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अरुण जेटली का दूसरे दलों पर हमला, झूठ की बुनियाद पर विरोध की मजबूरी

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस समेत अन्य दलों के वंशवाद को लेकर तीखा हमला बोला है. उन्होंने अपने लेख में कहा कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में कुछ लोगों का मानना है कि सत्ता पर काबिज होना सिर्फ उनका जन्म सिद्ध अधिकार है. ऐसे लोग भी हैं, जो किसी भी सत्ता में प्रभावशाली भूमिका पा लेते हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो वामपंथी और चरमपंथी विचारधारा के अनुयायी हैं और ऐसे लोगों को केन्द्र की मौजूदा सरकार मंजूर नहीं है. इन सबके सामन्जस्य से देश की राजनीति में एक नया वर्ग खड़ा होता है जिसके लिए विरोध अथवा आलोचना करना एक अनिवार्यता है.

जेटली ने कहा कि इन आलोचकों का मानना है कि मौजूदा सरकार कुछ भी अच्छा नहीं कर सकती है. लिहाजा इसके सभी फैसलों की आलोचना करने की अनिवार्यता है. इन्हें आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को शिक्षा और नौकरी में दिए गए 10 फीसदी आरक्षण में खामी दिखती है. विडंबना देखिए कि गरीब तबके के लिए किया जा रहा प्रावधान को वामपंथी दल रोक रहे हैं. कालेधन पर लगाम लगाने की कवायद को टैक्स आतंकवाद की संज्ञा दी जा रही है. आधार को स्थापित कर जहां गरीबों को जाने वाले पैसे से चोरी रोकने की कवायद हो रही है तो यह वर्ग उसे निजी स्वतंत्रता से जोड़कर आलोचना कर रही है.

वहीं देश को तोड़ने का नारा लगाने वालों के मौलिक अधिकार की बात की जा रही है और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे संवेदनशील कदम पर सवाल खड़ा किया जा रहा है. जाहिर है कि मौजूदा सरकार की आलोचना की अनिवार्यता के चलते ये वर्ग झूठ का निर्माण करने से भी परहेज नहीं रखता. यह वर्ग अपने निर्मित तर्क से सामान्य हित को भी गलत ठहरा रहा है. जानें इनकी इस दोगली राजनीति के कुछ नमूने.

जस्टिस लोया केस

इस मामले में एक-एक कर कई झूठे दावे किए गए. जस्टिस लोया की दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई और अंतिम समय में उनके साथ सिर्फ उनके मित्र और जज थे. इसके बावजूद एक खास वर्ग के समर्थन वाली वेबसाइट, सोशल मीडिया पर प्रचार और फर्जी जनहित याचिकाओं का सहारा लेते हुए झूठे दावे किए गए. इस झूठ के निर्माण में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश तक शामिल हुए. अंत में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सभी आरोपों को बेबुनियाद करार दिया. इसके बावजूद फैसला सुनाने वाले जस्टिस धनंजय चंद्रचूड की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना की गई.

राफेल केस

इस वर्ग ने देश की सुरक्षा के लिए खरीदे गए राफेल लड़ाकू विमान पर सवाल उठाया. इस डील में देश के हजारों करोड़ रुपये बचाने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया जाना चाहिए लेकिन इस खास वर्ग को यह सच्चाई मंजूर नहीं है. जहां कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करते हुए एक दशक तक इस डील को टालने का काम किया वहीं मौजूदा सरकार की डील पर झूठे आंकड़ों को सामने करते हुए सवाल उठाने का काम किया गया. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां बारीकी से देखने के बाद सभी आरोपों को खारिज कर दिया गया. इसके बावजूद झूठा प्रचार बंद नहीं हुआ और कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाने का काम शुरू कर दिया गया.

सीबीआई विवाद

दिल्ली में सत्ता के गलियारों की जानकारी में जरा भी उत्सुकता हो तो आप जानते होंगे कि किस तरह से देश की प्रमुख जांच एजेंसी में बीते कुछ वर्षों के दौरान कुछ अधिकारी खुद को कानून से ऊपर मानने लगे थे. लिहाजा सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस प्रमुख सुरक्षा एजेंसी में व्याप्त गंदगी को दूर करे. सरकार का मकसद सिर्फ इस एजेंसी की जवाबदेही तय करना और साख को पुख्ता करना था. वहीं इस खास वर्ग ने इस मामले में भी नया झूठ गढ़ने का सहारा लिया. प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली समिति में कांग्रेस नेता खड़गे ने दलील दी कि बिना किसी आरोप के कैसे सीबीआई प्रमुख का ट्रांसफर किया गया. जबकि खड़गे ने इसी सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के समय लिखित तौर पर कहा था कि यह अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त है. इससे भी स्पष्ट है कि यह खास वर्ग आलोचना के कितना इतना मजबूर है.

इनके अलावा बीते कुछ वर्षों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेस, केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच गतिरोध की बहस समेत अनेक ऐसे मामले हैं जहां इस खास वर्ग ने सिर्फ विरोध की अपनी मजबूरी का परिचय दिया है.

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