शेहला मसूद : एक बेवजह किया गया कत्ल
पत्रकार हेमेंद्र शर्मा की किताब “ शेहला मसूद : द मर्डर दैट शूक द नेशन” को पढने के बाद पता चलता है कि कई बार मर्डर बिना वजह हो जाते है और कर दिए जाते है या वजह वो होती ही नहीं जिसे दिखा दिया जाता है। इस किताब पर एबीपी न्यूज के मप्र हेड ब्रजेश राजपूत ने अपना नजरिया लिखा है…पढें
वो आठ साल पुरानी अगस्त की ही तो बात थी जब अन्ना आंदोलन के दौरान भोपाल में हुआ मर्डर देश भर की सुर्खियों में लंबे वक्त तक रहा। जी हां वो मर्डर था शेहला मसूद का। जिसे दिन के उजाले में ही घर के सामने गोली मार दी गयी थी। सोलह अगस्त 2011 का ही दिन था जब करीब साढे दस बजे शेहला का फोन बजा और उसने पूछा था कि तो आ रहे हो ना बोट क्लब आज दिन भर धरने परबैठूंगी वहां। हां हां जरूर आउंगा आजकल चैनलों पर अन्ना ही चल रहे हैं तो ये खबर जरूर करने आयेंगे। ये मैंने कहा। ओके बाय कहकर उसने फोन काटा था मगर बारह बजे बोट क्लब पर पहुंचने से पहले ही ये दिल दहला देने वाली खबर मिली कि शेहला को गोली मार दी गयी। और फिर क्या था ये खबर देश के सारे चैनलों की बडी खबर थी। हम सब दोपहर से लेकर रात तक और अगले कई दिनों तक खबर के सारे पहलू तलाशने में लग गये। अन्ना आंदोलन से जुडने से पहले शेहला भोपाल के एमपी नगर में इवेंटकंपनी मिरेकल चलाती थी, वाइल्ड लाइफ सहित कुछ ज्वलंत मसलों पर वो आरटीआई भी लगाती थी। शहर के नेताओं और अफसरों में भी वो अपनी सक्रियता के चलते पहचानी जाती थी। इसलिये शेहला की हत्या किसने और क्यों की होगी ये ऐसा सवाल था जिसका जबाव सीबीआई जैसी शीर्ष एजेंसी कई सालों की मेहनत के बाद ही तलाश पायी। ये मामला बेहद पेचीदा था इसमें सत्ताधारी पार्टी के दिल्ली से लेकर भोपाल तक बडे लोगों के नाम जुडे हुये थे और इन नामों के बीच में हत्यारों की तलाश करना ऐसा हरकुलीस काम था कि सीबीआई को पसीने छूट गये। ये जांच कैसे हुयी कैसे नाम आते गये कैसेउन नामों को हटाया जाता गया जिन नामों पर शक हुआ उनको कैसे घेरा गया ये सबजानना हो तो भोपाल के पत्रकार हेमेंद्र शर्मा की किताब “ शेहला मसूद : द मर्डर दैट शूक द नेशन” को पढना होगा। कुछ महीनों पहले अंग्रेजी में आयी ये किताब इन दिनों चर्चा में है। एक हाई प्रोफाइलमर्डर मिस्टरी कैसे अनफोल्ड हुयी इसकी सिलसिलेवार कहानी है इस किताब में। हेमेंद्र शेहला के मित्र रहे हैं और अच्छे रिपोर्टर भी इसलिये ये किताब इतनी दिलचस्प बनी है किआखिर तक कौन कहां कैसे पकडायेगा सस्पेंस बना रहता है।
हेमेंद्र बताते हैं कि इस किताब के सूत्र तलाशने के लिये उन्होंने कानपुर मुंबई और दिल्ली की खूब खाकछानी। हत्या भले की भोपाल में हुयी हो मगर पहले हत्यारों की तलाश भोपाल मेंही हुयी बाद में हत्यारों का संबंध कानपुर से निकला। कानपुर के ढेर सारे हिस्टीशीटर बदमाशों पर सीबीआई की निगाह गयी और उनके आधार पर ही भोपाल में बैठे हत्यारे धराये। मगर इन हिस्टीशीटरों की कुंडली जिस तरीके से हेमेंद्र ने इस किताबमें लिखी है वो अपराधियों के आपसी संबंध, दोस्ती, रिश्तेदारी और पैसों कीचाहत की कहानी भी कहते हैं। भोपाल से लेकर कानपुर की गलियों में अपराध करने वाले इन बदमाशोंके नाम सुनकर आप भी चौंक जायेंगे शाकिब डेंजर, साइंटिस्ट, बब्लू लंबा, चोंगा, शानूओलंगा, इरफान, ताबिस ये सारे वो थे जो इस हत्या में कहीं ना कहीं शामिल थे। सीबीआई इन नामों में हत्यारा तलाश रही थी तो भोपाल में बैठी पुलिस कुछ नेताओं केकहने पर उनके विरोधियों को ठिकाने लगाने की गरज से नयी नयी कहानी भी गढ रही थी। शेहला की भोपाल से लेकर दिल्ली तक के बीजेपी नेताओं की जान पहचानथी। इन नेताओं के विरोधी किसी भी तरह इस हत्याकांड में इनको फंसाकर अपना हिसाबबराबर करना चाह रहे थे। हेमेंद्र ने इस किताब में इस बात को बडे विस्तृत तरीके सेलिखा है कि कैसे भोपाल के एक बडे नेता का नाम इस हत्याकांड में जोडने की कोशिशहुयी और इस नेता की गिरफतारी पर सीबीआई जब दो फाड हुयी तो उसे एक नयी टीम ने जांच कर बताया कि इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं वरना भोपाल में बैठे लोग मानते हैं कि वो नेता जी अपने रसूख के दम पर गिरफतारी से बचे हैं। इस अंधे कत्ल कीजांच करने के लिये सीबीआई को लाखों फोन काल की डिटेल को खंगालना पडा तब जाकर छोटे छोटे सुराग मिले ओर उनसे हत्यारे और हत्या करवाने वालों तक पहुंचागया। उधर हत्या करवाने वाली पार्टी इस बात से बेफिक्र थी कि उसने कोई सबूत छोडे ही नहीं हैं कि जिससे उस तक पुलिस पहुंच पाती। उधर हत्यारे भी ऐसी कहानी गढकर बैठे थे कि उनको पकडे जाने के बाद भी छह महीने से ज्यादा सजा नहीं होती। मगरकई बार एक छोटी सी घटना ही सब कुछ बदल देती है। इस हत्याकांड में यही हुआ हत्यारे स्वयं सीबीआई के पास नयी कहानी गढकर तब जा पहुंचे जब उनको सुपारी देने वालोंके इरादों पर शक हुआ। उधर सीबीआई के सामने हत्या करवाने वालों के नाम का खुलासाहुआ तो वो भी दंग रह गये।
मगर हत्या क्यों हुयी ये सत्य तलाशने में भी सीबीआईको महीनों लग गये। इस हत्याकांड में कहानी के अंदर कहानी कैरेक्टर के अंदर कैरेक्टरइतने सारे हैं कि कुछ समझ पाना कठिन हो मगर हेमेंद्र के लेखन की ये खूबी हैकि उन्होंने इस सबको बहुत अच्छे से साधा है। सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों सेजानकारी पाना कितना कठिन होता है ये हम पत्रकार जानते हैं मगर हेमेंद्र ने रात दिन कामकर इस हत्याकांड की रिपोर्टिंग की और उसके आधार पर ये किताब सामने रखी। किताब के अंत में कोर्ट का जब फैसला आता है तो हेमेंद्र जांच अधिकारी से पूछते हैं शेहला को मारने की क्या वजह थी वो अधिकारी हंस कर कहता है यार उसे मारने की कोई वजह ही नहीं थी। क्या किसी सभ्य समाज में ये होना चाहिये कि बेवजह एक जवान लडकी को दिन दहाडे मार डाला जाये ? ये सवाल किताब पढने के बाद देर तक पीछा करता है।
पुस्तक समीक्षा