(होमेंद्र देशमुख)
शरद पुर्णिमा पर , चांद पर संकलित आलेख
छत्तीसगढ़ी गीत ,
‘चंदा के टिकली चंदैनी के फूल्ली पहिर के मैं आहूं
तोरे दुआरी -तोरे अटारी मोरे राजा रे…..
तैं मोर दियना अउ मैं तोर बाती
तोर दुआरी तोर अटारी मोरे राजा रे.. |’
‘चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सी तारा…..
नही भूलेगा मेरी जान
ये अवारा ,हो अवारा …|’
ये तो कल्पनाएं हैं,
फैंटेसी है !
लेकिन विज्ञान के लिए सौरमंडल का एक रहस्यमय उपग्रह है *”चांद* ” !
जो 63 अन्य उपग्रहों मे वजन के क्रम मे चौथा है जो आफ्रीका की क्षेत्रफल के बराबर का है |
अमेरिका ने 1950 मे चांद को परमाणु बम से उड़ाने की लगभग पूरी तैयारी कर ली थी | पर विडंबना देखिये, वहीं के एक सैनिक ने ही चांद पर 21 जुलाई 1969 को पहला कदम रखा …|
अगर अमेरिका , चांद यानि हमारे प्यारे चंदा-मामा को नेस्तनाबूद कर देता तो पृथ्वी पर दिन महज 6 घंटे का हो जाता |
चांद का आकार का अनुमान आप ऐसे लगा सकते हैं कि 49 चांद पृथ्वी मे समा सकते हैं | चांद पर गुरूत्वाकर्षण कम है | पर कहा जाता है, एक वैज्ञानिक ने एक गेंद फेंकी वह 800 मीटर जाकर गिरा | नील एडम आर्म स्ट्रांग ने जब पहली बार चांद पर कदम रखा तो अपोलो 2 यान के सीढ़ी से, चांद की सतह पर जरा जोर से कूद पड़े , तो उनके पैर के निशान पड़े |वह निशान आज भी चांद की सतह पर है । और चूंकि चांद पर हवा नही है इसलिए यह निशान आने वाले लाखों साल तक यूं ही बना रहेगा |
2008 में *चंद्रयान* , चांद पर जाने का भारत का पहला मिशन था ।
चांद तक पहुचने वाला, भारत छठवां और उस पर अपना झंडा लहराने वाला चौथा देश बना ।
चांद पर पानी है यह तथ्य भारत के ही खोजी दल ने प्रूफ किया |
चांद पर संरचना के कारण दाग का आभास होता है जो नैचुरल है ,पर ये दाग मिटेंगे नही बल्कि साल-दर-साल बढ़ने की आशंका भी जतायी जा चुकी है |
और भी बहुत कुछ है चांद की कहानी । पर..
पर ‘चांद ‘खुद हमारी दादी नानी की कई कहानियों मे सदियों से है और सदियों तक रहेंगी | बहुत लोगों ने चांद की बाते की होंगी |
कभी महसूस करिये उसे अपने रोजमर्रा और जीवन मे बहुत करीब पाएंगे | उन्ही कहानियों के पात्र जैसा | चांदनी रात में, आंगन के बिछौने पर वैसे ही रोशनी गिराती दिखती है जैसे मां ने अपने हाथों से अभी अभी मक्खन निकालकर किसी काले तस्तरी मे फैलाया है | खेत की झोफड़ी मे चांद की रोशनी किसान के फसलों को आशीर्वाद का अमृत बरसाते दिखती है |
*चांद* आज भी वही है । कहानी के हीरो, किस्सों के केंद्र, शीतल, सुकुन, अमृत बरसाने वाली | बिलकुल नही बदला | पर हमारी अनुभूति बदल रही है | सुविधाओं-सम्पन्नता और बिजली की चकाचौंध मे चांद को *अहसासने* का समय हमारे पास नही है | घर मे लाइट जाती है तो इनवर्टर शुरू हो जाता है | बाहर निकलें तो गाड़ी और शहर की कृत्रिम रौशनी ने चांद को एक लट्टू जैसा रूप दे दिया है | छत की मुंडेर पर, छप्पर की छेद से, रोशनदान और झरोखों पर चांद अब दिखता नही | क्योंकि हमारी बिजली की चकाचौंध ने उस दर्पण से उजले अहसास को घुप्प बना दिया है | कभी छत पर बिजली की रौशनी बंद कर , दो मिनट उस चांद को निहार कर देखिये वह अभी भी उसी नभ से, आपके जीवन को संचार दे रही है | ऐ रात के मुसाफिर, जरा अपनी गाड़ी की हेडलाइट बंद कर, पेड़ के पत्तों के बीच से सड़क पर गिरती चांद की दुआओं जैसी धवल रोशनी को अपने हथेली पर ले और चेहरे पर भर कर देख ! वह बिल्कुल नेह का , शीतल आंचल का अहसास देगी ।
वह आज भी वही है, आपका चंदा मामा !
और ,
रहेगा सदियों तक..!!!
आज बस इतना ही |