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मोहंती के नाम कई काम

-अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति और शासकीय योजनाओं में जनभागीदारी का श्रेय भी उनके नाम
-राजबाडा और छतरियों के सौंदर्यीकरण का काम भी उसी तीन साल में हुआ
-एमवाय अस्पताल में किया गया कायाकल्प

(कीर्ति राणा)

नई सरकार, नए मुख्यमंत्री के साथ नए बने मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की प्रशासनिक सफलताओं में इंदौर कलेक्टरी मील का पत्थर रही है। मध्य प्रदेश के किसी आयएएस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली तो वह इंदौर कलेक्टर के रूप में मोहंती को ही मिली। उन्हीं के कार्यकाल में प्रदेश के सबसे बड़े सात मंजिला अस्पताल में ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ शुरु हुआ। इस अभियान के बाद ही प्रदेश में सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के प्रयास में जनभागीदारी की शुरुआत से तेजी आई और जिलों में रोगी कल्याण समितियों के गठन के माध्यम से ‘बेटर हेल्थ सर्विस’ का मॉडल मोहंती ने तैयार किया जिसे पूरे प्रदेश में लागू किया गया।
करीब तीन साल (22सितंबर 93से 27जून 96 तक) इंदौर कलेक्टर रहते एसआर मोहंती की उपलब्धियों में सबसे महत्वपूर्ण रहा प्रदेश के सबसे बड़े सात मंजिला एमवाय अस्पताल में किया गया कायाकल्प जिसकी विश्व स्तर पर चर्चा रही थी।
स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से बजट कम था, शासन ने एमवायएच के लिए पृथक से फंड भी दिया लेकिन जिस तरह से कायाकल्प के तहत काम होना था वह अधूरा न रह जाए उसके लिए जन सहयोग का रास्ता निकाला गया। इस अभियान से शहर को जोड़ने के लिए इंदौर प्रेस क्लब में शहर के सभी सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों की बैठक आयोजित की गई। लकड़ी पीठा व्यापारी संघ ने मरीजों के सहायकों के बैठने के लिए स्टूल बनाकर देने की, एमटीएच क्लाथ मार्केट ने गद्दे और चादर उपलब्ध कराने की घोषणा की तो किसी संगठन ने टूटे पलंग ठीक कराने का जिम्मा लिया। इंदौर प्रेस क्लब ने भी शहर हित के इस निर्णय में स्थानीय संगठनों और आमजन से आर्थिक सहयोग का आह्वान किया था। तत्कालीन अध्यक्ष शशींद्र जलधारी (नईदुनिया) और सचिव कीर्ति राणा(दैनिक भास्कर)सहित प्रेस क्लब कार्यकारिणी ने कायाकल्प अभियान में साढ़े आठ लाख रु जनसहयोग से जुटाए थे।इंदौर के मीडियाजगत ने भी इस अभियान की प्रगति को हर दिन प्रमुखता से स्थान दिया। इसी कायाकल्प के बाद मोहंती का रोगी कल्याण समिति का कांसेप्ट भी पूरे प्रदेश में लागू किया सरकार ने।शासकीय कार्य में जनभागीदारी के कांसेप्ट का भी ऑपरेशन कायाकल्प मॉडल बना।सरकारी योजनाओं में पेड सर्विस की शुरुआत भी रोगी कल्याण समिति (रोकस/आरकेएस) की चिट्ठी का शुल्क जमा कराने से हुई थी।
🔹एमवायएच में चूहे द्वारा मरीज का अँगूठा कुतरने की घटना और सूरत में फैले प्लेग से चला ऑपरेशन कायाकल्प
तत्कालीन एडीएम सीबी सिंह (अब सेवानिवृत्त) बताते हैं सितंबर 94 में सूरत में प्लेग फैला तो मप्र सरकार ने गुजरात सीमा से सटे सभी जिलों को भी अलर्ट कर दिया। वहां के हीरा कारख़ानों में काम करने वाले मप्र के विभिन्न जिलों के लोग भी अपने घरों को लौट रहे थे।मोहंती साब की चिंता थी कि इंदौर भी कहीं प्लेग की चपेट में न आ जाए। इसी दौरान एडिशनल कलेक्टर शैलेंद्र सिंह (अभी केंद्र में अतिरिक्त सचिव वाणिज्य-उद्योग) के पिताजी एमवायएच में दाखिल थे। कलेक्टर उनकी मिजाजपुर्सी के लिए गए साथ में सीबीसिंह, तत्कालीन एसडीएम सराफा निर्मल उपाध्याय (सेनि) भी थे।इसी दौरान एक मोटा सा चूहा पलंग के नीचे से भागता हुआ निकला। वहीं दाखिल एक मरीज के पैर का अँगूठा चूहे द्वारा कुतरने की घटना भी इन्हीं दिनों में हो चुकी थी। बस मोहंती ने तय किया कि एमवायएच से चूहों का सफ़ाया करना है।अब चुनौती थी अस्पताल में पेस्ट कंट्रोल कराने से लेकर टॉयलेट-बाथरुम और किचन में चूहों के बिल और उनके आने-जाने के रास्ते पैक करने की। इसके लिए पूरा अस्पताल खाली कराना जरूरी था।
रोज शाम के वक्त मोहंती के बंगले पर अभियान को लेकर क्या करें, कैसे करें कि प्लानिंग होती। तत्कालीन उप संचालक जनसंपर्क सुरेश तिवारी को जिम्मा दिया गया ऑपरेशन कायाकल्प के लिए मीडिया को विश्वास में लेने का। लक्ष्मी पेस्ट कंट्रोल वाले संजय करमरकर का कहना था कम से कम तीन दिन के लिए तो एमवायएच के तलघर सहित सातों मंजिल बंद रखना ही पड़ेगी। मरीजों को शिफ्ट करने से लेकर उपचार के लिए निजी अस्पतालों और उनके संगठन आयएमए से बात की गई।इस अभियान के चलते किसी मरीज की उपचार के अभाव में मौत हो जाती तो राज्य सरकार की बदनामी और मोहंती के कैरियर पर दाग लगना तय था। बाकी मरीजों को धार रोड स्थित जिला अस्पताल में शिफ्ट किया गया।फिर शुरु हुआ चूहामार अभियान।शाम को मरे हुए चूहे बड़े ड्रमों में एकत्र किए जाते, अपने किस्म का मप्र में यह पहला ऐसा अभियान था जिसे कवर करने इंटरनेशनल मीडिया का भी आना-जाना लगा रहा।मरे हुए चूहों को पूछ से पकड़े कलेक्टर मोहंती भी खूब सुर्खियों में रहे। ऑपरेशन कायाकल्प शुरु तो किया गया था चूहों के ख़ात्में के लिए लेकिन जब एमवायएच के तलघर में देखा तो वहां टूटे पलंग, कुर्सियों, ट्यूबलाइट, फटे गद्दों आदि का अटाला भरा पड़ा था। ये एक नई चुनौती थी। दो डिप्टी कलेक्टरों गजानन यादव और (साइकल से आने जाने वाले) बीडी हिरवे को शिवाजी प्रतिमा के यहां तैनात किया गया। इनकी ड्यूटी तय की गई कि जो भी खाली ट्रक निकले उसे रोक कर एमवायएच भेजें, यह ट्रक अटाले की एक खेप भरेगा और छोटे( कुश्ती वाले) स्टेडियम में डाल कर आएगा। तलघर से इतना अटाला निकला कि स्टेडियम में कबाड़ का पहाड़ खड़ा हो गया।
🔹राजबाड़ा और आसपास के क्षेत्र के साथ ही छतरियों तक का सौंदर्यीकरण भी
मोहंती के वक्त में ही राजबाड़ा का सौंदर्यीकरण, उस क्षेत्र के मकानों, साइन बोर्ड को एक से रंग में रंगने का अभियान भी चला। शहर में अतिक्रमण विरोधी मुहिम भी तब ही युद्धस्तर पर बिना किसी बड़े विरोध के चली थी। कृष्णपुरा छतरियों के आसपास से दुकानें हटाने, छतरियों का सौंदर्य निखारने का काम भी संभागायुक्त विजयसिंह के निर्देशन में चला।मोहंती के वक्त कृष्णपुरा छतरी पर जिला प्रशासन द्वारा फ़ैशन शो कराए जाने के निर्णय के विरोध में कैलाश विजयवर्गीय ने वेष बदल कर समारोह स्थल पर पहुँच कर हंगामा करने के साथ ही पुलिस इंतजाम को धता बता दी थी ।
पुलिस और रेवेन्यू अधिकारियों में बेहतर तालमेल भी मोहंती के वक्त में ही बना।इंदौर की प्रशासनिक मुस्तैदी का तब यह आलम था कि कलेक्टर दलदल सहित पैदल निकल जाए तो खौफ रहता था।इंदौर में नरेश नारद के बाद एसआर मोहंती ही ऐसे कलेक्टर साबित हुए जो अपने मातहत अधिकारियों की चिंता पालने के साथ ही उनका बुरा न हो यह खयाल भी रखते थे।अपने मातहत स्टॉफ पर भरोसा कर के ही हर चुनौती को सफलता में बदला जा सकता है मोहंती की यही वर्किंग स्टाइल उन्हें प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के रूप में भी श्रेष्ठतम साबित कर सकती है।जैसा मोहंती ने अपने स्टॉफ पर भरोसा किया उससे कहीं अधिक संभागायुक्त विजय सिंह का मोहंती पर भरोसा रहा। राम के चौदह वर्ष, पांडवों के बारह वर्ष वनवास के रहे, प्रदेश में राजनीतिक बदलाव के चलते मोहंती पंद्रह वर्ष वनवास जैसी हालत में रहे, उन्हें इस दौरान जोशी विभाग मिले उसमें न सिर्फ खुद को श्रेष्ठ साबित किया बल्कि वैश्विक स्तर पर सरकार को सम्मान भी दिलाया।उनसे दो वर्ष जूनियर आयएएस को शिवराज सरकार ने सीएस बनाकर एक तरह से उनकी प्रतिभा से नजरें चुकाने का वैसा ही काम किया जैसे तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के वक्त सीएस रहे विजय सिंह तंग आकर केंद्र में जाने को बाध्य हो गए थे।दिग्विजय सिंह के विश्वस्त अधिकारियों में से एक एसआर मोहंती को कमलनाथ ने मुख्य सचिव की उस कुर्सी पर बैठाया है जिस पर कभी उनके प्रशासनिक गुरु विजय सिंह बैठ चुके हैं।

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