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दो दलीय प्रणाली की ओर बढ़ता जनादेश
-जनादेश के मुखर स्वर का मौन
(शैलेष तिवारी)
23 मई को जनादेश ने देश के तमाम संजीदा बुद्धिजीवी वर्ग के सोशल मीडिया पर प्रदर्शित किए जा रहे आंकलन और अनुमान को झुठलाते हुए भाजपा नीत एन डी ए को नतीजे और रुझान की शक्ल मे 348 तक पहुंचा दिया। हालांकि चाणक्य के एक्सिट पोल के अनुसार ही परिणाम आए। इस मुखर जनादेश का मौन भी बहुत कुछ कह रहा है। जो लोकतंत्र की सेहत को बेहतर करता है और हॉर्स ट्रेडिंग जैसी कुचेष्टाओं पर लगाम भी लगाता है।
अकेली भाजपा को ही थ्री नॉट थ्री से लेस कर दिया है। अपने ज़माने की सबसे ज्यादा मारक क्षमता वाली रायफल का नाम भी थ्री नॉट थ्री है। मोदी जी को भी वोटर ने वही फिगर गिफ्ट किया है कि अब वो देश की समस्याओं को अपनी थ्री नॉट थ्री की ताकत से नेस्तनाबूत कर दें। खैर हमारा विषय अभी जनादेश है। 2014 की तुलना मे वोटर ने एन डी ए और भाजपा दोनों की संख्या को बढ़ाया है। उस समय भाजपा जहाँ 282 के आंकड़े पर थी तो एन डी ए 336 के आंकड़े पर स्थिर हुआ। अब 2019 की तरफ देंखे तो भाजपा 303 के फिगर को छू गई तो एन डी ए भी लगभग साढ़े तीन सौ की संख्या के पास है। यह जनादेश का मुखर स्वर है। जिसे मोदी शाह की जोड़ी ने विनम्रता से वोटर को समर्पित कर दिया है। जनादेश मे यूपीए की चर्चा करें तभी जनादेश का मौन भी मुखरित हो पाएगा। कांग्रेस नीत यूपीए को लगभग 90 सीटों पर काबिज होना बताया जा रहा है। इसमे कांग्रेस अकेले को 52 की संख्या पर दर्शाया है। कांग्रेस के इस प्रदर्शन को उसका सूपड़ा साफ होना बताया जा रहा है। जो संख्या के हिसाब से ठीक भी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश भी की है।
एक नजर 2014 के चुनाव मे यूपीए की कुल जमा साठ और कांग्रेस की 44 सीटों पर भी नजर दौड़ा लें। अब बात जनादेश के मौन स्वर की। प्रतिशत के नजरिये से देखें तो कांग्रेस ने इस चुनाव मे अठारह प्रतिशत सीट 2014 की तुलना मे ज्यादा पाई हैं। यूपीए ने साठ सीट से ड्योडी छलांग लगाते हुए 2019 मे नब्बे सीट हासिल की हैं। भाजपा ने 282 की तुलना मे प्रतिशत के नजरिए से 303 सीट हासिल कर सात प्रतिशत सीट ज्यादा हासिल की हैं। एन डी ए ने मात्र तीन प्रतिशत की बढ़त हासिल की है। इसका मतलब प्रतिशत की दृष्टि से यूपीए ने ठीक ठाक प्रदर्शन किया है, वो भी मोदी की सुनामी में। तीसरे मोर्चे यानि अन्य की सीटें 2019 के चुनावों मे घटी हैं।
यही वह बिंदु है जो जनादेश के मौन की मुखर आवाज है कि जनता दो दलीय प्रणाली की तरफ बढ़ भी रही है और अपनी आस को टिकाए हुए है। जन के मन को हॉर्स ट्रेडिंग जैसा लोकतंत्र का कुरूप चेहरा देखना पसंद नहीं है। हालांकि अभी भी अन्य के खाते मे यूपीए से ज्यादा सीट हैं लेकिन कमी के साथ। यही आशांवित् करता है कि भारतीय लोकतंत्र दो दलीय या दो गठ बंधनीय पक्ष की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहा है। ये सुखद है और लोकतंत्र की सेहत के लिए टॉनिक भी…।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)