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भारतीय सिनेमा का ध्रुव तारा…ओम पुरी

 

(राखी नंदवानी ) 

 

भारतीय सिनेमा के श्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक ओम पुरी का आज 18 अक्तुबर को 69वां जन्मदिन है। सिनेमा जगत सहित देश विदेश में उनको याद किया जा रहा है। उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा। उनके साथ उनके निजी और सर्वजानिक जीवन में कई विवाद जुडें रहे है। वो बेबाक बोलने के लिए जाने जाते थे। उनकी आवाज इतनी अलग थी कि जब वो डायलॉग बोलत थे तो जहन में बस जाया करते थे। वैसे तो ओम पूरी के बारे सब कुछ सार्वजानिक है। उन पर किताब और कई लेख लिखे जा चुकें। फिर उनके 69वां जन्मदिन पर इनसाइड स्टोरी उनके जीवन की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी उनके चाहने वाले और अपने पाठकों के लिए पेश कर रहा है।

अभिनेता ओम पूरी का जन्म जन्म 18 अक्टूबर 1950 में हरियाणा के अम्बाला नगर में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने ननिहाल पंजाब के पटियाला से पूरी की। 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में अभिनय की शिक्षा दी। बाद में ओमपुरी ने अपने निजी थिएटर ग्रुप “मजमा” की स्थापना की।

ओम पुरी ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत मराठी नाटक पर आधारित फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी।वर्ष 1980 में रिलीज फिल्म “आक्रोश” ओम पुरी के सिने करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। ओम पूरी ने अपनी हिंदी सिनेमा करियर में कई सफल फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है।एक बिना फ़िल्मी परिवार से होने के कारण उन् हेंहिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाने के लिए काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी बेहतरीन अभिनय के चलते कई पुरुस्कारों से भी नवाजा गया है। इन्होने ब्रिटिश तथा अमेरिकी सिनेमा में भी योगदान किया है। ये पद्मश्री पुरस्कार विजेता भी हैं, जोकि भारत के नागरिक पुरस्कारों के पदानुक्रम में चौथा पुरस्कार है।

अपने कॉलेज के दिनों के दौरान वह एक प्रयोगशाला में सहायक के रूप में कार्य किया करते थे और उस समय उनको मात्र ₹ 125 वेतन के तौर पर मिला करते थे। अपने कॉलेज के दिनों के दौरान उन्होंने थियेटर अभिनय में दिलचस्पी विकसित की और बाद में थिएटर नाटक प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। थिएटर नाटक प्रतियोगिताओं में उनका कार्य देखने के बाद पंजाबी नाटककार हरपाल तिवाना ने उन्हें ₹150 की पेशकश की और उनके साथ थिएटर समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उनके थिएटर समूह के एक समर्थक उपायुक्त श्री कपूर ने उन्हें एक सरकारी नौकरी प्रदान की थी। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नई दिल्ली से अभिनय में प्रशिक्षण के दौरान वह और नसीरुद्दीन शाह एक अच्छे दोस्त बन गए थे। ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में शामिल होने से पहले वह शाकाहारी थे, लेकिन नसीरुद्दीन शाह के कारण वह मांसाहारी बन गए थे। एक बार नसीरुद्दीन शाह के पूर्व मित्रों ने उन पर चाकू से हमला कर दिया यह देखकर ओम पुरी अपनी मेज पर से कूद के भागे। उनके बचाव में हमलावरों को रोकने लगने और इसके बाद शाह को पुलिस वैन में अस्पताल ले जाया गया और उनकी जान बचा ली गई थी।
वर्ष 1975 में, उन्होंने बच्चों के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए फिल्म “चोर चोर छुप जा” (Robber Take Care) में अभिनय किया जिसके लिए उन्हें 3000 रुपये का भुगतान किया गया था। फिल्म “आक्रोश” (1980) में लहान्या भीखू के रूप में उनकी भूमिका के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  उन्हें फिल्म आरोहण (1982) और अर्द्ध सत्य (1983) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म “अर्द्ध सत्य” के लिए अमिताभ बच्चन पहली पसंद थे, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव से इनकार कर दिया, और सौभाग्य से यह प्रस्ताव ओम पुरी को मिल गया। 70 और 80 के दशक में ओम पुरी कला फिल्मों के सबसे लोकप्रिय अभिनेता थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें कला फिल्मों में अभिनय करते हुए अधिक मज़ा आया करता था, लेकिन उन्हें कारों और बंगले खरीदने के लिए पैसे कमाने के लिए वाणिज्यिक सिनेमा में जाना पड़ा था। वर्ष 2004 में, द ब्रिटिश फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिए उन्हें “Order of the British Empire” के मानद अधिकारी की उपाधि से नवाजा गया था। उनकी पहली पत्नी सीमा कपूर (तलाकशुदा) अभिनेता अन्नू कपूर की बहन हैं। वर्ष 2013 में, उन्होंने अपनी पुस्तक “Unlikely Hero: Om Puri” को प्रकाशित किया, जिसे उनकी दूसरी पत्नी नंदिता सी पुरी ने लिखी थी। Unlikely Hero Om Puri
उन्होंने फिल्म “द जंगल बुक” के हिंदी संस्करण में बघीरा के लिए अपनी आवाज दी। उन्हें आखिरी बार फिल्म “घायल वन्स अगैन” (2016) में सनी देओल के साथ देखा गया था। उन्होंने 15 से भी ज्यादा भाषाओं में कार्य किया था। 6 जनवरी 2017 को ओम पुरी का अंधेरी के उनके घर में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया था।

— ओम पूरी के निजी जीवन के ​विवाद

ऐसा कहा जाता है कि ओम पूरी ने पहली पत्नी सीमा कपूर पर काफी अत्याचार किए थे, लेकिन तलाक के बाद भी सीमा ने इस बात को कभी सार्वजनिक नहीं किया। उनकी दूसरी पूर्व पत्नी नंदिता ने उन पर घरेलू दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि ओम पुरी ने उन्हें एक छड़ी से मारा था। उनकी पत्नी नंदिता ने यह दावा किया कि ओम पुरी ने 14 साल की अपनी नौकरानी शांति के साथ सेक्स किया था और उन्होंने लक्ष्मी नाम की एक महिला के साथ ओम के रिश्ते को भी उजागर किया है, जिसके साथ ओम यौन और भावनात्मक रूप से एक रिश्ते में थे। ओम अपनी पत्नी के इस बयान से परेशान हो गए और कहा कि “मेरी पत्नी को मेरे जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र हिस्सा ऐसे साझा नहीं करना चाहिए था मैंने अपनी पत्नी के साथ इन अंधेरे रहस्यों को साझा किया था, क्योंकि सभी पति ऐसा करते हैं। अगर उन्हें साझा करना ही था तो कम से कम उन अनुभवों के बारे में सम्मान बनाए रखना चाहिए था, जो कि मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। क्या वह भूल गई है कि मैं समाज में खड़ा हू और मैंने आज जो कुछ हासिल किया है उसे पूरा करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की है?

— सर्वजानिक जीवन के विवाद

वर्ष 2011 में, वह दिल्‍ली के रामलीला मैदान पर अन्‍ना हजारे के साथ भष्‍ट्राचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। वह भष्‍ट्राचार के खिलाफ एक भाषण दे रहे थे तभी उन्‍होंने नेताओं की बेइज्‍जती करना शुरु कर दिया। ओम पुरी ने कहा था कि, ‘ये (नेता) अनपढ़ हैं, इनका क्‍या बैकग्राउंड है। आधे से ज्‍यादा सांसद गंवार हैं। हम देखते हैं टीवी पर, ये कैसे लड़ते हैं सदन में।’ उनके इस बयान से राजनेताओं ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया।

वर्ष 2012 में, एक फिल्‍म ‘चक्रव्‍यूह’ की शूटिंग के दौरान ओम पुरी ने नक्सलियों को लेकर एक विवादित बयान दिया था। ओम पुरी ने कहा था कि, ‘ये नक्‍सली आतंकी नहीं होते, ये अपने हक के लिए मजबूरन हथियार उठाते हैं। ये अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। ये कभी भी आम आदमी या गरीब को नुकसान नहीं पहुंचाते।’ उनका यह बयान काफी सुर्खियों में रहा था।

दादरी में एक मुसलमान के घर बीफ मिलने पर कुछ लोगों ने उसको जान से मार दिया। जिसके बाद से पूरे देश में बीफ बैन की मांग उठने लगी। तब ओम पुरी ने कहा था कि, ‘जो लोग भारत में बीफ बैन की वकालत करते हैं, वो ढोंगी हैं। हम बीफ का एक्‍सपोर्ट करके करोड़ों कमाते हैं’।

उड़ी में हुए आतंकी हमले को लेकर पूरे भारत में आक्रोश था। यह हमला सेना के कैंप में हुआ था और कई सैनिक शहीद भी हुए थे। टीवी चैनलों में इस मुद्दे को लेकर काफी बहस हुई। इसी कड़ी में ओम पुरी भी एक चैनल में इस मामले पर अपनी राय रख रहे थे। तभी उन्‍होंने एक ऐसा बयान दे दिया जिसकी खूब आलोचना हुई। ओम पुरी ने कहा था कि, ‘किसने सैनिकों से कहा था कि, जाओ आर्मी ज्‍वॉइन करो।’ इधर ओमपुरी का यह बयान आया, उधर सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक ओम पुरी के खिलाफ नारेबाजी और राजनीति शुरु हो गई। हालांकि बाद में ओम पुरी ने अपने इस बयान पर माफी मांगी और शहीद परिजनों से मिलकर उनका दुख दर्द भी बांटा।

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