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रेडियो पर सुनते सुनते उदघोषिका के प्रेम में दीवाना हो गया….


– रेडियो सखी ममता सिंह ने इश्क़ में दीवाने हुए पटना के श्रोता को पुलिस की मदद से घर भेजा

(कीर्ति राणा)

रेडियो उदघोषिका को प्रेम पत्र लिखने से लेकर एकतरफ़ा प्रेम करने वाले कुछ प्रेमी दर्शकों को उदघोषिका पत्र का जवाब न भी दें तो ये पागल प्रेमी ‘छायागीत’ कार्यक्रम को सुनते हुए मान लेते हैं कि महिला एनाउंसर जो कुछ कह रही हैं ये उनके पत्र का ही जवाब है।एक दर्शक की दीवानगी ऐसी कि बंदा रेडियो लेकर आकाशवाणी के मुंबई केंद्र के बाहर धरना देकर ही बैठ गया, अंतत: पुलिस की मदद से उसे वहां से हटवाना पड़ा।
विविधभारती की लोकप्रिय उदघोषिकाओं में ममता सिंह का नाम जाना पहचाना है। महिलाओं के लिए दोपहर में जो सखी सहेली कार्यक्रम आता है इसके नियमित श्रोता तो उन्हें रेडियो सखी के नाम से जानते हैं।टीवी एंकर का चेहरा तो फिर भी प्रसारित होने वाले कार्यक्रम में नजर आ जाता है लेकिन रेडियो के उदघोषक अपनी जादू भरी आवाज के दम पर ही दर्शकों के दिलोदिमाग़ पर छाए रहते हैं। आवाज के दीवाने ये श्रोता अचानक रेडियो ऑन करें तो उदघोषक की आवाज सुनकर ही उसका नाम तक बता सकते हैं।
रेडियो सखी ममता सिंह सुपरिचित कहानीकार भी हैं, जब वे विविधभारती पर छाया गीत या अन्य कार्यक्रम पेश करती हैं तो अपने अंदाज में गीत की व्याख्या या श्रोताओं की भावना व्यक्त करते वक्त कहानीकार के नाते आवाज में दर्द,खुशी, कशिश, जुदाई की पीड़ा सब कुछ अपनी अावाज के माध्यम से व्यक्त करती रहती हैं। इस अंदाज पर कई श्रोता ऐसे सम्मोहित हो जाते हैं कि उन्हें देखे-मिले-समझें बिना एक तरफ़ा इश्क़ में डूब जाते हैं, प्रेम भरे पत्र लिखते हैं और इंतजार के बाद भी जब उन्हें प्रेम पत्र का जवाब नहीं मिलता तो छाया गीत सुनते वक्त यही मान कर चलते हैं कि उदघोषक जो कुछ कह रही है यह उनके प्रेम पत्र का जवाब ही तो है।
इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल में आईं रेडियो सखी ममता सिंह लव एट वन साइट में डूबे ऐसे श्रोताओं के किस्से सुनाते हुए बता रही थीं कि कुछ श्रोता तो लगातार प्रेम पत्र लिखते हैं छायागीत सुन कर उन्हें ऐसा लगता है कि ये प्रेम की बातें उन्हीं के लिए कही जा रही है। पटना से आए एक श्रोता महाशय तो विविधभारती के सामने रेडियो लेकर बैठे रहते थे। ऑफिस आने-जाने वालों को रोक रोक कहते मुझे ममता सिंह से मिलवा दो, उनसे मेरी शादी पक्की हो गई है।तीन-चार दिन बाद भी वो जब नहीं हटे तो मैंने उन्हें मिलने के लिए बुलवा लिया। उन्हें चाय के लिए पूछा, कहने लगे मुझे तो आप से शादी करना है।मैंने उन्हें यूनुस जी से मिलवाया कि ये मेरे पति हैं, मेरी शादी हो चुकी है। वो समझने को राजी ही नहीं थे, उनकी एक ही जिद थी कहने लगे ममता जी छायागीत में आप जो लिखती-बोलती हैं वो सब मेरे लिए ही तो लिखती हैं। जैसे-तैसे उन्हें ऑफिस से विदा किया लेकिन वो बाहर सड़क किनारे डेरा जमाए रहे, अंतत: एक दिन केंद्र निदेशक को लिखित अनुरोध किया, पुलिस की मदद ली और समझा-बुझाकर उन्हें पटना रवाना किया ।

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