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नेताओं के बिगड़े बोल, चुनाव आयोग के लिए चुनोती
(शैलेश तिवारी)
लोक सभा चुनाव के लिए आज मतदान का अंतिम चरण पूरा होने जा रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के बिगड़े बोल के लिए ये चुनाव हमेशा याद रखा जाएगा। एक काले अध्याय की तरह। आयोग ने नेताओं के बिगड़े बोल पर अंकुश लगाने के लिए उन्हें प्रचार करने से प्रतिबंधित तो किया लेकिन बोल वचन में कमी नही आई। यही वो बात है जो चुनाव आयोग के लिए चुनोती है।
कटु वचनों, बिगड़े बोलों, मर्यादा खोते चुनाव प्रचार के लिए सभी दलों ने नीचे गिरने का जो अद्भुत कारनामा अंजाम दिया है। वो संजीदा बुद्धिजीवी वर्ग सहित आम आदमी को भी पूरे चुनाव के दौरान कचोटता रहा। उसके पास मन मसोस कर रह जाने के सिवा कोई चारा भी न था। सो रह गया मन मसोस कर। लेकिन आस भी मन मे थी कि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का उपयोग कर कुछ अंकुश लगाएगा। हनुमान की तरह शक्ति संपन्न चुनाव आयोग अपनी शक्तियों को किसी शाप के वशीभूत न होकर किसी के प्रभाव मे अपनी शक्तियों को विस्मृत कर बैठा। भला हो जाम्बंत बने सुप्रीम कोर्ट का जिसने आयोग को उसके बल से अवगत करा दिया। आयोग ने बल प्रयोग करते हुए योगी आदित्य नाथ, प्रज्ञा ठाकुर,आदि सहित अन्य के बिगड़े बोलों की वजह से चुनाव प्रचार के लिए प्रतिबंधित कर दिया। चुनाव के इतिहास मे घटी इसी घटना ने आम आदमी को राहत तो दी लेकिन बोल वचनों के गिरते स्तर को सुधार नही सका। न ही नेताओं के व्यवहार के गैर मर्यादित रवैये मे कोई खास फर्क पड़ा। सवाल की गंभीरता तब और बड़ जाती है जब बंगाल मे चुनाव का हर चरण हिंसात्मक रूप धारण कर लेता है।
सरकार बनाने के लिए वो तमाम हथकंडे खुल कर उपयोग होते रहे जिन्हें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम इजाजत नही देता। मसलन जाति, धर्म आदि के अनुसार उम्मीदवारों का निर्धारण भी हुआ और सीटों का विश्लेषण भी इन्ही आधारों पर होता रहा। आयोग की आँखें खुली होने के बावजूद यह सब अनदेखी कर गई। कारण कुछ भी रहे हों लेकिन ये लोकतंत्र की सेहत को खराब करने की कवायद रही। अस्वस्थ लोकतंत्र के गर्भ से स्वस्थ और राष्ट्र हित की सरकार का जन्म लेना कल्पना से परे है। क्या चुनाव आयोग इस पर नियंत्रण पाने मे समर्थ नहीं है अथवा उसने अपनी स्वतंत्रता को किसी की निष्ठा मे तब्दील कर दिया है। सामान्य उम्मीदवार किसी धार्मिक आयोजन मे शामिल होने से भी घबराता है लेकिन देश की सबसे हॉट सीट का उम्मीदवार बेखौफ होकर भीड़ के साथ गंगा आरती करता है।
अब सवाल यह है कि इन पर अंकुश के क्या तरीके आयोग अपनाये…। जिससे चुनावों की निष्पक्षता और अधिक विश्वसनीय बन सके। बिगड़े बोल को नियंत्रित करने के लिए नोटिस इस बात का दिया जाए कि जुबान पर लगाम नही लगाने की वजह से संबंधित की उम्मीदवारी निरस्त की जा सकती है। तीन बार आचरण और बयानबाजी मे मर्यादा का उल्लंघन हो जाने पर उम्मीदवारी निरस्त कर दी जाए। बेशक ये कदम बोल वचनों को मर्यादित करने मे कारगर साबित होगा। जाति और धर्म के आधार पर न केवल चुनाव प्रचार पर अंकुश लगे वरन इस आधार पर उम्मीदवार का चयन और और मीडिया मे उसके विश्लेषण पर भी प्रभावी रोक लगे। कुनेन की इन गोलियों के बगैर लोकतंत्र का स्वस्थ होना संभव नही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)