क्या नहीं किया अकेले तपन भट्टाचार्य ने, एक आग थी जो कभी ठंडी नहीं पड़ी
– समृति शेष
तपन भट्टाचार्य नहीं रहे, महीने भर से लीवर की परेशानी के बाद से अस्पताल में उपचाररत थे।अभी दो दिन पहले ही अभ्यास मंडल वाले शिवाजी मोहिते ने व्हाट्सएप पर कई ग्रुपों में मैसेज सेंड किया, उनसे जानकारी ली तो बीमारी की गंभीरता के साथ यह भी पता चला कि वे अंतिम सांसे गिन रहे हैं।
करीब चार-पांच दशक से तो परिचय था ही। जब भी देखा कंधे पर झोला, वही दाढ़ी (बाद में बालों के साथ दाढ़ी भी सफेद हो गई) बातों में अपने आसपास की चिंता पर बैचेनी का भाव हमेशा रहता था। नाम तपन था तो हर वक्त एक आग की तपन उनकी बातचीत में भी महसूस होती थी फिर चाहे वो बेतरतीब होते इंदौर की परेशानी बढ़ाने वाला बीआरटीएस हो, बिगड़ता पर्यावरण हो, झाबुआ के आदिवासियों की पानी सहित अन्य परेशानी हो, निजी उद्योगों से लेकर प्रभावी लोगों के प्रति सरकार का उदारमना भाव हो- हर वक्त न सिर्फ चिंता बल्कि यह सुझाव भी कि सरकार को करना यह चाहिए और कर यह रही है।झाबुआ में पानी की समस्या पर जब सरकार ने प्रभावी पहल नहीं की तो खुद ही वहां रम गए, तालाबों की खुदाई से लेकर आदिवासी समाज को ही प्रेरित भी किया कि अपनी परेशानी के लिए हाथ फैलाने से बेहतर है अपने हाथों को ही काम पर लगाया जाए।
शिवराज सरकार के वक्त हर साल होने वाली इंवेस्टर्स समिट उन्हें कोरा नाटक और बड़े घरानों को लाभ पहुँचाने की सरकारी आतुरता लगती थी।जब मप्र सरकार ने बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी को सस्ते में जमीन देने का निर्णय किया तो इस निर्णय को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में चले गए, वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने उनकी तरफ से कोर्ट में केस लड़ा।इसी दौरान जब एक दिन प्रेस क्लब में मुलाकात में पूछ लिया कि तपन भाई लड़ाई कहाँ तक पहुंची? जवाब था मुझे भी पता है कोर्ट हमारी बात को गंभीरता से नहीं लेगा, निर्णय भी पता है लेकिन किसी को तो बोलना पड़ेगा, सरकार को पता चलना चाहिए कि आमजन भी सब समझते हैं।
एक अकेला आदमी भी बहुत कुछ कर सकता है इस बात का वो जीता जागता उदाहरण रहे। कॉलेज में पढ़ाया, एलएलबी कर ली, निर्धन महिलाओं के केस निशुल्क लड़ने लगे महिला न्यायालय में, निराश्रित बच्चों के लिए वर्षों से स्नेहलतागंज में आश्रम संचालित कर रहे थे, सरकार से विज्ञापन नहीं मिलने का रोना रोते रहे लेकिन बच्चों की पत्रिका चिरैया का घोर आर्थिक संकट के बाद भी प्रकाशन जारी रखा।एनजीओ के माध्यम से आदिवासी अंचलों में काम करते रहे।आर्ट एंड कामर्स कॉलेज से डिबेट कांपिटिशन ने तपन भाई को प्रखर वक्ता के रूप में पहचान दिलाई, बाद में वे समाजवादी नेता कल्याण जैन के साथ जुड़ गए। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ लंबी पदयात्रा की, लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। बीते वर्षों में जब आप पार्टी दिल्ली में सत्ता में आई तो इंदौर में आप पार्टी से जुड़ गए।नर्मदा बाँध विरोधी आंदोलन में और किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों का लाभ दिलाने के लिए मेधा पाटकर के आंदोलन में सहयोगी हो गए। हाल ही में एक न्यूज़ पोर्टल प्रदेश वार्ता भी शुरू किया था जिसमें उन्होंने प्रशांत राय चौधरी को संपादक बनाया था।तपन भाई के निधन का मतलब है इंदौर शहर से एक जागरुक और चिंतनशील व्यक्ति का कम हो जाना।
(कीर्ति राणा)