तीन बार के भाजपा विधायक पाला बदलकर कांग्रेस के साथ
(शैलेश तिवारी)
सांप की तरह टेडी मेडी चाल वाली राजनीति में सीधे चलकर मार्गदर्शक मंडल में ही शामिल हुआ जा सकता है। इस बात की गवाही खुद हमारा ही दौर दे रहा है। शायद यही वजह है कि सीहोर से तीन बार भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुँच चुके रमेश सक्सेना ने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के हाथ को थाम लिया।
आसन्न लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दल बदल होना पिछले कुछ चुनावों से एक परम्परा भी बन गया है। लेकिन खुद शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में ये घटनाक्रम कुछ अलग मायने रखता है। हालांकि विधान सभा चुनावों के दौरान उनके अपने बहनोई तुल्य पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष धर्मेंद्र चौहान भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिला चुके हैं। इस बार मामला कुछ जुदा इसलिए भी है कि रमेश सक्सेना को सीहोर जिले की सहकारिता राजनीति का आधार स्तम्भ माना जाता है। जिसकी 98 सहकारी समितियों के माध्यम से पूरे जिले में ग्रास रूट लेबल तक सीधी पकड़ है। यानी रमेश सक्सेना का कांग्रेस प्रवेश जिले भर की राजनीति को प्रभावित करेगा। स्पष्ट कारण यह भी है कि उनके साथ केन्द्रीय सहकारी बेंक की अध्यक्ष उषा सक्सेना, जिला पंचायत अध्यक्ष उर्मिला मरेठा और भाजपा की महिला मोर्चा की पूर्व जिलाध्यक्ष प्रेमलता राठोर ने भी कांग्रेस की सदयस्ता ली है।
दूसरा सबसे बड़ा कारण है प्रदेश के सहकारी क्षेत्र पर भी रमेश सक्सेना का ख़ासा प्रभाव है। इसी दम पर वह जहां धर्म सिंह वर्मा को भोपाल दुग्ध संघ का अध्यक्ष बना पाए तो अपैक्स बैंक जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के प्रमुख पद पर रमाकांत भार्गव को पहुंचाने में उनका योगदान नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अभी भी सीहोर जनपद और कृषि उपज मंडी समिति के अध्यक्ष पदों पर रमेश सक्सेना के समर्थक डटे हुए हैं। ऐसे में जिले भर में कमजोर कांग्रेस को नई शक्ति का टॉनिक मिल गया है। हालांकि उनका राजनैतिक सफर काग्रेस की राजनीति से ही शुरू था। बाद में कांग्रेस से विधानसभा का टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर निर्दलीय विधायक बने और अगले चुनाव में कमल को निशान बना लिया। हाल ही संपन्न चुनावों में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर बागी उम्मीदवार के रूप में निर्दलीय चुनाव उषा सक्सेना को लड़ाया और लगभग 27 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान को हासिल किया। कांग्रेस उम्मीदवार को मिले वोट उनके वोटो में जोड़ दिए जाएँ तो भाजपा की हार हो जाती है।
इन तमाम नजरियों से कांग्रेस तो मजबूत हुई है लेकिन भाजपा को कितना कमजोर वे कांग्रेस में शामिल होकर कर पायेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा।