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ताई के खिलाफ कविराज के तेवर ने कांग्रेस में बढ़ा दिए टिकट के दावेदार


इंदौर कीर्ति राणा

भाजपा से कौन, कांग्रेस से कौन? लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही दोनों दलों में यह ‘कौन’ की जिज्ञासा चर्चा में है।बहुत संभव है कि दस मार्च तक आचार संहिता घोषित हो जाए।भारत-पाक के बीच अभी जो हालात हैं यह और बिगड़ते हैं तो आचार संहिता तो ठीक चुनाव भी आगे बढ़ने की संभावना बन सकती है। यदि चुनाव आगे नहीं बढ़े तो भाजपा से  सुमित्रा महाजन के नौंवी बार चुनाव लड़ने की संभावना पर सत्तन गुरु का संकल्प खेल बिगाड़ सकता है।ताई के खिलाफ कविराज के तेवर ने भाजपा में तो संशय की स्थिति तो बढाही दी है, कांग्रेस में भी टिकट के दावेदार बढ़ा दिए हैं। सत्तन गुरु के तेवर से उत्साहित इन दावेदारों को लग रहा है कि सुमित्रा महाजन की जीत आसान नहीं रहेगी। 

सत्तन गुरु ने चाल ही ऐसी चली है कि सुमित्रा ताई को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया तो वे निर्दलीय लड़ेंगे। उन्होंने नगर भाजपा पर भी यह दबाव डाला है कि पेनल में उनका नाम भी शामिल किया जाए। सत्तन गुरु ने ताई के बदले कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, उषा ठाकुर के नाम सुझाकर पार्टी नेताओं को पशोपेश में डाल दिया है। 

ताई का नाम लगभग तय माना जा रहा है। यही नहीं संगठन ने विधायक रमेश मेंदोला को इंदौर संसदीय क्षेत्र का प्रभारी बनाकर एक तरह से विजयवर्गीय, मेंदोला को इंदौर से प्रत्याशी बनाए जाने की अटकलों पर विराम लगा दिया है।संगठन के प्रादेशिक नेताओं ने जिस तरह पिछले सप्ताह सत्तन गुरु से बंद कमरा चर्चा की थी तो माना जा रहा था कि गुरु को मना लिया गया है।ऐसी धारणाओं को ध्वस्त करते हुए सत्य आग्रह के साथ सत्तन फिर मुखर हो गए हैं। 

यही वजह है कि भाजपा में अंदरुनी स्तर पर माना जा रहा है कि सत्तन गुरु ने किसी की नहीं सुनी और ताई को टिकट मिलने पर अपने संकल्प पर अड़े रहे तो इंदौर सीट जीतना भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा जैसा हो जाएगा।भाजपा में इंदौर सीट से प्रत्याशियों के नामों का पेनल भेजने की स्थिति पहले तक नहीं थी किंतु सत्तन गुरु के मैदान से नहीं हटने की घोषणा के बाद इंदौर सीट के लिए नामों का पेनल बना तो उसमें सत्तन गुरु के साथ अन्य नाम भी जुड़ना तय है। 

सुमित्रा महाजन के मुक़ाबले कांग्रेस के पास हाल फ़िलहाल कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो उन्हें नौवीं बार लोकसभा में जाने से रोकने के साथ ही इंदौर की चाबी झपटने का चमत्कार दिखा सके। ऐसे में राऊ केविधायक जीतू पटवारी की पत्नी रेणुका का नाम ख़ूब चल पड़ा है।किसी विधायक को लोक सभा का चुनाव लड़ाने का ख़तरा कमलनाथ नहीं उठा सकते क्योंकि ऐसा करने पर विधानसभा में विधायकों का आंकड़ाकम हो जाएगा।फिर एक ही परिवार के दूसरे सदस्य को चुनाव लड़ाने की मंजूरी मिल जाएगी? परिवारवाद के आरोपों के चलते ऐसा संभव तो नहीं लगता लेकिन कांग्रेस में अभी जितने नाम चल रहे हैं वो घिसे-पिटे और हरल्लों की फौज के सरदार की नजर से देखे जाते हैं।

तो इन नए चेहरों पर भरोसा करेगी कांग्रेस ?

रेणुका पटवारी

क्या जीतू पटवारी की पत्नी रेणुका के नाम पर मंजूरी मिल जाएगी? रेणुका राजनीति की घाघ तो नहीं हैं लेकिन पति जीतू के चुनाव प्रचार में साथ रहने के कारण वे चुनावी लटके-झटके, मतदाताओं को प्रभावित करने की कला तो जानती ही हैं। अब विधायक पटवारी अपने क्षेत्र में पांच हजार महिलाओं का सम्मेलन-भोजन आयोजित कर रहे हैं तो यह रेणुका पटवारी के सक्रिय राजनीति में प्रवेश की बॉंडिग भी कही जा सकती है। हालांकि जीतू पटवारी कहते रहे हैं किसका नाम फायनल किया जाए यह फायनल करना कांग्रेस आलाकमान का काम है।राऊ से रेणुका पटवारी का लोकसभा के लिए नाम चलाने का एक कारण इस समाज के वोटों का देपालपुर, राऊ, महू और पांच नंबर में प्रभाव होना भी है।वे महिला हैं और अविवादास्पद भी हैं। 

स्वप्निल कोठारी 

कांग्रेस से अन्य नामों में दूसरा अविवादास्पद चेहरा डॉ स्वप्निल कोठारी का है।शिक्षाविद् के साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में भी पहचान है।विधानसभा क्षेत्र क्रमांक पांच से भी वे दावेदारी कर चुके थे।उन्हें हाथोंहाथ प्रदेश कांग्रेस में जिम्मेदारी देकर दावेदारी से हटाया गया था। प्रियंका गांधी से उनकी नजदीकी का एक कारण यह भी है कि वे रायबरेली के छात्रों को अपने कॉलेज में निशुल्क पढ़ा रहे हैं।उनके शिक्षण संस्थानों से जुड़े छात्रों के परिवार उनके पक्ष वाला वोट बैंक भी माने जाने जैसे कारणों से उनके नाम को पेनल में जोड़ा गया है। 

डॉ पूनम माथुर 

राजनीति से अछूता एक नाम डॉ पूनम माथुर का भी चल पड़ा है।स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ माथुर और उनके पति डॉ आरके माथुर एमवाय अस्पताल-एमजीएम मेडिकल कॉलेज में सेवारत हैं।इस पहचान के अलावा पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर की पुत्री के रूप में भी उनकी पहचान है और इसी कारण उनका नाम भी चल रहा है।कांग्रेस में एडवोकेट माथुर का जो मान-सम्मान है वह उनके लिए सहायक हो सकता है।हालांकि पहले खुद माथुर का नाम भी लोकसभा सहित अन्य चुनावों के लिए भी चलता रहा यह बात अलग है कि उनका नाम चला और टिकट शोभा ओझा को मिलता रहा। 

सुभाष खंडेलवाल 

इसी तरह सुभाष खंडेलवाल का नाम भी जोर पकड़ने लगा है। पुराने समाजवादी-पत्रकार के साथ ही वे बिल्डर लॉबी से भी जुड़े हैं।अच्छे वक्ता तो हैं ही कई संगठनों के साथ रचनात्मक गतिविधियों से भी जुड़े हैं।वरिष्ठ समाजवादी-जदयू अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य शरद यादव के नेतृत्व में इंदौर में आयोजित साझी विरासत बचाओ सम्मेलन के स्थानीय स्तर पर कर्ताधर्ता वे ही थे।प्रखर वक्ता होने के कारण शरद यादव उनसे प्रभावित हैं और रतलाम, झाबुआ क्षेत्रों में चुनावी आमसभाओं में उनके भाषण भी करवा चुके हैं।खुद शरद यादव खंडेलवाल को सलाह देते रहे हैं कि तुम्हें चुनाव लड़ना चाहिए।इंदौर सीट से यदि खंडेलवाल चुनाव लड़ने का मन बनाते हैं तो शरद यादव उनके पक्ष में कांग्रेस आलाकमान से चर्चा कर समझौते में इंदौर सीट खंडेलवाल के लिए मांग सकते हैं।कांग्रेस के सभी गुटों में उन्हें चाहने वालों की कमी नहीं है। 

पंकज संघवीऔर शोभा ओझा  

अन्य जो नाम कांग्रेस द्वारा पेनल में भेजे गए हैं उनमें पूर्व पार्षद पंकज संघवी और अभा महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष-मप्र मीडिया प्रभारी शोभा ओझा का भी नाम है।पार्षद चुनाव जीतने के अलावा पंकज विधायक, महापौर, सांसद आदि का चुनाव भी इंदौर से लड़ चुके हैं लेकिन न तो वे जीते और न ही शोभा ओझा विधानसभा चुनाव जीत सकीं। अब जबकि मप्र में कांग्रेस सत्ता में है और इंदौर संसदीय क्षेत्र की आठ में से चार सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है इस वजह से कांग्रेस के तमाम दावेदार इंदौर सीट को रसगुल्ला मान बैठे हैं।बाहरी नामों में रामायण के राम अरुण गोविल का नाम भी उनकी राम वाली छवि को भुनाने के लिए चल रहा है।इन तमाम अटकलों के बीच दिग्विजय सिंह भी यह कह कर हलचल बढ़ा चुके हैं कि पार्टी कहेगी तो वे इंदौर से चुनाव लड़ेंगे।दिग्विजय सिंह के साथ ही उनकी पत्नी-पत्रकार अमृता राय का नाम भी चलाया जा रहा है। 

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