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बैकफुट पर जा रही मोदी सरकार के लिए रामबाण साबित हो सकती है किसान कर्जमाफी

तीन राज्यों में कांग्रेस के हाथ हार का सामना करने के बाद डैमेज कंट्रोल में आई मोदी सरकार अब लोकसभा चुनावों में किसी नुकसान को रोकने के लिए किसानों के लिए बड़े ऐलान की तैयारी कर रही है. रॉयटर ने सूत्रों के मुताबिक दावा किया है कि मोदी सरकार बहुत जल्द देश में किसानों के लिए एक बड़ी कर्जमाफी का ऐलान कर सकते हैं.

केन्द्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक मोदी सरकार एक बार फिर चुनाव में हार के लिए ग्रामीण इलाकों को बड़ी वजह मानते हुए लोकसभा चुनाव से पहले किसानों को खुश करने के लिए करोड़ों रुपये के कर्ज को माफ करने के लिए सरकारी तिजोरी का मुंह खोल सकती है.

यूपी में हिट हुआ था किसान कर्जमाफी का फॉर्मूला

दरअसल 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से किसान कर्जमाफी राजनीति में चुनाव जीतने का सबसे अहम जरिया बन चुका है. देश के ग्रामीण इलाकों में लहर के साथ सत्ता पर बैठने वाली बीजेपी सरकार ने कर्जमाफी का पहला टेस्ट उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान किया. उत्तर प्रदेश चुनाव के प्रचार में जब कांग्रेस ने राहुल के नेतृत्व में किसान यात्रा शुरू की तब चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाजी पलटने के लिए किसान कर्जमाफी का ऐलान कर दिया. इसका असर चुनाव नतीजों पर दिखा और यूपी में पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार बन गई.

यूपी में बीजेपी को मिले इस अप्रत्याशित समर्थन के बाद कांग्रेस ने दावा करते हुए किसानों की कर्जमाफी का श्रेय राहुल गांधी को दे दिया. कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी की कोशिशों के चलते प्रधानमंत्री कर्जमाफी करने के लिए मजबूर हो गए. वादे के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कमान संभालते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने पहली कैबिनेट बैठक में पीएम का वादा पूरा किया और किसानों के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की आंशिक कर्जमाफी का ऐलान कर दिया.

कर्जमाफी की मांग से पैदा हुआ आर्थिक संकट

इस ऐलान के तुरंत बाद देश के अन्य राज्यों ने भी किसानों के लिए कर्जमाफी की मांग तेज कर दी. पूरे देश से किसान कर्जमाफी की मांग उठते ही केन्द्रीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुखों ने इस मांग को गलत ठहराते हुए दावा किया कि किसानों की कर्जमाफी से बैंकिंग व्यवस्था को चोट पहुंचती है, लिहाजा केन्द्र सरकार को कर्जमाफी के इतर किसानों को फायदा पहुंचाने का काम करना होगा.

किसानों की कर्जमाफी पर RBI का रुख

किसान कर्ज माफी का विरोध करने वालों में रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल समेत डिप्टी गवर्नर एस.एस. मूंदड़ा भी शामिल थे. कर्जमाफी का विरोध करते हुए मूंदड़ा ने कहा था कि इससे कर्ज लेने और देने वाले के बीच अनुशासन बिगड़ता है. हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया था कि यह रिजर्व बैंक का रुख नहीं बल्कि उनका निजी रुख है. बहरहाल, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी कर्जमाफी के जरिए राजनीति सफल करने को ‘नैतिक रूप से गलत’ मानते थे.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का किसानों की कर्जमाफी पर रुख

देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की 2017 में चेयरपर्सन रहीं अरुंधति भट्टाचार्य ने भी किसान कर्जमाफी पर आपत्ति जताई थी. भट्टाचार्य ने भी इससे बैंकिंग अनुशासन बिगड़ने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि कर्ज लेने वाले कर्ज चुकाने के बजाय अगले चुनाव का इंतजार करेंगे. हालांकि इसके बाद कांग्रेस नेताओं ने नरीमन प्वाइंट स्थित एसबीआई के मुख्यालय में प्रदर्शन किया था.

2009 में यूपीए ने भी मारी थी बाजी

लोकसभा चुनाव 2009 में सत्तारूढ़ कांग्रेस (यूपीए गठबंधन) एक मेगा किसान कर्जमाफी डील के जरिए सत्ता में कायम रहा. 2008 में हुई 52,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी के जरिए देश में एक बार फिर यूपीए सरकार बनी. हालांकि पांच साल बाद 2014 के हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने भ्रष्टाचार और ग्रामीण इलाकों को विकास के रास्ते से जोड़ने के मुद्दे पर सत्ता कांग्रेस से छीन ली. लेकिन जिस तरह बीजेपी सरकार ने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस समेत विपक्ष को रोकने के लिए किसान कर्जमाफी को मुद्दा बनाया और फिर कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु समेत सभी राज्य किसान कर्जमाफी को चुनाव जीतने का जरिया बनाने लगे.

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने प्रचार के दौरान गंगाजल के साथ कमस खाने का दावा किया कि राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के बाद वह पहला फैसला किसानों की कर्जमाफी का करेंगे. इस दबाव के चलते अब मोदी सरकार 6 महीने से कम समय में होने वाले लोकसभा चुनाव में किसी नुकसान से बचने के लिए एक बड़े कर्जमाफी की तैयारी शुरू कर दी है.

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