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सर्वे की बाढ़ के बाद भी असमंजस का पहाड़ !
– न्यूज चैनलों के सर्वे भी बंटे हुए, कुछ बीजेपी तो बाकी कांग्रेस के साथ– ये बढ़ा हुआ मतदान कर रहा है दोनों दलों को हैरान-परेशान( कीर्ति राणा ,इंदौर)इस बार के चुनाव और मतदान के बाद हाल ही में आए विभ्निन्न न्यूज चैनलों के सर्वे ने दोनों दलों को चकरघिन्नी कर रखा है। शुक्रवार की शाम से विभिन्न न्यूज चैनल के जो सर्वे और पैनल में शामिल राजनीति के जानकारों के जो विश्लेषण आना शुरु हुए हैं उनसे भी कोई स्पष्ट संकेत न मिलने से चुनावी रणनीतिकार से लेकर चुनाव लड़ने वाले भी सीना ठोक कर यह दावा नहीं कर पा रहे हैं कि हमारी ही सरकार बनेगी।सीटों के इस संभावित संग्राम के बीच जहां कांग्रेस के मिजाज अभी से सरकार में आने जैसे हो गए हैं वहीं भाजपा की चौथी बार सरकार के रणनीतिकार शिवराज सिंह चौहान छुट्टी मनाने, साधना भाभी के साथ पराठे बनाने में व्यस्त हैं। यह सोचने वाली बात है कि सीएम परिवार गया तो निजी यात्रा पर है लेकिन जिस तरह से उनकी मार्निंग वॉक से लेकर खाना बनाने तक के फोटो वॉयरल हो रहे हैं वो इस बात का संकेत है कि या तो सीएम परिवार ने ही ऐसे फोटोशूट की मौखिक मंजूरी दे रखी है या वीआयपी होने के बाद कुछ पल एकांत में बिताना भी संभव नहीं।एग्जिट पोल के नतीजों में कहीं भाजपा तो किसी चैनल ने कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना दिखाई है।भाजपा जहां इन पोल पर भरोसा नहीं कर रही वहीं सीएम ने भी एग्जिट पोल के नतीजों को नकारते हुए कह दिया है कि सबसे बड़े सर्वेयर तो वे खुद ही हैं। चौहान की बात में वजन भी है, नर्मदा परिक्रमा से लेकर जन आशीर्वाद यात्रा सहित ऐसा कोई मौका नहीं रहा जब सीएम सीधे पब्लिक कनेक्ट मोड में न रहे हों। यह भी कहा जा सकता है कि वे हर दिन, हर वक्त एक्टिव मोड में रहे हैं। उनका यह सक्रिय होना सिंहस्थ-16 के एक माह जैसा रहा है। उस अवधि में पूरे एक महीने सीएम सपत्नीक उज्जैन में ही जम गए थे। मप्र के किसी हिस्से में जाना भी होता था तो शाम को वापस उज्जैन आ ही जाते थे। अभी जब प्रदेश में चुनावी सरगर्मी शुरु हुई तब से वे प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सभा-सम्मेलन-समारोह-सुख-दुख के प्रसंगों में शामिल होकर भोपाल लौट आते थे। यही कारण रहा कि एग्जिट पोल के तमाम सर्वे-परिणाम को नकारते हुए वे खुद को सबसे बड़ा सर्वेयर कह रहे हैं।देखा जाए तो यह विधानसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशियों ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही लड़ा है।प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित अन्य केंद्रीय नेताओं की सभा हुई जरूर लेकिन इन नेताओं के भाषणों में मप्र के मुद्दे गायब रहे, हर जगह इन नेताओं के भाषण अहसास कराते रहे कि ये सभी विधानसभा चुनाव मैदान पर लोकसभा चुनाव के लिए भाषणों के बीच बोने आए थे। मप्र में भाजपा ने शिवराज सिंह के भरोसे पर ही चुनाव लड़ा है, भाजपा के पक्ष वाल् सर्वे के नतीजे यदि हकीकत में तब्दील हो जाते हैं और चौथी बार सरकार बन जाती है तो यह मोदी-शाह के व्यक्तित्व से ज्यादा शिवराज की मेहनत का जादू ही होगा। भाजपा यदि सत्ता से वंचित रह जाती है तो केंद्र के नायकों को शिवराज को दोषी मानना आसान हो जाएगा।उनकी खामियों में यह मुद्दा भी जुड़ जाएगा कि वे भाजपा के बागियों को मनाने-बैठाने में नाकामयाब रहे और उन्हीं की गलत बयानी के कारण सपॉक्स जैसा संगठन राजनीतिक दल में तब्दील हो गया । पिछले दो चुनाव (2008, 2013) में हर बार बढ़कर हुए मतदान, गत दो चुनाव की अपेक्षा इस बार और अधिक हुए मतदान को अपने पक्ष में बताने वाली भाजपा को इस चुनाव में यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इस बार दो नए दल आम आदमी पार्टी, सपॉक्स के साथ ही बसपा, सपा ने भी लगभग सभी सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे जबकि पिछले चुनाव में इनमें से दो दल तो अस्तित्व में ही नहीं थे, बाकी दल भी पूरे प्रदेश में अपने प्रत्याशी लड़ाने की स्थिति में नहीं थे।इस चुनाव में दमदारी से अंत तक मैदान में रहे भाजपा के कट्टर बागियों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। यदि कांग्रेस की सरकार बनने में टेके की जरुरत पड़ी और इन बागियों, सपॉक्स आदि के कुछ लोग जीतते हैं तो ये सब पंजा पकड़ने में देर नहीं करेंगे। यही नहीं इस बार के चुनाव में किसानों का असंतोष, बेरोजगारी से हताश युवा वर्ग, सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु को 60 से बढ़ाकर 62 करने, शासकीय कर्मचारियों को सांतवें वेतनमान का पूरा एरियर देने की घोषणा में संशोधन कर 50 प्रतिशत राशि नकद और 50 प्रतिशत खाते में जोड़ने, संविदाकर्मियों के हित में घोषणा न करने जैसे निर्णय हार के प्रमुख कारण बन कर उभरेंगे।भाजपा यदि हारती है तो उसका कारण कांग्रेस का मजबूती से चुनाव लड़ना नहीं बल्कि भाजपा और आम जनता के बीच चुनाव होना माना जाएगा। जनता ने भाजपा से नाराजी की पतंग को ऊंचा पहुंचाया और कांग्रेस नें पेंच लड़ाने के लिए उड़ती पतंग की डोर थाम ली।कांग्रेस यदि बहुमत पाने की स्थिति में पहुंचती है तो सबसे बड़ा कारण होगा चुनाव से पहले सीएम फेस के रूप में किसी नेता का नाम घोषित नहीं करना। कमलनाथ को अध्यक्ष और ज्योतिरादित्य को चुनाव समिति अध्यक्ष बनाने के साथ ही अन्य क्षत्रपों को उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में कार्यकारी अध्यक्ष, कार्यकारी जिला एवं ऐसे ही चार-छह कार्यकारी शहर अध्यक्ष बनाने की रणनीति कारगर साबित होना रहेगी। इस नीति के चलते ही हर बड़ा नेता और उसके क्षेत्रीय समर्थक अपने अपने क्षेत्र में कांग्रेस के लिए जी जान से भिड़े नजर आए। बीते चुनाव 2013 चुनाव में इंदौर सहित कई अन्य क्षेत्रों में कांग्रेस के झंडे. कांग्रेस के पोलिंग एजेंट तक नजर नहीं आए थे लेकिन इस बार ऐसी दयनीय स्थिति कहीं नजर नहीं आई, यही नहीं मुस्लिम बहुल इलाकों में दोपहर बाद जिस युद्धस्तर पर मतदान के लिए यह वर्ग वोट डालने उमड़ा वह भाजपा के लिए भी चौंकाने वाला था।खुद भाजपा के नेता दबी जुबान से स्वीकारते नजर आए कि इस बार कांग्रेस चुनाव लड़ने के मूड में और पहले दिन से अाज तक आक्रामक तेवर में ही है।कांग्रेस के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सरकार बनने को लेकर आश्वस्त हैं लेकिन यह कहने से नहीं चूकते कि राहुल गांधी का मप्र के विभिन्न क्षेत्रों में मतदान के पहले दौरा-रोड शो आदि हो जाते तो परिणाम और अधिक उत्साहवर्द्धक हो जाते। हालांकि इस बार के चुनाव में मैदानी मेहनत के मामले में सिंधिया नंबर वन पर और जीत के लिए रणनीति बनाने में कमलनाथ की टीम नंबर वन पर रही है।कांग्रेस बहुमत के दावे पर खरी साबित होती है तो सीएम बनने के चांसेस कमलनाथ के ही रहेंगे, हांलाकि महेश जोशी पिछले दिनों अवंतिका से चर्चा में कोई तीसरा भी हो सकता है जैसे संकेत भी दे चुके हैं।भाजपा के पास प्रचार के नाम पर शिवराज के राम से अधिक बंठाधार के रूप में हर भाषण में दिग्विजय सिंह का नाम जुबान पर रहा है। संभवत: कांग्रेस को भाजपा की यह चुनावी रणनीति पता चल हई थी कि दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की बिजली-पानी-सड़क जैसी विफलता याद दिलाकर वह मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकती है इसीलिए कांग्रेस आलाकमान ने दिग्विजय सिंह को चुनाव के दौरान पर्दे के पीछे कर दिया था लेकिन इस हकीकत से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ज्योतिरादित्य और कमलनाथ के मुकाबले दिग्गी राजा आज भी पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं से जुड़े रहने वाले जन नेता हैं और नर्मदा परिक्रमा के रूप में वे करीब 150 सीटों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जगाने, एकता यात्रा में हर जिले में कार्यकर्ताओं से वन टू वन मिलने और उनकी बात सुनने के लिए घंटों मंच पर खड़े रहने का संयम दिखाकर कार्यकर्ताओं में अभी नहीं तो कभी नहीं का जोश भरने में कामयाब रहे थे।दावे करने वाले हटते जा रहे हैं पीछेइस बार के चुनाव, भारी मतदान, मतदाताओं के मूड को लेकर कोई नेता, जानकार ठोस दावा करने की स्थिति में नहीं है। 11 तारीख दूर नहीं लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा कोई नहीं कह सकता। उहापोह की स्थिति का अंदाज इसी से लग सकता है कि चौथी बार सरकार बनने का दावा करने वाले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष-सांसद प्रभात झा दो सौ पार के नारे को कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का टोटका बता चुके हैं। राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की बॉडी लैंग्वेज मतदान संपन्न होने के बाद मीडिया से चर्चा में 150 सीटें आराम से मिल जाएंगी कहने वाली थी, अब वो ही 140 सीटें मिलने का दावा करने लगे हैं। बुधनी में जहां भाजपा अरुण यादव को पहले दिन से बलि का बकरा बनाना कह रही थी अब वही नेका कह रहे हैं बुधनी में टफ फाइट हो गई थी।इंदौर की जिस तीन नंबर सीट पर पूरे प्रदेश की नजर लगी हुई है वहां पहले आकाश विजयवर्गीय की पचास हजार से जीत के दावे किए जा रहे थे। अब कैलाश विजयवर्गीय ही कहते नजर आ रहे हैं कि इंदौर विधानसभा-3 हम बड़े अंतर से जीतने जा रहे हैं। हमारी जीत का अंतर 15 हजार से ज्यादा होगा। यही नहीं जिस विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो से गत चुनाव में रमेश मेंदोला ने प्रदेश में सर्वाधिक मतों (91017) से जीत का रिकार्ड बनाया था और इस बार ‘दादा दयालु-दो लाख पार’ का नारा लग रहा था। वही मेंदोला पिछली बार जितने मतों से जीत जाए यह संभावना कम ही नजर आकी है। यदि वे गत बार के मुकाबले इस बार कम अंतर से जीतते हैं तो उनकी जीत से ज्यादा कांग्रेस प्रत्याशी मोहन सेंगर के दमदारी से चुनाव लड़ने की चर्चा रहेगी और यदि राज्य में कांग्रेस की सरकार बन जाती है तो दो नंबर में विजयवर्गीय-मेंदोला के किले को ध्वस्त करने के लिए मोहन सेंगर को खास जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है।ये तो फोटो वाली रोटी है…..!छुट्टी मनाने बांधवगढ़ गए शिवराज मार्निंग वॉक पर जाएं और लोग उन्हें घेर कर सेल्फी लेने लगें तो समझ आता है कि लोगों की नजर पड़ गई होगी। लेकिन जब शिव-साधना मिलकर पराठें बना रहे हों उस नितांत पारिवारिक। वक्त के फोटो भी वॉयरल हो जाएं तो मान कर चलना चाहिए कि या तो चौहान दंपत्ति पोज देने के लिए खाना बनाने की एक्शन कर रहे हैं या मीडिया वाले उन्हें छुट्टी भी आराम से नहीं मनाने देना चाहते।