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अयोध्या फैसले के बाद की शांति…

 

                              (ब्रजेश राजपूत,मप्र हेड एबीपी न्यूज)

शुक्रवार की रात नौ बजे ही थे कि सूरज का फोन आ गया। ये क्या कल अयोध्या विवाद का फैसला आ रहा है कोई चैनल चला रहा है, मैंने कहा फैसला आना तो है मगर गुरूनानक जयंती और ईद मिलादुन्नबी के बाद ही आने की संभावना है संभव है अगले हफते तक ही आयेगा। सूरज से बात खत्म करते करते टीवी आन किया ही था कि एबीपी न्यूज पर ब्रेकिंग चमक रही थी कल सुबह साढे दस बजे आयेगा अयोध्या विवाद पर फैसला। अचानक ये क्या हो गया सोच ही रहा था कि दफतर से फोन आने शुरू हो गये कल किस रिपोर्टर की तैनाती कहां होगी और जिम्मे क्या काम रहेगा। अपने हिस्से आया सुबह छह बजे से भोपाल में पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था का ब्यौरा देना और भोपाल में मौजूद राप्टीय स्तर के नेताओं की फैसले पर प्रतिक्रियाएं। इस बीच में भोपाल कलेक्टर तरूण पिथोडे ने फोन की घंटी बजते ही बिना औपचारिकता निभाये चंद सेकेंड में बता दिया कि फैसले के मददेनजर कल स्कूल कालेज बंद रहेंगे। थोडी देर बाद ही ये भी साफ हो गया कि अकेले भोपाल ही नहीं पूरे प्रदेश के सारे जिलों के स्कूल कालेज और शराब की दुकानें बंद रखी गयी हैं।
बस फिर क्या था समझ में आ गया था कि कल का दिन बहुत खास रहने वाला है। सालों से चल रहा रामजन्म भूमि बाबरी मसजिद के फैसले की घडी आ गयी है और हम सब उस ऐतिहासिक फैसले के गवाह बनने वाले हैं। गवाह तो हम उन दिनों के भी हैं जब छह दिसंबर 1992 में अयोध्या में देखते ही देखते विवादित ढांचा तोड दिया गया था। तब दैनिक जागरण दिल्ली में नयी नयी नौकरी लगी थी, कारसेवकों का माहौल कई दिनों से बन रहा था मगर ये नहीं सोचा था कि सारी सतर्कता के बाद इस तरह गुंबदों पर चढकर ढांचा गिरा दिया जायेगा। तब ऐसे चौबीस घंटे चलने वाले टीवी नहीं थे। सिर्फ दूरदर्शन पर निर्भर रहना होता था और उस सरकारी माध्यम से कभी ऐसी खबरों का प्रसारण किया जायेगा ये सोचा भी नहीं जा सकता था। मगर उत्तरप्रदेश का प्रमुख अखबार होने के कारण दैनिक जागरण के पास संवाददाताओं की अच्छी फौज थी और वहां से आ रही खबरों को जब डेस्क पर बैठकर संपादित कर रहे थे तो अखबार के दफतर में भी कुछ लोग खुशी से उछल रहे थे तो कुछ हैरान थे कि ऐसा कैैसे हो रहा है हमारे अखबार ने उस दिन दोपहर में एडीशन निकाला जो हाथेां हाथ बिका तब से अब तक बबहुत अयोध्या किनारे बहने वाली सरयू में बहुत पानी बह गया। उत्तरप्रदेश में किसी चुनाव के कवरेज के दौरान हम लखनउ गये थे तो वहां से फैजाबाद और अयोध्या का चक्कर भी लगा आये थे तब भारी सुरक्षा के बीच टैंट में बैठे रामलला के दर्शन किये थे। मगर रामलला को कभी छत नसीब होगी ऐसा लगता नहीं था क्योंकि बीच में मध्यस्थता के कई प्रयास सरकारों ने किये मगर कभी कानूनी बातें तो कभी आस्था का सवाल खडाकर इस विवाद को सुलझाने के बजाये उलझाने की ही कोशिशें लगातार हुयीं। इस बीच में 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सडकों के सन्नाटे भी याद आ रहे थे और अब जब चालीस दिन की लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाया जाने की खबर आयी तो बेताबी बढ गयी थी। रात साढे बारह बजे अभिपेक के फोन ने जगाया कि पुराने भोपाल के कुछ इलाकों में बाजार खुले हैं और लोग बदहवासी में खरीदारी कर रहे हैं जैसे कल कुछ बुरा घटित होने वाला है। अगली सुबह तडके ही नींद खुल गयी और फिर कहां नींद आयी, भगवान से यही प्रार्थना कर बिस्तर से उठा कि आज का दिन अमन चैन से गुजरे। हमेशा की तरह सुबह आठ बजे ही पूर्व सीएम शिवराज सिहं अपने बंगले पर हम टीवी रिपोर्टरो को मिल गये और प्रतिक्रिया के नाम पर उन्होंने अमन चैन की अपील कर दी। फैसले के अंदेशे में भोपाल भर के बाजार बंद ही रहे। जहंा खुलने की कोशिश की गयी तो पुलिस ने उनको चेतावनी दे दी। नतीजा ये रहा कि फैसला आने के बाद शाम तक बाजार बंद खुले ही नहीं। सुबह सुबह भोपाल के कंटोल रूम में पुलिस की टुकडियों को ऐसे ही रवाना किया जा रहा था जैसे चुनावी टोलियों को मतदान के एक दिन पहले भेजा जाता है। पता चला कि कलेक्टर और एसएसपी ने रात कंटोल रूम के सोफे पर सो कर ही गुजारी है। ये बात उन दोनों ने तब बतायी जब वो दोपहर तीन बजे बुधवारा चौराहे पर बैठकर सीताफल खाते हुये हालत पर नजर रखे हुये थे। पुराने भोपाल की गलियों में छुटटी जैसा ही माहौल था। बच्चे क्रिकेट खेल कर दिन गुजार रहे थे तो आम रहवासी भी समझ नहीं पा रहे थे कि कहां खडे होकर फैसले पर चर्चा करें। चाय पान के ठेले बंद थे और पुलिस ज्यादा लोगों को जमा होने नहीं दे रही थी। फैसला आने के बाद जब मैं पुराने और नये भोपाल की गलियों में घूमा तो यही लगा कि मुुुसलिम आबादी के चेहरे पर बैचेनी दिख रही थी तो बहुसंख्यक लोग ये मान कर चल रहे थे कि चलो एक विवाद खत्म हुआ अब देश ऐसे भावनात्मक मुददों में ना उलझे और विकास की राह पर आगे बढें। मगर क्या करें इतना तो समझ में आ गया है कि विकास की राह पर बढना तो सब चाहते हैं मगर राजनीति ऐसे मुददों में उलझाती है जिससे आगे की राह आसान ना हो। यहंा फिर ये लाइनें याद आ गयीं कि जिसको भूलना है वो अब तक याद है इसलिये तो विवाद है,, सरकार और प्रशासन सतर्क है और मान रहा है कि अगले एक दो दिन शांति से गुजरे तब महसूस हो पायेगा कि सालों पुराना विवाद सुलझ गया।

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