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शिवराज के सलाहकार इस सरकार में भी कलाकार

-सेवानिवृत्ति के बाद तब से अब भी मलाईदार पदों पर जमे हुए हैं वो सारे आईएएस

– ई-टेंडरिंग घोटाले से जुड़े आईएएस पर कमलनाथ सरकार भी मेहरबान

(कीर्ति राणा)

कहने को मप्र में भाजपा की बिदाई और कांग्रेस का राज हो गया है लेकिन उन वरिष्ठतम आईएएस की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है जो पहले शिवराज के सलाहकार माने जाते थे। ये सारे कलाकार पंद्रह साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार में भी उतने ही मजे में हैं।जिस ई टेंडरिंग घोटाले जैसे आरोपों से शिवराज को महा भ्रष्टाचारी बताकर कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की उस 13 हजार करोड़ के घोटाले से आँख मूँदे रहे सभी तत्कालीन मुख्य सचिव (रिटायर होने के बाद) भी खास पदों पर नवाजे जा रहे हैं। राहुल गांधी भले ही पारदर्शी प्रक्रिया की दुहाई देते हों लेकिन इन अधिकारियों को उपकृत करने में सरकार पारदर्शिता भी भूल चुकी है।

जिस #व्यापमं घोटाले को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया उससे जुड़े तमाम (व्यापमं) अध्यक्षों पर आज तक आँच नहीं आई है।एक अध्यक्ष रंजना चौधरी पर तो 40लाख की रिश्वत तक के आरोप लगे लेकिन न उनका कुछ हुआ और न ही पंद्रह वर्षों के दौरान अध्यक्ष रहे मलय राय, देवराज बिरदी, स्वदीप सिंह आदि के विरुद्ध भी कमलनाथ सरकार कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाई है।व्यापमं मामले को उजागर करने वालों में प्रमुख आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने चर्चा में कहा सारे अध्यक्ष तो साफ बचे हुए हैं ही मंडल में उस अवधि में पर्यवेक्षक रहे तमाम रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, आईएएफ़एस का भी कुछ नहीं हुआ।
भाजपा के शासन में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे एसएन रुपला सरकार बदले बाद भी मजे में हैं। कांग्रेस सरकार ने रुपला को रेरा का रजिस्ट्रार बना कर उपकृत कर दिया है।यही नहीं कमलनाथ सरकार ने 1991 बैच के सेवानिवृत्त अधिकारी सतीश चंद्र मिश्रा की संविदा नियुक्ति एक वर्ष के लिए बढ़ा दी है।
यह तो हद हो गई….!

मुख्य सचिव पद से 31दिसंबर को बीपी सिंह रिटायर हुए और 1 जनवरी को राज्य निर्वाचन आयोग वाली कुर्सी उनका इंतजार कर रही थी। नेता प्रतिपक्ष रहते अजय सिंह ने ई-टेंडरिंग घोटाले की जाँच को लेकर पीएमओ को पत्र लिखा था। पीएमओ ने 11जुलाई 18 को मप्र के सीएस बीपी सिंह को निर्देशित किया था कि इस मामले की जाँच कराएं लेकिन आर्थिक अपराध ब्यूरो ने आज तक जाँच शुरु ही नहीं की।अजय सिंह को जिस तरह इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है तो यह कहने में संकोच नहीं कि शिवराज के साथ बीपीसिंह के प्रति आस्थावान ब्यूरोक्रेटस भी उन्हें हराने में जुट गए थे।हरिद्वार में अहिल्या घाट वाली खासगी ट्रस्ट जमीन बिक्री मामले में भी बीपी सिंह उलझे रहे हैं। इंदौर कमिश्नर रहते खासगी ट्रस्ट के ट्रस्टी की हैसियत से उन्होंने ही जमीन बिक्री वाली फाइल पर दस्तखत किए थे। बीपी सिंह ही नहीं सेवानिवृत्त होने के बाद परशुराम और अंटोनी डिसा पर शिवराज सरकार की तरह कमलनाथ भी उतने ही मेहरबान हो गए। परशुराम को सरकार ने डीजी गुड गर्वनेस और डिसा को रेरा चेयरमेन बना दिया है।

परिवहन आरक्षक भर्ती में उलझे थे डिसा

परिवहन आरक्षक के 332 पदों की भर्ती मामले में (अपर मुख्य सचिव) #अंटोनी डिसा तब शंका के घेरे में आ गए थे जब 198 परिवहन आरक्षकों की पहली भर्ती विज्ञप्ति रद्द कर के एकसाथ 332 की भर्ती के आदेश जारी किए गए थे। इस परीक्षा के लिए 64 हजार फार्म बिके और परीक्षा में बैठे 59 हजार। प्रचारित यह किया गया था कि #गोंदिया (शिवराज-साधना के) क्षेत्र के लोगों को परिवहन आरक्षक बनाने के लिए यह सब किया गया, जबकि इन 332 पदों पर नियुक्त के लिए मनचाही कीमत वसूलने की चर्चा रही थी।हाल ही में पीएस स्तर के अधिकारियों के फेरबदल में फिर चाहे वो पी नरहरि, विवेक अग्रवालआदि हों ऐसे सारे पीएस को महत्वपूर्ण विभाग में पदस्थ किए जाने में डिसा की खास भूमिका रही है। इसी तरह इंदौर कमिश्नर रहे संजय दुबे भी संबल योजना के कार्ड छपाई के 1.80 करोड़ के घोटाले में उलझे हुए हैं लेकिन कमलनाथ सरकार में भाजपा के वक्त के तमाम चर्चित वरिष्ठ अधिकारी गंगास्नान के बाद पवित्र माने जाकर मलाईदार पदों पर जम गए हैं।

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