सिंहस्थ में भ्रष्टाचार नहीं, असली कारण तो यह है देवास निगमायुक्त को हटाने का
( कीर्ति राणा )
देवास नगर निगम आयुक्त विशाल सिंह चौहान को यकायक हटाए जाने का कारण प्रचारित यह किया गया था कि सिंहस्थ-16 में नगर निगम उज्जैन के कार्यों में हुए भ्रष्टाचार के कारण उन्हें हटाया गया है।अब असली कारण जो सामने आए हैं वो यह कि स्थानीय कांग्रेस नेताओं से पटरी न बैठने और विधायक का चुनाव हारे जयसिंह ठाकुर से चल रही तनातनी ही डेढ़ साल में ही उन्हें निगमायुक्त पद से हटाने का मूल कारण है।
निगमायुक्त विशाल सिंह चौहान को स्थानीय शासन विभाग ने डेढ साल पहले यहां पदस्थ किया था।पदस्थ किए जाने के बाद से देवास शहर के प्रभावी कांग्रेस नेता जयसिंह ठाकुर के साथ उनकी पटरी नहीं बैठी। एक प्रदर्शन के दौरान निगम में तोड़फोड़ की घटना के बाद आयुक्त कार्यालय ने पुलिस में शासकीय काम में बाधा, हमले का प्रयास आदि शिकायत की थी, एफआईआर भी दर्ज हुई थी। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में जयसिंह ठाकुर को कांग्रेस ने देवास शहर से प्रत्याशी घोषित किया था। परिणाम घोषित हुए तो ठाकुर ग्रामीण क्षेत्र से तो जीत गए लेकिन शहरी क्षेत्र में मिले कम वोट उनकी पराजय का कारण बन गए। उनके समर्थकों ने असली कारण खोजने की अपेक्षा इस हार के लिए विशाल सिंह चौहान पर ठीकरा फोड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस सरकार के गठन पश्चात देवास के ठाकुर समर्थक गुट ने निगमायुक्त चौहान को लूप लाईन में भेजने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया।उनको तुरतफुरत भोपाल पदस्थ कर दिया गया, लेकिन यहां के लिए किसी के आदेश नहीं हुए थे। देवास एडीएम नरेंद्र सूर्यवंशी की सेवाएँ स्थानीय शासन विभाग को सौंपे जाने के बाद उन्हें निगमायुक्त देवास पदस्थ किए जाने के आदेश अभी चार दिन पहले जारी हुए हैं।
– सिंहस्थ घोटाले में विशाल सिंह चौहान पर कार्रवाई, बाकी अधिकारियों को क्यों बख़्शा
सिंहस्थ में विभिन्न विभागों के प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी निर्माण एवं विकास कार्यों की मानिटरिंग कर रहे थे ऐसे में निगमायुक्त जैसा एक अदना अधिकारी निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार करने की हिम्मत कर सके यह असंभव ही था। सिंहस्थ के दौरान तेरह अखाड़ों सहित प्रमुख पांडालों में 20-20 हजार शौचालय बनाना तय किया गया था, इस आंकड़े के मुताबिक कुल 57 हजार शौचालय नगर निगम ने निर्मित किए थे।साधु संतों ने मेला अधिकारियों पर अधिक शौचालय निर्माण का दबाव बनाना शुरु किया तो आननफानन में इंदौर निगमायुक्त मनीष सिंह और नगर निगम इंदौर की टीम को पदस्थ किया गया था और धड़ल्ले से शौचालयों का निर्माण किया था। सिंहस्थ में जितने भी अस्थायी कार्य हुए उनमें कथित भ्रष्टाचार की शिकायतों पर शासन ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन की व्यवस्था भी की थी।इन सारे कार्यों को संबंधित विभागों के पीएस और इनकी मानिटरिंग के लिए एडिशनल सेक्रेटरी स्तर के अधिकारियों की तैनाती थी।
मान भी लिया जाए कि विशाल सिंह चौहान ने सिंहस्थ के दौरान अस्थायी निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार किया भी तो फिर पीएस, एसीएस अधिकारी उनसे अधिक दोषी हैं। यदि सिंहस्थ कार्यों में भ्रष्टाचार के आधार पर चौहान पर गाज गिरी है तो उस वक्त के तमाम बड़े अधिकारियों को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद सिंहस्थ कार्यों में हुए घोटालों की जाँच कराने की घोषणा भी की थी। तो क्या मान लिया जाए कि जितने भी घोटाले हुए उनमें एकमात्र विशाल सिंह चौहान ही दोषी है, बाकी विभागों ने ईमानदारी से काम किया या उन विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को किसी मजबूरी के चलते बख़्श दिया गया। सरकार ने जाँच की घोषणा की तो वह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जाए तो अन्य भ्रष्ट अधिकारी भी बेनक़ाब हो सकते हैं। ग़ौरतलब यह भी कि प्रतिपक्ष नेता गोपाल भार्गव भी सिंहस्थ घोटाला जाँच रिपोर्ट को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं।
– सिंहस्थ-16 के दौरान दो प्रभावी अधिकारी
उज्जैन सिंहस्थ के दौरान विशाल सिंह चौहान और मेला अधिकारी अविनाश लवानिया ये दो ऐसे अधिकारी थे जिनका शिवराज सरकार से सीधा कनेक्शन था। चौहान यदि शिवराज सिंह के रिश्तेदार के कारण उज्जैन में प्रभावी पद पर रहे तो ईमानदार आईएएस की छवि वाले अविनाश लवानिया, तत्कालीन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के दामाद होने से चर्चा में रहे।सिंहस्थ निर्माण कार्यों में जब पुल आदि सहित बड़े निर्माण कार्यों के ठेके नरोत्तम मिश्रा के नज़दीकियों को मिले तब अनावश्यक रूप से लवानिया का नाम भी घसीटा गया था। सिंहस्थ संपन्न होने के पश्चात लवानिया होशंगाबाद कलेक्टर, फिर भोपाल नगर निगम आयुक्त रहे, अभी अतिरिक्त आयुक्त वाणिज्यिक कर विभाग इंदौर पदस्थ हैं। देवास नगर निगम से हटाए जाने के बाद चौहान ग्रामीण विकास विभाग भोपाल में पदस्थ हैं।