पुलिस वाले और साहित्य ! लोग ऐसे आश्चर्य करते हैं जैसे कोई साठ साल में सेहरा बांध ले
(कीर्ति राणा)
मध्यप्रदेश। वर्दी में सख्त मिजाज नजर आने वाले अफसरों के दिल में एक साहित्यकार भी धड़कता है, इन अफसरों का यह पक्ष इंदौर लेखिका संघ के समारोह में सामने आया। यह आयोजन इसीलिए लीक से हटकर भी रहा जब आयपीएस डॉ प्रशांत चौबे, मनीषा पाठक सोनी और एयरपोर्ट डायरेक्टर आर्यमा सान्याल ने अपनी रचना प्रक्रिया की चर्चा की और कविताएं भी सुनाईं।
कहानी संग्रह ‘गूंज’ के बाद अब लव स्टोरी आधारित उपन्यास लिख रहे हैं एएसपी डॉ प्रशांत चौबे एएसपी (पूर्वी क्षेत्र) डॉ प्रशांच चौबे न सिर्फ हिंदी में गोल्ड मेडलिस्ट हैं, पीएचडी भी की है।मुक्तिबोध उनके प्रिय कवि हैं और रामचरित मानस प्रेरणा देती है।कबीर को भी अकसर गुनगुना लेते हैं।’गूंज’ कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुका है और अब लव स्टोरी लिख रहे हैं। देश के संभवत: पहले एक मात्र अफसर हैं जिनकी ‘स्मार्ट पुलिसिंग’ किताब सभी अनुसंधान संस्थानों में पढाई जाएगी ।डॉ चौबे खुद अपनी रचना प्रकिया को लेकर कहते हैं पुलिस सेवा में रहते साहित्य से जुड़ाव के चलते मुझे इमोशनली इंटेलीजेंस में बहुत मदद मिलती है लेकिन पुलिस वाले और साहित्य से जुड़ाव पर लोग ऐसे आश्चर्य करते हैं जैसे साठ साल की उम्र में कोई सेहरा बांध ले।जिस तरह गुरुनानक मोदीखाने में काम को भगवान की नौकरी मानते थे मैं भी पुलिस सेवा को विभाग की नहीं भगवान की नौकरी मानता हूं।मुक्तिबोध पीठ के अध्यक्ष त्रिलोचन सिंह से मिले स्नेह-मार्गदर्शन का जिक्र करने के साथ ही उन्होंने पहले की अपेक्षा अब साहित्य क्षेत्र में आ रही गिरावट के कारण गिनाने के साथ चिंता भी जाहिर की।उनकी वक्तृत्व शैली भीड़ भरी सड़क पर स्पीड में वाहन चलाने जैसी लेकिन रोचक थी।अपनी बात का समापन करते हुए उन्होंने ‘मैंने कविताएं लिखना अब छोड़ दिया है’ शीर्षक से कविता भी सुनाई। डॉ प्रशांत चौबे का परिचय संध्या राय चौधरी ने दिया।
-अमर चित्र कथा आयपीएस एग्जाम में तो सहायक बनी ही कॉमिक बुक में भी प्रेरक रही-एएसपी मनीषा सोनी पाठक
स्वतंत्रता सेनानी परिवार से आने वाली एएसपी मनीषा पाठक सोनी पाठक को इंदौर पदस्थापना के बाद लगा कि बच्चों को निशाना बना कर की जाने वाली आपराधिक घटनाओं पर नियंत्रण के लिए अपराधियों की धरपकड़ के साथ ही बच्चों को जागरुक करना अधिक जरूरी है। एक तरह से वे स्कूली बच्चों में पुलिस की ब्रांड एंबेसेडर बन गई हैं जो विभाग की ड्यूटी के साथ ही स्कूलों में बच्चों से सीधी चर्चा, उनकी परेशानियां जानने, चुनौतियों का सामना करने, गाइड करने का वक्त भी निकाल लेती हैं। उनके नानाजी ‘मध्य देश’ के संपादक होते थे। साहित्यिक वातावरण विरासत में मिला। पिता जी ‘पाठक बुक स्टोर्स’ नाम से दुकान संचालित करते थे, किताबें पढ़ने का शौक लग गया।(हंसते हुए कहने लगीं) मैं तो पाठक सरनेम लेकर ही पैदा हुई।ससुराल में हसबैंड, इनलॉज भी उनकी साहित्यिक गतिविधियों को प्रेरित करते हैं।उनकी नजर में साहित्य का सहज मतलब तो यही है कि सबको साथ लेकर चले और समाज के हित में हो। लेकिन हाल के वर्षों में साहित्य के नाम पर जो परोसा जाने लगा है उससे समाज पर बुरा असर भी पड़ा। स्त्री को पूजे जाने के पीछे उनका तर्क है उसके पास नॉलेज, पॉवर, प्रापर्टी की शक्ति होती है।इसीलिए वह लक्ष्मी, काली, सरस्वती के रूप में पूजी जाती है। पर आज की नारी अपने लुक, बालों की लंबाई, सास-ननद की बुराई में उलझती जा रही है।ऐसी नारी शक्ति किसी काम की नहीं। मैंने साहित्य के नाम पर जो कुछ लिखने की कोशिश की वह विभागीय नियमों के तहत ही लिखा।अमर चित्र कथा पढ़ना मुझे बेहद पसंद था। गर्मी में तो मैं और मेरा भाई मिलकर लायब्रेरी चलाते थे।अमर चित्र कथा ने पीएससी एगजाम में भी बहुत मदद की ।पौराणिक चित्रों वाली इन कथाओं से मेरी विचार क्षमता भी बढ़ गई। आयपीसी की धारा से ज्यादा साहित्य-हिंदी भाषा का ऐसा असर रहा कि मुझे हर जगह आशीर्वाद मिला। अमर चित्र कथा से ही इंदौर में बच्चों को आपराधिक घटनाओं को लेकर जागरुक करने की प्रेरणा मिली और कॉमिक बुक लिख कर बच्चों को अवेयर करने का कॉन्सेप्ट तैयार किया। इंदौर लेखिका संघ-प्रेस क्लब के साथ करा यह अच्छा है।उनका परिचय तृप्ति सिंह ने दिया।
-रोजमर्रा की विभागीय लिखापढ़ी में अंग्रेजी का एक भी शब्द उपयोग करने से बचती हैं -अर्यमा सान्याल
देवी अहिल्या अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तनन की डायरेक्टर अर्यमा सान्याल बंगाली हैं।विभाग में उन्हें वूमन ट्रैफिक कंट्रोलर की पायोनियर भी माना जाता है।लेकिन वे साहित्य को पहला और ड्यूटी को दूसरा प्रेम मानती हैं।इंदौर में पदस्थापना से पहले अंग्रेजी में लिखापढ़ी करती रहीं लेकिन यहां पदस्थ होने के बाद यह समझते देर नहीं लगी कि यह शहर ही नहीं मप्र हिंदी भाषी है। तो उन्होंने भी संकल्प ले लिया कि स्थानीय से लेकर दिल्ली तक विभागीय काम में अंग्रेजी का एक शब्द भी प्रयोग में नहीं लाएंगी। उनके इस संकल्प को स्टॉफ से मिले भरपूर सहयोग का ही परिणाम है कि शत प्रतिशत हिंदी में कार्य करने के लिए नगर राजभाषा परिषद से पुरस्कार भी मिल चुका है।जहां तक उनकी साहित्यिक रुचि की बात है तो अंग्रेजी में एक कविता संग्रह आ चुका है, कहानी भी लिखी है। बांग्ला में लिखती रही हैं। इंदौर में पदस्थ होने के बाद हिंदी में कविता लिख रही हैं और इस प्रेरणा के लिए वे हेमलता दिखित और कवि सरोज कुमार का आभार व्यक्त करना भी नहीं भूलतीं।इंदौर और सराफा के चटपटे व्यंजनों की आम इंदौरी की तरह उन्हें भी गहरी जानकारी है। उन्होंने एक के बाद एक जो अवसर, लक्ष्य,पांच, अनमोल रतन,जिंस,समय समय की बातें, प्रश्नावली, संजय, रिश्तेदारी, मां का जन्म शीर्षक से कविताएं सुनाई ‘प्यारे इंदौर’ कविता की हर लाइन में रात में रोशन रहने वाले सराफे के व्यंजनों का स्वाद ललचाने लगता है।आर्यमा सान्याल का परिचय सुषमा व्यास ने दिया।प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने भी संबोधित किया।