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अब्बा के पास बैठें तो तमाम पुरानी यादें कुछ इस तरहा बयां करतें हैं जैसे क़ल की ही बात हो …

-एक काबिल पुत्र की बहुत काबिल पिता के नाम चिठ्ठी

(रज़ा मावल)

अब्बा का डब्बा.. डब्बे में अतीत.. स्मार्ट होने की राह पर उजड़ते आशियानों के बीच इन दिनों अतीत का भोपाल जो तस्वीरों में सहेजा हुआ था आप लगातार देख ही  रहे हैं तो सोचा आज अब्बा यानि प्रो. एसके मावल और डब्बा यानि उनके पुराने कैमरों के बारे में भी कुछ बातें साझा की जाये ! प्रो. एसके मावल मेरे वालिद ही नहीं मेरे गुरु भी हैं !

आज़ादी से पहले के चुनिंदा भारतीय फोटोग्राफरों में से एक स्व केएच मावल के बड़े पुत्र एसके मावल पार्टिशन के वक़्त सन 1948 में ग्वालियर से भोपाल आये और काफ़ी समय भोपाल में रहे ! फोटोग्राफी तो घुट्टी में मिली थी और कैमरा हमेशा साथ रहता था तो जितना भी वक़्त भोपाल में गुज़ारा उस दौर के भोपाल को,यहाँ की खुबसूरती को अपने कैमरे में कैद किया ! उस दौर में भोपाल के इकलौते फोटोग्राफर नूर मोहम्मद साहब { नूर मोहम्मद एंड संस फोटोग्राफर } से भी मुलाक़ात हुई और भी नए दोस्त बने, मिलना मिलाना हुआ तहज़ीबो अदब के शहर भोपाल को दिल में बसा वापस ग्वालियर आ गए ! मध्यभारत को मध्यप्रदेश बनाये जाने पर मावल साहब वापस भोपाल आए और फिर भोपाल के ही होकर रह गए !

इस शहर का सौंदर्य ही कुछ ऐसा है कि एक बार जो यहां आया फिर यहीं का होकर रह गया। अब्बा PWD में आर्किटेक्ट थे साऊथ टीटी नगर, नॉर्थ टीटी नगर, रवीन्द्र भवन और तमाम नए भोपाल के स्कूल आप की देखरेख में बने ! आज 9 दशक पार कर चुके प्रो.मावल साहब ग्लूकोमा की वजह से देख नहीं सकते, शायद भगवान ने ठीक ही समझा…  नॉर्थ और साऊथ टीटी नगर को बसाने में अपने योगदान को इस तरहा बेदर्दी से उजड़ते बर्बाद होते हुए वो देखते भी तो कैसे ! लेकिन आज भी अब्बा के पास बैठें तो तमाम पुरानी यादें कुछ इस तरहा बयां करतें हैं जैसे क़ल की ही बात हो ! मावल साहब को फ़ोटोग्राफ़ी तो विरासत में मिली ही थी फिर भी आप ने सर जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट बम्बई से फ़ोटोग्राफ़ी और आर्किटेक्ट की उच्च शिक्षा हासिल की थी ! शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के मिस हिल स्कूल से की ! भारत में चार या पांच ही फोटोग्राफर हुए हैं जिन्होंने प्रयोगात्मक पिक्टोरियल फ़ोटोग्राफ़ी की, अब्बा उनमें से एक हैं ! बतौर गेस्ट प्रोफ़ेसर पोलिटेक्निक में और बाद में प्राच्य निकेतन में HOD रहते हुए जो हुनर आप के पास था अपने शागिर्दों में तकसीम करते रहें !

प्रोफ़ेसर साहब इलेक्ट्रॉनिक में भी खासा दख़ल रखते थे ये बात सभी परिचित जानतें हैं साथ ही मेगनेट थैरेपी , होमियोपैथी , रेकी में भी आप को महारत हासिल हैं ! जब तक आँखों से दिखता रहा क़िताबें अब्बा की जान हुआ करती थी कमरा क़िताबो से भरा रहता था पूरे भोपाल के लाइब्रेरीज़ इंचार्ज आप के दोस्त थे ! हिंदी अंग्रेज़ी, उर्दू, अरबी सहित मराठी और संस्कृत भाषाओं पर मज़बूत पकड़ हैं. कुछ वक़्त आप ने शायरी भी ख़ूब की साथ ही पुरानें देश विदेश के सेकड़ों सिक्के, हज़ारों की संख्या में डाक टिकिट संग्रह करने का शौक बचपन से ही था ! 300 से भी अधिक विंटेज कैमरों का अद्भुद संग्रह आप ही की देन हैं जिसे आज पूरा मावल परिवार सहेजे हुए हैं ! फ़ोटोग्राफ़ी में लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, देश विदेश के सैकड़ों अवार्ड, हज़ार से ज़्यादा प्रशस्तिपत्र, फ़ेलोशिप आप के सीने पर रोशन हैं ! अब्बा आप स्वास्थ रहें आप का मार्गदर्शन हमेशा हम सभी को मिलता रहें यही कामना है..

(रज़ा मावल, प्रोफेसर एसके मावल साहब के सुपुत्र है)

रज़ा मावल

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