गुडी पडवां: भारतीय या हिंदू नव वर्ष नहीं, मराठी नववर्ष है…
आज 6 अप्रैल गुड़ी पड़वा है। सिंधी भाइयों का पर्व चेटीचंड भी है। लेकिन यह भारतीय नववर्ष वर्ष या हिंदू नव वर्ष नहीं। हां, इसे मराठी नववर्ष माना जा सकता है। क्या आपको पता है कि भारत में कितने नव वर्ष मनाए जाते हैं? क्या आपको पता है कि हिंदू समुदाय के लोग कितने नव वर्ष मनाते हैं?
भारत में जो नव वर्ष मनाए जाते हैं, वह इस प्रकार हैं-मिजो, नगा, असमी, बांग्ला, उड़िया, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, पंजाबी, कश्मीरी, मराठी और गुजराती। हो सकता है कि कोई नववर्ष छूट गया हो। खास बात यह है कि यह सभी नववर्ष हिन्दू ही मनाते हैं। यही विविधता हिंदुत्व की शान है, पहचान है। फिर साफ करते चलें कि गुड़ी पड़वा मराठी नववर्ष है और इसे हिन्दू और भारतीय नववर्ष की तरह स्थापित करने की जो साजिश हो रही है, उसका कारण अलग है।
आरएसएस हिन्दू धर्म के मिजाज को बदलना चाहता है। जिस तरह से ईसाइयत और इस्लाम में एक समय धर्म सत्ता और राज्य सत्ता का एक ही केंद्र होता था, आरएसएस हिंदू धर्म को भी वैसा ही बना लेना चाहता है। आरएसएस की यह कल्पना है कि उसका जो सुप्रीमो होगा, वही हिंदुओं का धार्मिक प्रमुख होगा और भारत का राष्ट्र प्रमुख भी। इसी सोच के तहत स्वयंसेवक अपने सरसंघचालक को परम पूजनीय कहते हैं। मानते भी हैं। इसी सोच के तहत आरएसएस के लोग हिंदुओं के सच्चे संतों से दूरी बनाकर चलते हैं। यह महज संयोग नहीं है कि आरएसएस का कोई भी प्रमुख आज तक कभी किसी शंकराचार्य से नहीं मिला। आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व में शामिल अन्य नेता भी हमारे पूज्य शंकराचार्य और मठाधीशों से दूर रहते हैं।
इन लोगों को इत्मीनान है कि एक दिन हिंदुत्व इनके सपनों का हिंदुत्व जरूर बनेगा, जिसमें संघ प्रमुख ही राज्य सत्ता और धर्म सत्ता का केंद्र होगा। गुड़ी पड़वा को भारतीय या हिंदू नव वर्ष के तौर पर स्थापित करने की कोशिश इसी परियोजना का एक हिस्सा है।
गुड़ी पड़वा को नववर्ष के रूप में ये पूरे हिंदू समुदाय पर इसलिए थोपना चाहते हैं कि इसी दिन 1889 में आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का जन्म हुआ था। हिंदू धर्म के खिलाफ हो रही इस साजिश को समझना जरूरी है।
(राजेन्द्र चतुर्वेदी,लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)