NationalTop Stories

महाभारत में धर्म बनाम अधर्म की लड़ाई थी पर राजनीति में इसकी जगह नहीं..

 

     (होमेंद्र देशमुख)

 

दावा है महाकाव्य महाभारत के किरदारों को आधुनिक राजनीति से जोड़कर रियलिस्टिक निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ने फ़िल्म ‘ राजनीति ’ बनाई । महाभारत में धर्म बनाम अधर्म की लड़ाई थी, लेकिन अब ‘पॉवर’ के लिए लड़ने वाले लोग किसी कानून-कायदे और रिश्ते-नातों को नहीं मानते हैं। वे इसे हासिल करने के लिए कुछ भी कर-गुजरने को तैयार हैं और जीत से कम उन्हें स्वीकार्य नहीं है। इस बात को झा ने इस फ़िल्म में दिखाने की बख़ूबी कोशिश की । लेकिन मूल कहानी पर दो परिवारों का विवाद इतना भारी हो गया है कि मध्यांतर के बाद कहानी गैंगवार की तरह हो गई।
असल मे राजनीति में जब पद की महत्वाकांक्षा लोकतंत्र से जुड़ा और उसके किरदार बाहर के भी हों तब पद की यह की दौड़ परिवार से निकलकर उन किरदारों तक पहुच जाता है जो उसे किंग बनने में मदद करे । किंग मेकर बनने की कोशिश में वह कब गैंग और फिर विवाद होने पर कब उसी गैंग-वार का हिस्सा बन जाए यह कहना मुश्किल है ।

13- 14 वीं शताब्दी में के जब पूरा हिंदुस्तान मुगलों का शिकारगाह बन चुका था , देवगिरी और गुजरात के बाद रणथंबौर राज्य के शिकार पर दिल्ली से निकला मुग़ल शासक अलाउद्दीन खिलजी तिलपट नाम की जगह पर डेरा डाला । अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा का कत्ल कर इस कुर्सी पर सुल्तान बनकर बैठा था । उस गांव में आज खिलजी के निजी सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए उसका वकीलदार भतीजा अक़त खां अब वही इतिहास दोहराने को तैयार था । रात मुकाम पर जंगल से खिलजी जिंदा वापस नही लौटा । हजीबों ने बिस्मिल्लाह पढ़कर अक़त खां के ताजपोशी की तैयारी कर ली ।
अचानक एक भतीजे को सुलतान बनने की सूझी और यह नज़ारा सामने आया। लेकिन अकत खां एक जल्दबाज मूर्ख ही साबित हुआ वर्ना कहानी उलट चुकी होती और जिस तरह भाले की नोक पर जलालुद्दीन के कटे हुए सिर को कड़ा-माणिकपुर और अवध में घुमाया गया था, वैसे ही तिलपट में लुटेरों के इस काफिले में अलाउद्दीन का कटा हुआ सिर देखा गया होता। दिल्ली पर अगला कब्ज़ा अकत खां का होता और तब आज़ाद भारत के इतिहासकारों को एक और महान सुलतान मिल गया होता ।  पर ऐसा मुमकिन हो नही पाया । ताजपोशी के अंतिम रश्मों के दौरान शिविर के हरम में घुसते वक्त उससे खिलजी का कटा सिर मांग लिया गया ।
उधर अचानक एक टीले से ख़िलजी ने अपने अभी जिंदा होने का ऐलान करता है । दरअसल अकत खां ने कुछ लड़ाकों के साथ अलाउद्दीन पर हमला बोल दिया और जमकर तीर चलाए। अलाउद्दीन को भी कुछ तीर लगे। ठंड के दिन थे। उसने रुई का मोटा कपड़ा पहना हुआ था, जिसने बुलेट प्रूफ जैकेट का काम किया और वह बच गया। उसके बाजू में गंभीर घाव हो गए। अलाउद्दीन के आसपास मौजूद पैदल सैनिकों ने शोर मचा दिया कि सुलतान मर गया है। अकत खां इसे सच मानकर लौट गया और सुलतान की हत्या की घोषणा करके बाकायदा अपनी ताजपोशी करा ली ।  ख़िलजी ने भतीजे का गला कटवा कर उसके सिर को भाले की नोक पर टँगवा कर घुड़सवार के जरिये दिल्ली भिजवा दिया । वही दिल्ली जिसके सिंहासन पर भतीजा बैठना चाहता था ।

मराठा राज्य के संस्थापक , छत्रपति शिवाजी महाराज के दो पुत्र थे सम्भाजी और राजाराम । बड़े पुत्र सम्भाजी महाराज ने 1681 ई में ताज पहना और शिवाजी महाराज के काम को आगे बढ़ाने निकल पड़े । अपने महान दरबार और पांच लाख की विशाल सेना के साथ मराठा साम्राज्य के विस्तार की शुरूआत की और बीजापुर तथा गोलकोंडा के सल्तनत पर भी मराठा साम्राज्य का ध्वज फहराया । अपने आठ साल के शासन काल मे उन्होंने मराठाओं को एक मे भी लड़ाई औरंगजेब से हारने नही दिया । फरवरी 1689 में एक रणनीतिक बैठक में शामिल सम्भा जी (शंभू) को घेरेबंदी कर औरंगजेब ने मार डाला और उनकी पत्नी व पुत्र शाहू को बंदी बना लिया । शम्भा जी की मृत्यु पश्चात भाई राजाराम मराठा साम्राज्य का छ्त्रपति घोषित हुए और अपनी राजधानी को रायगढ़ से जिंजी, फिर सतारा ले गए । शिवाजी के पुत्र राजाराम ने मराठा शासन में 10 साल राज किया लेकिन मराठा साम्राज्य के राजसिंहासन पर एक दिन भी नही बैठा । वह अपने आप को अपने भतीजे, भाई शम्भा जी के पुत्र शाहू जी का प्रतिनिधि मानकर ही सम्राज्य के काम को आगे बढ़ाया ।
यह मराठा चाचा और उनका अपने साम्राज्य के उत्तराधिकारी, अपने भतीजे के लिए प्रतिबद्धता आज याद किये जाने लायक हैं । राजाराम के नेतृत्व में ही मराठाओं ने मुगलों के खिलाफ स्वतंत्रता का अभियान चलाया जो कुछ संक्रमणकाल के बावजूद उनके मृत्यु , 1700 इश्वी तक जारी रहा ।  औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1707 में राजाराम का भतीजा शाहू रिहा हुए तब तक मां ताराबाई जी की सरपरस्ती में शम्भा जी का अल्पायु भतीजा, चाचा राजाराम का पुत्र , शिवाजी- द्वितीय बनकर मराठा शासक बन चुका था ।  संघर्ष के बाद शाहू जी ने मराठा सेना में नियंत्रण रखने वाले ब्राम्हण परिवार, और राजस्व अधिकारी बालाजी विश्वनाथ की मदद से शासन में असल उत्तराधिकारी का दर्जा पाया और मराठा साम्राज्य दो भागों , कोल्हापुर और सतारा में बंट गया । हालांकि मराठा साम्राज्य में नियुक्त आठ सलाहकारों में मुख्य या पंत प्रधान ही छत्रपति के बाद शासन प्रमुख होते थे और ब्राम्हण बालाजी विश्वनाथ के पंतप्रधान यानी फ़ारसी शब्द पेशवा घोषित होने पर उनके बाद 19 वर्षीय पुत्र बाजीराव को पेशवा घोषित करते ही यह पद वंशानुगत हो गया।

पेशवा बाजीराव पहला ऐसा योद्धा था, जिसके समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर उसका सिक्का चलता था। वो अकेला ऐसा राजा था जिसने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था। पूना शहर को कस्बे से महानगर में तब्दील करने वाला बाजीराव बल्लाल भट्ट था, सतारा से लाकर कई अमीर परिवार वहां बसाए गए। निजाम, बंगश से लेकर मुगलों और पुर्तगालियों तक को कई कई बार शिकस्त देने वाली अकेली ताकत थी बाजीराव की। शिवाजी के नाती शाहूजी महाराज को गद्दी पर बैठाकर बिना उसे चुनौती दिए, पूरे देश में उनकी ताकत का लोहा मनवाया था बाजीराव ने। आज वह नई पीढ़ी के सामने भंसाली के फ़िल्म बाजीराव-मस्तानी का नायक चरित्र बाजीराव है । लेकिन देश में पहली बार हिंदू पद पादशाही का सिद्धांत भी इसी बाजीराव प्रथम ने दिया था। हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को तैयार था वो, पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, उसके जीवन का लक्ष्य था, लेकिन जनता किसी भी धर्म को मानती हो उसके साथ वो न्याय करता था। उसकी अपनी फौज में कई अहम पदों पर मुस्लिम सिपहसालार थे, लेकिन वो युद्ध से पहले हर हर महादेव का नारा भी लगाना नहीं भूलता था। उसे टैलेंट की इस कदर पहचान थी कि उसके सिपहसालार बाद में मराठा इतिहास की बड़ी ताकत के तौर पर उभरे। चूंकि बाजीराव ब्राह्मण पुत्र था ,मराठाओं में रक्तवंश और पदवंश के अंतर्विरोध के बीच मराठा साम्राज्य में पहले से विद्यमान ,उन्ही में से होल्कर , शिंदे,सिंधिया, पवार गायकवाड़ ,भोंसले जैसी ताकतें बाद में स्वतंत्र अस्तित्व में आईं ।

अच्छे और बुरे ,ढेरों चरित्र और उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं । यही इतिहास दोहरायी जाती रही है , सफल होने वालों के लिए अच्छी और मात खाने वालों के लिए बुरी । फ़िल्म भी समाज और इतिहास का आईना होता है । फ़िल्म को भले महज़ मनोरंजन मान लिया जाय, पर इतिहास सबक़ लेने की चीज भी हो सकती है । आज की राजनीति भी कल इतिहास बनेगा । तय हमें ही करना होगा कि इतिहास में कौन ख़िलजी और अक़त खां की तरह लिखा जाएगा या कौन मराठा राजाराम की तरह..!

Related Articles

Back to top button