एकांत की आहट: साधारण सी घटनाओ को असाधारण रूप से अनुभव करने की अभिव्यक्ति
अन्दर के स्कूल की तर्ज़ पर ही “एकांत की आहट” डॉ. मनोहर अगनानी की नयी प्रकाशित पुस्तक है, शीर्षक और कवर पेज से गंभीरता का अनुमान देती यह पुस्तक मूलतः एकांत के क्षणों में अतीत की बहुत साधारण सी घटनाओ को असाधारण रूप से अनुभव करने की अभिव्यक्ति है. इस पुस्तक में डॉ. मनोहर अगनानी ने अपने जीवन के उन सभी लम्हों को जो उनके दिल में घर किये हुए हैं, न केवल बहुत सादगी और ताजगी से बयाँ किया है बल्कि हर घटना के मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक आधार पर विश्लेषण कर पाठक को चिंतन का अवसर भी प्रदान किया है. बहुत छोटे छोटे अनुभवों के 52 किस्सों की माला है जिसमे एक के बाद एक संस्मरणों को पिरोया गया है. भाषा बनावट से दूर सहजता और सरलता तथा प्रवाहपूर्ण है. घटनाये जो वर्णित की गयी है वे भी इतनी आम से हैं कि पाठक स्वयं को सहज ही उनमे शामिल हो जाता है। वाकयो को बड़े ही रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत करने में डॉ. अगनानी सफल रहे हैं. घर परिवार के, करीबी रिश्तेदारों के ज्यादातर अनुभव हैं, कुछ मित्रो के साथ गुज़रे वक़्त की यादें हैं तो कहीं गुज़रे ज़माने खासकर बचपन और संयुक्त परिवार की यादें हैं जो शायद इस पीढ़ी के हर व्यक्ति की यादो में शामिल है, उन यादो की खुशबू हमेशा साथ रहती है लेकिन बदले वक़्त के साथ चलने के लिए भी खुद को बदलना जरूरी है. हाँ, इन यादो से लेखक के अन्दर छुपे एक मध्यम वर्गीय, संस्कारी और संयुक्त परिवार से आत्मा से जुड़े हुए इंसान से बार बार मिलने का अवसर भी मिलता है जो अपनी तमाम उपलब्धियों और सफलताओ के बाद भी अपनी उस सादगी को बेबाकी से जाहिर करता है जो आमतौर पर इस दिखावे की दुनिया में कम ही देखने में मिलता.
यादो के इस कारवां में कुछ अन्य जीवो जैसे कुत्तो और गिलहरी आदि के संस्मरण भी शामिल हैं. खास बात ये है कि हर संस्मरण के बाद एक सन्देश है..एक चिंतन है जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर देता है उदाहरण के लिए- “मै फिर सोचने लगा की इंसानों को भी तो बहुत से खतरों का सामना करना पड़ता है. दिल्ली में वायु प्रदूषण भी तो एक बड़ा खतरा है, उसके लिए कोई क्यों हुंकार नहीं भरता? सचेत नहीं करता, गिलहरियो की तरह ! और अगर आवाज़ उठाता भी है, तो उसकी आवाज़ नक्कारखाने मे तूती की तरह क्यों दब जाती है? क्या इसलिए कि वायु प्रदूषण का खतरा शेर, बिल्ली की तरह झपटता नही दिखता! तत्काल अजगर की तरह निगले जाने का भय नहीं दिखाता? और इसलिए सामूहिक प्रयास नहीं होता?”
कुछ वाकये अकस्मात ही पाठक के होंठो पर मुस्कुराहट बिखेर देते हैं. कहीं कहीं व्यंग्य विधा भी अनुभव होती है, लेखक अपने प्रिय सामाजिक सरोकार के विषय को भी भूले नहीं। प्रसंगों में बहुत प्रभावी ढंग से लैंगिक समानता और असमानता के मुद्दों को भी सम्मिलित किया है. ‘असंगत अनुमान’ और ‘जब उसका हो, अपना घर’ शीर्षक के प्रसंगों में कन्या भ्रूण हत्या और महिला समानता के मुद्दों को भी प्रस्तुत किया गया है. लेखक ने स्वयं अपने मन के विचारो, वहम सहित कमजोरियों का भी ज़िक्र किया है… सामाजिक सरोकारों के साथ साथ इंसानी जज्बातों, बढती उम्र के साथ बढती परेशानियों, बदलती प्राथमिकताओ और मनोभावों को भी व्यक्त किया है. सन्दर्भ बहुत जाने पहचाने हैं.. बिलकुल वैसे जैसे मेरे और आपके आसपास बिखरे पड़े हैं..
लेखक के संबध में कुछ बातें…
यश पब्लिकेशन के बैनर तले हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशित हुयी है “एकांत की आहट”. पुस्तक के लेखक हैं डॉ. मनोहर अगनानी एम्.बी.बी.एस हैं तथा मध्य प्रदेश कैडर के सीनियर आई.ए.एस. अधिकारी हैं। साथ ही साथ अध्ययन और लेखन के शौक के कारण वे बतौर लेखक भी स्वयं को स्थापित कर चुके हैं। बेटियों की संख्या में गिरावट ने डॉ. मनोहर अगनानी को बहुत व्याकुल किया और उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या और लैंगिक असमानता को रेखांकित करते हुए न केवल ज़ोरदार आवाज़ उठाई बल्कि शासन और प्रशासन स्तर पर तथा व्यक्तिगत स्तर पर भी सार्थक और ईमानदार प्रयास भी किये। डॉ. मनोहर अगनानी की दो पुस्तकें “Missing Girls” और “कहाँ खो गयी बेटियां” भी इसी दिशा में की गयी पहल हैं। इसके बाद डॉ. अगनानी की प्रकाशित अन्य पुस्तक “अन्दर का स्कूल” अपनी तरह की मौलिक पुस्तक है जो जीवन के इर्दगिर्द रोज़मर्रा के अनुभवों, रिश्तो को अपने ही अंदाज़ और नज़रिए से बयान करने की खूबसूरत कोशिश के रूप में सामने आई। पुस्तक अमेज़न और फ्लिप्कार्ट पर ऑनलाइन खरीदी जा सकती है. मुझे तो बहुत पसंद आई, यकीनन पुस्तक को पढने के बाद आपके अनुभव भी कुछ ऐसे ही होंगे या इससे कहीं बेहतर हो सकते हैं..।
(पुस्तक समीक्षा सविता ठाकुर)