किस के आँसू, कितनी सीट बढ़ाएँगे !
(कीर्ति राणा )
साल दो साल पहले तक प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं को भी एक तरह से राहुल गांधी ने प्रियंका को महासचिव बना कर चौंका दिया है।लोकसभा चुनाव में अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि यूपी में चुनावी नोंकझोंक के दौरान मंच से किसके आँसू ज्यादा असरकारी रहेंगे मोदी के या प्रियंका के।माँ और पिता की शहादत को याद करते हुए जब प्रियंका मंच पर भावुक होंगी तो बहुत संभव है कि शाह-मोदी की जोड़ी मंच से याद दिलाए कि कथित जमीन घोटाले में माहिर पति राबर्ट वाड्रा की पत्नी घड़ियाली आँसू बहा रही हैं।
मप्र के सिंधिया समर्थकों से कहीं ज्यादा तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह खेमा खुश होगा कि ज्योतिरादित्य को यूपी में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया है।अब मप्र कांग्रेस के लिए भी अध्यक्ष के चयन में परेशानी नहीं आएगी। दो दिन पहले शिवराज सिंह और ज्योतिरादित्य की मुलाकात ने हलचल मचाई थी तो मुझे लगता है सिंधिया ने अपना यह दर्द सबसे पहले शिवराज से ही साझा किया होगा कि आप को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर और मुझे यूपी में महासचिव का दायित्व सौंप कर मप्र से दूर कर दिया गया।बहुत संभव है सिंधिया ने यह अनुरोध भी किया हो कि यूपी की इस नई जिम्मेदारी के चलते मैं गुना से लड़ूँ या ग्वालियर से भाजपा कमजोर प्रत्याशी ही सामने रखे।
कभी राहुल गांधी की इमेज मेकर रहीं, उन्हें अध्यक्ष के रूप में स्थापित करने वालीं प्रियंका गांधी को भाई ने महासचिव भी तब बनाया है जब तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी परिपक्व अध्यक्ष के रूप में कम से कम कांग्रेस कार्यकर्ताओं में तो सम्मान की नजर से देखे जाने लगे हैं, वैसे भाजपा ने भी अपनी डिक्शनरी से पप्पू शब्द डिलीट ही कर दिया है।
लोकसभा चुनाव 2014 को याद करें तो यूपी में 80 में से भाजपा को 71, सपा को 5, कांग्रेस और अपना दल को 2-2 सीटें मिली थीं, बसपा का खाता ही नहीं खुला था। इस बार जानी दुश्मन सपा-बसपा एक हो गए हैं 38-38 सीटों पर दोनों लड़ेंगे, दो सीट अमेठी-रायबरेली पर ये दोनों दल प्रत्याशी खड़े नहीं करेंगे।इसी तरह दो सीट अन्य दलों के लिए छोड़ी हैं।मप्र विधानसभा चुनाव में भी बसपा-सपा से कांग्रेस ने समझौता नहीं किया तो यूपी में इन दोनों दलों ने भी कांग्रेस की परवाह नहीं की। अभी जो हवा बह रही है उससे तो संकेत यही मिल रहे हैं कि यूपी में भाजपा 71 सीटों से कम पर रहेगी, बसपा-सपा सीट वृद्धि का चमत्कार दिखा सकती है और कांग्रेस ? 2009 के चुनाव में कांग्रेस को पूर्वांचल से जो 22 सीटें मिली थीं उसमें मुस्लिम मतों वाले क्षेत्र अधिक थे।इस क्षेत्र का दायित्व सौंपे जाने से योगी आदित्यनाथ की भी परेशानी बढ़ेगी, क्योंकि यह उनके प्रभाव वाले जिले हैं।जिस तरह राहुल शिवभक्त्त हो गए हैं, जनेऊ धारण करने के साथ ही पुष्कर में पूजा के दौरान अपना ब्राह्मण गोत्र बताने में तत्परता दिखा चुके हैं इस सारे सॉफ़्ट हिंदुइज्म के कारण यूपी में मुस्लिम वोटों को लुभाने का साहस दिखाने में कांग्रेस को झिझक होगी, वैसे भी बसपा-सपा के इस समझौते के बाद मुस्लिम वोट इनके साथ अधिक सहज रह सकता है। जैसे कांग्रेस ने प्रियंका वाला तुरुप का पत्ता चला है तो भाजपा के पास भी राम मंदिर वाला ब्रह्मास्त्र सुरक्षित है, कुंभ चल ही रहा है। योगी जी ने संतों को पेंशन की घोषणा कर दी है, अब माहौल बनाने के लिए संतों को जो करना है वो करेंगे ही।
प्रियंका को पार्टी में यह दायित्व तब मिला है जब वाड्रा पर शिकंजा कसता जा रहा है।यूँ तो वे 1999से भाई के लिए अमेठी और माँ के लिए रायबरेली में चुनाव प्रचार में सक्रिय रही हैं लेकिन पद पहली बार स्वीकारा है।बहुत संभव है कि प्रियंका में इंदिरा गांधी की झलक महिला मतदाताओं को सम्मोहित करे, ब्राह्मण वोटों का झुकाव भी हो जाए लेकिन कांग्रेस के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती रहेगी वह यह कि उस पर तीन तरफ से हमले होंगे बसपा, सपा और भाजपा से।यूपी में सपा-बसपा गठबंधन को लेकर राहुल गांधी ने जो संतुलित और शालीन प्रतिक्रिया दी है वह भविष्य के हमलों से कितना बचा सकेगी यह वक्त बताएगा। पिछले चुनाव में मात्र दो सीट वाली कांग्रेस में प्रियंका को पूर्वी, सिंधिया को पश्चिमी यूपी का महासचिव बना कर एक तरह से 40-40 सीटों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। मप्र विधानसभा चुनाव में सिंधिया का चेहरा जितना प्रभावी रहा वैसा यूपी पर कितना असर डालेगा यह वक्त बताएगा। फिलहाल तो राहुल गांधी ने आधे यूपी की ज़िम्मेदारी सौंप कर सिंधिया के घावों पर मरहम लगाने का काम किया है। मप्र में 114 सीटें तीनों नेताओं की संयुक्त सफलता मानी जाती रही है, सिंधिया को मप्र में अब तक तो क्षेत्रीय नेता प्रचारित किया जाता था, यूपी में कांग्रेस की सीटों में जो वृद्धि होगी वो सिंधिया को पार्टी के राष्ट्रीय नेता के रूप में तो स्थापित करेगी ही और बिल्ली के भाग से छींका टूटने की तरह केंद्र में यूपीए की सरकार बन गई, ज्योतिरादित्य का मंत्री बनना तय रहेगा। कैसा लगेगा जब दिग्गी-कमलनाथ को केंद्रीय मंत्री से मुलाकात का वक्त लेना पड़ेगा।