सवर्ण आरक्षण बिल को विधानसभाओं से पास कराने की जरूरत नहीं, 10 बातें
गरीब सवर्णों को नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में 10 % आरक्षण (Upper Caste Reservation Bill) सुनिश्चित करने वाला 124वां संविधान संशोधन विधेयक दो तिहाई बहुमत से लोकसभा (Loksabha) में पारित हो गया। मंगलवार को करीब पांच घंटे तक चर्चा के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने विपक्ष की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि हमने जो रास्ता चुना है उससे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में भी दिक्कत नहीं आएगी। विधेयक आज बुधवार को राज्यसभा (Rajya Sabha) में पेश किया जाएगा।
1- विधानसभाओं से पास कराने की जरूरत नहीं: वित्तमंत्री ने कहा, इस बिल को 50 फीसदी राज्य विधानसभा से मंजूरी की जरूरत नहीं है। संविधान में मूलभूत अधिकारों के प्रावधान के संबंध में ऐसी जरूरत नहीं पड़ती। पदोन्नति में आरक्षण के समय भी ऐसा ही हुआ था।
2- सीमा का उल्लंघन नहीं : बहस के दौरान विपक्ष ने सवाल उठाया कि यह कानून सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाएगा। इसका जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि इस फैसले से अदालत की ओर से तय की गई 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन नहीं होता है।
3- पहले की सरकारों ने सही रास्ता नहीं अपनाया: जेटली ने कहा कि इससे पहले भी सामान्य वर्ग को आरक्षण देने की कोशिश हुई लेकिन सही रास्ता नहीं अपनाया गया, जिससे वह अदालत में टिक नहीं पाया। नरसिंह राव सरकार ने अधिसूचना जारी कर आरक्षण दिया था जबकि उसका प्रावधान अनुच्छेद 15 व16 में था ही नहीं।
4- चुनावी निर्णय बताने पर घेरा: वित्त मंत्री ने फैसले को चुनावी बताने पर विपक्ष को घेरा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने अपने घोषणा-पत्र में गरीब वर्गों को आरक्षण की बात कही है, उन पार्टियों को बताना चाहिए कि क्या यह बात चुनावी जुमला थी। उन्होंने कहा, सभी दलों को बड़े मन और बड़े दिल के साथ समर्थन करना चाहिए।
5- कांग्रेस का समर्थन: कांग्रेस ने बिल का समर्थन तो किया पर इसे जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया।पार्टी नेता के वी थामस ने कहा कि इसे जल्दबाजी में पेश करने से अव्यवस्था हो सकती है।
6- निजी संस्थानों में भी लागू : सामान्य वर्ग के लिए लाया जा रहा दस फीसदी आरक्षण निजी शिक्षण संस्थानों पर भी लागू होगा। संसद में पेश किए गए विधेयक में यह प्रावधान किया गया है। शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) के बाद यह दूसरा मौका है जब निजी संस्थानों के लिए इस प्रकार के आरक्षण का प्रावधान अनिवार्य किया जा रहा है।
7- दो अहम बदलाव हो रहे हैं : संसद में पेश 124वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत दो अहम बदलाव किए गए हैं। एक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लेकर तथा दूसरे रोजगार को लेकर। संविधान के अनुच्छेद 15 के सेक्शन 4 एवं 5 में शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है। इसमें सरकारी सहायता प्राप्त, सहायता विहीन के अलावा निजी शिक्षण संस्थानों को भी शामिल किया गया है। हालांकि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
8- आरटीई के तहत कमजोर वर्ग को 25% आरक्षण : इससे पहले केंद्र सरकार द्वारा 2009 में पारित ‘शिक्षा के अधिकार (आरटीई)’ कानून में 25 फीसदी सीटें आर्थिक रूप से कमजोर और उपेक्षित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। आठवीं तक के निजी स्कूलों में यह नियम लागू किया गया है।
9- पहले से आरक्षण वाले संस्थानों में भी लागू होगा : मौजूदा कानूनों के तहत एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण निजी संस्थानों पर आंशिक रूप से लागू है। जो संस्थान सरकारी विश्वविद्यालय से संबद्ध होते हैं या किसी भी प्रकार से सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं, उनमें यह कानून लागू है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि जिन निजी संस्थानों में पहले से आरक्षण व्यवस्था लागू है, उनमें यह दस फीसदी आरक्षण भी लागू होगा।
10- मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शैक्षिक संस्थानों में सामान्य वर्ग के ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण लागू करने की रूपरेखा पर काम कर रहा है