व-शक्ति माना जाता है । अमेरिका जाकर नौकरी करना हर युवा का सपना होता है । न्यूजर्सी के दक्षिण इलाके में स्थित एक अपार्टमेंट के छत्तीसवीं मंजिल के अपने फ्लैट में आईटी प्रोफेशनल आशीष रात ढाई बजे तक ऑफिस का काम कर रहे हैं । जल्द होने वाले अमेरिकी चुनाव और अर्थव्यवस्था के लुढ़कने के खतरे के कारण सरकार ने वहाँ लॉकडाउन ,क्वेरेन्टाइन और कन्टोन्मेंट जैसे सख्त पाबंदियों को ताक पर रख दिया । ऑफिस, मॉल, फ्लाइट्स, ट्रेन वहां पूरी तरह आज भी बंद नही हैं । बस, सावधान मोड का अलर्ट रख कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर वह आज विश्व का सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित देश बन चुका है । यहां भारत मे हम क्वेरेंटाइन और लॉकडाउन जैसे प्रारंभिक और कारगर तरीकों से ही परेशान हो रहे हैं । किसी भी जगह एक मरीज मिलने पर उस मरीज के घर से पांच सौ मीटर दूर तक, यानि एक किमी की परिधि को कन्टोन्मेंट एरिया घोषित कर दिया जाता है । बिल्कुल बंद ।
हमारे जानमाल की सुरक्षा में लगे पुलिस जवान, मीडिया,प्रसाशन के अधिकारी कर्मचारी अपने घर मे दरवाजे के बाहर,गैरेज, छत पर बैठकर किसी भिखारी या शरणार्थी की तरह अपने ही घर मे रहते सोते और खाना खाते हैं ,ताकि उनका परिवार और समाज सुरक्षित रहे । और उनके कानून के डंडे जब आप पर पड़ रहे हैं आपको हमें हिटलर की याद दिला रहे हैं । कोई जरूरी हो तो अलग बात, महज सैर और सेल्फी के लिए निकलते ही क्यों हो ।
मैं आज रूम के बजाय होम क्वेरेंटाइन पर आ गया । चौदह दिन एक कमरे में बिता कर मैं जब तीसरी मंजिल से नीचे उतरा तो अपना ही बिल्डिंग किसी तीर्थ जैसा लग रहा था । अद्भुत घटना थी ।
मेरे फेसबुक मित्र और वरिष्ठ लेखक विनोद मिश्र जी ने पिछले दिनों घर की महत्ता बताते हुए ‘विनोद शुक्ल’ जी की इन पंक्ति को शेयर किया था –
” घर , बाहर जाने के लिए उतना नही होता , जितना लौटने के लिए होता है !
हजारों बेघर लोग सड़कों और फुटपाथ पर होंगे ,उनके लिए सरकार को भी जूझना है ।और आप घर के बाहर सड़क पर कुर्सी लगाकर बैठ गए । क्या सोचा था..’ पुलिस, सलाम ठोकेगी..।
मुहल्ला, सड़क, शहर, कोई पर्यटन का केंद्र नही ,जिंदगी रही तो बहुत सैर करेंगे । पता नही यह और कितना खिंचे…
मित्रों..! तब तक इस “कोरोना काल” में
को…कोई
रो…..रोड पर
ना… ना निकलो..
आज बस इतना ही..!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )