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वो जार्ज ही थे जिन्होंने आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने के निर्देश दिए

— जब उनकी आवाज पर देश में ठप्प हो गया रेल यातायात

  श्रवण मावई

नेता यू तो अब गली गली में मौजूद है लेकिन वास्तविक नेता होना कठिन कार्य है नेता संबोधन के साथ इंसाफ करना उतना ही मुशिकल हो गया है जितना इस दौर में राजनिति करना। भारत में ऐसे गिने चुनें ही लोग रहे जिन्होंने नेता संबोधन सार्थक और इंसाफ किया,उनमें एक थे जॉर्ज फर्नांडिस। जॉर्ज ऐसे नेता थे जो अपने लिए नहीं समाज के उन लोगों के लिए कार्य करते रहे जिनका दर्द महसूस करना वाला नहीं होता । जॅार्ज ही वो नेता थे जिन्होंने अमरिकी कंपनियां आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था, यहीं नही उनकी आवाज पर देश भर में रेल के चक्के रोक दिए गए ।

बात उस समय कि है जब जॉर्ज फर्नांडिस 1977 में संचार मंत्री और उद्योग मंत्री बनाए गए थे, इसी समय अमरिकी कंपनियां आईबीएम और कोका-कोला ने निवेश नियम उल्लंघन कर रही थी। मामला जॉर्ज के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अमरिकी कंपनियां आईबीएम और कोका-कोला को भारत छोडने के आदेश जारी कर दिए,उनके इस कदम से अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रबंधन में हडकंप मच गया। वहीं कई और कंपनियां सर्तक हो गई। जांर्ज ने सीधे तौर पर विदेशी कंपनियों को चेता दिया था कि उनके सामने कंपनियों की मनमर्जी नहीं चलेगी।

…और जब हुई सबसे बडी रेल हडताल

साल 1974 में जार्ज फर्नांडिस ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन का अध्यक्ष थे। रेल कर्मचारियों की मांग को जॉर्ज ने सबसे बडी हडताल की। उनकी आवाज पर 15 लाख से अधिक कर्मचारी हडताल पर चले गए देश में रेल व्यवस्था ठप्प ही हो गई। इस हडताल को इतिहास में अब तक की सबसे रेल हडताल में रूप में दर्ज किया गया, यही से जॉर्ज का प्रभाव सामने आया। वैसे इससे पहले भी कई आंदोलन, हडताल और प्रदर्शनों को नेतृत्व करते रहे । इस तरह के कई साहस और हिम्मत से भरे काम जॉर्ज ने किए। उनके बारे में कई किस्से सुनाए और लिखे गए है।

…कौन जार्ज फर्नांडिस

3 जून 1930 को कर्नाटक के मैंगलोर में जॉन जोसफ फर्नांडिस और एलीस मार्था फर्नांडिस के घर के संतान ने जन्म लिया, एलीस मार्था फर्नांडिस किंग जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं,और उनका जन्म भी 3 जून को ही हुआ था इसलिए उन्होंने अपने घर पैदा हुए पुत्र का नाम भी जार्ज रखा। जार्ज को सेकंडरी स्कूल सर्टिफिकेट मैंगलोर के एलॉयसिस स्कूल में दखिला दिलाया गया। बाद में उन्हें धर्म की शिक्षा के लिए बैंगलोर में सेंट पीटर सेमिनेरी भेज गया। उन्होंने 1946-1948 तक रोमन कैथोलिक पादरी का प्रशिक्षण प्राप्त किया। कुछ साल बाद जॉर्ज ने धर्मिक संस्थान छोड दिया क्योंकि वहां फादर्स को उनसे अच्छा भोजन मिलता था , इसके विरूद्व उन्होंने इसका विरोध भी किया था। जॉर्ज ने यह संस्थान छोडने के बाद कई काम किए।

कम उम्र में ही जॉर्ज आम लोगो के लिए लडने लगे थे उन्होंने मैंगलोर सड़क परिवहन उद्योग, होटल में काम करने वाले कामगारों को संगठित किया। 1949 में बैंगलोर छोड़ने के बाद जॉर्ज नौकरी की तलाश में बॉम्बे आ गए। यहां उन्हें एक अखबार में प्रूफ रीडर की नौकरी की। अखबार में कार्य करते समय उनका संपर्क यूनियन नेता प्लासिड डी मेलो और समाजवादी राममनोहर लोहिया से हो गया । जॉर्ज ने इन दोनों से बहुत कुछ सीखा और समाजवादी व्यापार संघ आंदोलन के लिए कार्य करने लगे। कुछ ही समय बाद जॉर्ज का नाम बडे स्तर पर सुनाई देने लगा, वह कामगारों के लिए प्रदर्शन, घरना करते रहे । उसके बाद 1961 से 1968 तक बॉम्बे नगर निगम के मेम्बर के तौर सक्रिय रहे। इस दौरान उनके काम करने के तारीके ने उन्हें लोकप्रिये बना दिया।

साल 1967 में जॉर्ज लोकसभा चुनाव लडने का मन बनाया और मुबंई दक्षिण संसदीय सीट से समयुक्त सामाजिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता सदाशिव कानोजी के सामने चुनाव लडा और जीत गए।
जॉर्ज ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गईं (जून 1975) इमरजेंसी का विरोध किया और इंदिरा हटाओ मुहिम के बडे नेता के रूप में सामने आए । बाद में एक के भीतर उन्हें बड़ौदा डाइनामाइट केस के आरेपी के तौर पर गिरफ़्तार किया गया। इमरजेंसी के बाद साल 1977 में उन्होंने जेल से लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में जॉर्ज को बहुत अधिक अंतर से विजय प्राप्त हुई। उनको मोरारजी देसाई के मंत्रिमण्डल में संचार मंत्री बनाया गया था, कुछ ही समय बाद उन्हें उद्योग मंत्री की जिम्मेदारी भी सौंपी गई । साल 1990 में वीपी सिंह के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री के रूप में कार्य किया।

जनता पार्टी और जनता दल में दरार के बाद जॉर्ज फ़र्नांडीस ने 1994 में समता पार्टी का गठन किया। (जो इस समय जनता दल (यूनाइटेड) है, इस दल के नेता नीतीश कुमार इस समय बिहार के मुख्यमंत्री हैं) उन्होंने 1995 में भारतीय जनता पार्टी के साथ चुनावी लडा,लेकिन कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया लेकिन 1996 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन अच्छा रहा। अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में उनको रक्षा मंत्री बनाया, तहकला मामला समाने आने पर उन्होंने इतिफा दिया बाद में सब स्पष्ट होने पर उन्हें वापस बुलाया गया। केंद्र में भाजपा की सरकार जाने के बाद जार्ज की तबीयत खराब होने लगी थी उन्हें पर्किन्संस और अल्जाइमर रोग से पीड़ित हो गए, उसके बाद तो उन्होंने बिस्तर ही पकड लिया और धीरे धीरे उनकी याददास्त भी जाती रही, एक कमरे में यह नेता अपनी मौत का इंतजार ही करता रहा। 29 जनवरी 2019 को 88 साल की आयु में नेता जॉर्ज फ़र्नांडीस ने अपनी अंतिम सांस ली । जॉर्ज भले ही अब हमारे बीच न हो लेकिन भारतीय समाज और राजनिति में उनके योगदान और अपनी बेबाक राय के लिए सदैव याद किया जाऐंगे

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