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आकाश में तो उड़ेगा विमान लेकिन दिखाई नहीं देगा

रूस के पीछे हट जाने के बावजूद आइआइटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग ने स्टेल्थ तकनीकी युक्त विशेष विमान का डिजाइन और प्रोटोटाइप विकसित करने में करीब-करीब सफलता पा ली है। इसी साल अक्टूबर तक इसका परीक्षण संभव है। बता दें कि स्टेल्थ तकनीकी दुनिया के चुनिंदा देशों के पास ही है। स्टेल्थ तकनीकी से युक्त विमान लगभग अदृश्य हो जाता है और रडार की पकड़ में नहीं आ सकता है।

पांचवी पीढ़ी के उन्नत लड़ाकू विमान (फिफ्थ जेनरेशन फाइटर एयरक्रॉफ्ट, एफजीएफए) विकसित करना भारत की सामरिक आवश्यकता बन चुका है। इस दिशा में पहला कदम एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्रॉफ्ट (एएमसीए) प्रोजेक्ट के रूप में भारत उठा चुका है। इसके तहत मध्यम क्षमताओं वाले अत्याधुनिक फाइटर जेट बनाने पर काम किया जाना है। स्टेल्थ टेक्नोलॉजी युक्त अत्याधुनिक टोही विमान भी तैयार किए जा रहे हैं।
आइआइटी कानपुर ने स्टेल्थ तकनीकी युक्त मानव रहित विशेष लड़ाकू विमान का डिजाइन और प्रोटोटाइप लगभग तैयार कर दिखाया है। स्विफ्ट नामक इस प्रोजेक्ट में पहले रूस भी साथ दे रहा था। लेकिन 2018 में रूस के भारत के एफजीएफए प्रोजेक्ट से हट जाने के बाद इंजन को लेकर कुछ बाधा उत्पन्न हो गई। स्विफ्ट का इंजन रूस दे रहा था।

भारतीय वैज्ञानिकों ने अब इस बाधा को पार कर लिया है। प्रोजेक्ट अक्टूबर तक परीक्षण के स्तर पर पहुंच जाएगा। प्रो. एके घोष, विभागाध्यक्ष, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग, आइआइटी कानपुर,ने बताया ‘स्टेल्थ विमान के मॉडल की पूरी फ्लाइट टेस्टिंग होगी। यहां विस्तारपूर्वक रिसर्च कर इसकी गति, आवाज, हवा में स्थिरता आदि का आकलन किया जाएगा।’

अक्टूबर में परीक्षण सफल होने पर इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा सकेंगे। मानव रहित इस विशेष विमान में एडवांस बैटल फील्ड रडार, आरएफ सेंसर, ग्राउंड रडार, सेंसर युक्त सिस्टम होगा, जो इसे दुश्मन की नजर से बचाएगा। करोड़ों रुपये के इस प्रोजेक्ट को एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी सहयोग कर रही है। आइआइटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रो. एके घोष और प्रो. सुब्रह्मणयम सडरेला इस प्रोजेक्ट में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
प्रो. सडरेला ने बताया, हम पहले इस विमान के मॉडल का पूरा कंप्यूटरीकृत डाटा तैयार कर रहे हैं। इसमें इसकी ऊंचाई, आवाज, गति आदि की पड़ताल होगी। ये कितनी देर तक हवा में स्थिर रह सकता है, इन सभी बातों का आकलन किया जाएगा। यह विमान बेहद हल्का और आवाज रहित होगा। इसके निर्माण में स्टेल्थ मैटेरियल का उपयोग किया जा रहा है। मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग और फिजिक्स विभाग से इसमें सहयोग लिया गया है। बता दें कि आइआइटी के वैज्ञानिक 2017 में स्टेल्थ मैटेरिलय एफएमएआर-80 का निर्माण करने में सफलता अर्जित कर चुके हैं।

इसी साल अक्टूबर में विमान के प्रारूप का परीक्षण किया जाएगा। इसके लिए आइआइटी कानपुर के एयरस्ट्रिप के आसपास आंशिक रूप से पूरी बैटल फील्ड तैयार की जाएगी। यह बिल्कुल सरहद की तरह होगी। अत्याधुनिक मशीनों की सहायता से रडार सिस्टम को लैस किया जाएगा। इसी बैटल फील्ड यानी युद्ध क्षेत्र में विमान के शुरुआती मॉडल का परीक्षण किया जाएगा। अपेक्षित गति और रडार की पकड़ से बच निकलना इस विमान की सफलता की गारंटी होगी।

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