बाला बच्चन तो नहीं ही बनेंगे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष !
— पीसीसी अध्यक्ष के लिए क्षत्रपों ने अजय सिंह, अरुण यादव और उमंग सिंगार के नाम आगे बढ़ाए
(कीर्ति राणा)
मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का साफा किस के सिर बंधेगा? यह जिज्ञासा इस सप्ताह नतीजे तक पहुंच जाएगी लेकिन इतना तो तय है कि बाला बच्चन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेंगे। इसलिए नहीं कि उनमें संगठन क्षमता नहीं है, आदिवासी खेमे का परिचित चेहरा नहीं है, कांतिलाल भूरिया से बेहतर विकल्बप नहीं हो सकते हैं बल्कि इसलिए नहीं बनेंगे क्योंकि कमलनाथ उन्हें गृह मंत्री बनाए रखना चाहते हैं।ऐसी स्थिति में बहुत संभव है कि नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह का राजनीतिक पुनर्वास हो जाए।लाईन में तो पूर्व सांसद अरुण यादव भी हैं लेकिन वे पहले भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं और उनके उस वक्त के अध्यक्षीय कार्यकाल में ऐसी उपलब्धियां दर्ज नहीं है कि केंद्रीय नेतृत्व उन्हें आंख मूंद कर पुन: यह पद सौंप दे।’श्रीमंत’ को प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए बाकी सारे क्षत्रपों के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ मानने वाले सिंधिया समर्थकों को यह बात अब तक समझ नहीं आई है कि मप्र की अपेक्षा उन्हें महाराष्ट्र के लिए उत्तम क्यों मान लिया जबकि सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद सौंपने संबंधी राय व्यक्त करने में उन्होंने तो कमलनाथ की अपेक्षा अधिक तत्परता दिखाई थी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव स्क्रनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाकर कमलनाथ के काम में अपने मंत्रियों के माध्यम से अड़ंगे डालने के प्रयासों से भी मुक्त करने का रास्ता निकाल दिया है लेकिन समर्प्रथक अभी भी मान रहे हैं कि सिंधिया ही पीसीसी चीफ के लिए सर्वोत्तम रहेंगे।हालांकि अध्यक्ष पद के लिए सिंधिया ने उमंग सिंघार के नाम का दबाव बना रखा है।गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी की निष्ठा डांवाडोल होने के बाद से सिंघार इस खेमे में मजबूत हुए हैं यह मैसेज इस तरह भी मध्यभारत की राजनीति में जा चुका है कि सिंधिया ने उन्हें टिकट तो दिलाया ही विधानसभा चुनाव के दौरान सिर्फ सिंघार के क्षेत्र में ही मन से सभा करने आए थे।यूं तो कमलनाथ मंत्रिमंडल में सिंधिया के सक्रिय मंत्रियों में गोविंद राजपूत भी हैं लेकिन परिवहन मंत्रालय जैसा मलाईदार विभाग मिलने के बाद से राजपूत अब पहले की तरह सिंधिया समर्पित नहीं रहे, उनके इसी रवैये से सिंधिया नाखुश भी हैं यह सोमवार को महाकाल की शाही सवारी के दौरान भी नजर आया जब राजपूत यहां वहां समर्थकों के साथ सेल्फी में व्यस्त थे और सिंधिया उज्जैन से लेकर इंदौर आने और रवाना होने तक तुलसी सिलावट को तवज्जो देते रहे।शायद वजह यह भी हो कि सिंधिया के गत दिनों भोपाल आगमन पर उनके सम्मान में दिया भोज आदि सिलावट ने आयोजित किया था।
मध्य प्रदेश में गुटों में बंटी कांग्रेस के क्षत्रपों की बात करें तो कमलनाथ के अति विश्वस्त की सूची में पहला नाम बाला बच्चन का ही आता है।सीएम के बाद सबसे पॉवरफुल विभाग गृह उनके पास है। मंत्रिमंडल गठन के दौरान इस विभाग पर दिग्विजय और ज्योतिरादित्य खेमे का भी प्रेशर था कि यह मंत्रालय उनके किसी प्रिय विधायक को मिल जाए।तब आदिवासी खेमे का हवाला देकर बाला बच्चन का नाम आगे बढ़ाकर एक तरह से कमलनाथ ने यह विभाग अपने पास रख लिया।पुलिस महकमे में जितने भी फेरबदल हुए हैं इनमें बाला बच्चन के आदेश से पहले फाइले ओएसडी प्करवीण कक्कड़ से होती सीएम हाउस पहुंचती रही हैं।मंत्रिमंडल विभागों के बंटवारे के तहत सिंधिया कोटे से परिवहन विभाग गोविंद राजपूत और दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह को नगरीय विकास प्रशासन विभाग देकर कमलनाथ ने अपने कट्टर समर्थक सज्जन वर्मा की दिली इच्छा को अनसुना कर उन्हें लोकनिर्माण विभाग का दायित्व सौंपा था, तब भी यही प्रचार हुआ था कि दिग्विजय सिंह ने अपने मुखर विरोधी की चाहत वाला विभाग अपने पुत्र को दिलवा दिया।
अब जबकि कमलनाथ दोहरे दायित्व में से प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं तो वे नहीं चाहेंगे कि बाला बच्चन को गृह मंत्री जैसे विभाग से मुक्त कर पीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने पर सहमति दें।इसके पीछे मंशा यह है कि बाला बच्चन को अध्यक्ष बनाए जाने पर उन्हें एक नेता-एक पद नियम के चलते गृह मंत्री पद छोड़ना होगा, ऐसी स्थिति में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में गृह विभाग के लिए नए सिरे से सिंह और सिंधिया खेमा दबाव बना सकता है।ऐसे किसी भी दबाव के आगे झुकने से बेहतर है कि बाला बच्चन को ही मंत्री बनाए रखें।
यही कारण है कि अब अजय सिंह के ‘पोलिटिकल रिहेबलिटेशन’ के प्रयास शुरु हो गए हैं।दस साल सीएम, केंद्र में मंत्री आदि रहे स्व अर्जुन सिंह की राजनीतिक विरासत का भार रहा तो अजय सिंह के कंधों पर ही लेकिन जिस तरह करारी शिकस्त के चलते भाजपा ने चुरहट से सीधी तक उन्हें घर बैठाने का इंतजाम कर रखा है उन सारी तिकड़मों से राहत के लिए भी अजय सिंह को प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व दिला कर ठाकुर लॉबी में भी दिग्विजय सिंह सर्वमान्य नेता वाली छवि को मजबूत कर लेंगे।इस पद के लिए पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि नेता के रूप में अरुण यादव भी सक्रिय हैं ।हाल के दिनों में उनके पक्ष में यही मजबूत तर्क है कि विदिशा से नहीं जीत सकेंगे यह हकीकत जानने के बाद भी उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के आदेश पर यहां से चुनाव लड़ने में ना-नुकर नहीं की।दोनों भाइयों में अरुण हार गए और कसरावद से जीते सचिन यादव को कृषि मंत्री बना कर एक तरह से यादव समाज (कभी डिप्टी सीएम रहे स्व सुभाष यादव) के सम्मान को बरकरार रखा है