पढ़ें- पनामा पेपर्स मामले में कैसे बेटी-दामाद के साथ सलाखों के पीछे पहुंच गए नवाज शरीफ
इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनकी बेटी मरियम नवाज शरीफ और दामाद की सजा रद्द कर दी है. एवेनफील्ड प्रोपर्टीज केस में दोषी ठहराए जाने के बाद पाकिस्तान के आम चुनाव से पहले नवाज शरीफ और उनके परिवार को जेल भेजा गया था.
साल 2016 की शुरुआत में अमेरिका स्थित खोजी पत्रकारों के संघ आईसीआईजे ने एक बड़ा खुलासा किया था. इसमें बताया गया कि कई देश टैक्स हेवेन बने हुए हैं और तमाम देशों के राजनेता और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियां यहां पैसा निवेश कर टैक्स बचा रही हैं. इसमें नवाज शरीफ का परिवार भी फंसा और उन्हें पीएम पद की कुर्सी तक गंवानी पड़ी.
आरोपों के घेरे में शरीफ परिवार
पनामा पेपर लीक्स के बाद शरीफ का परिवार भी आरोपों के घेरे में आ गया. यह मुकदमा 1990 के दशक में शरीफ की ओर से मनी लॉन्ड्रिंग कर लंदन में संपत्ति खरीदने का है. शरीफ उस दौरान दो बार प्रधानमंत्री रहे थे. पनामा पेपर्स के मुताबिक नवाज शरीफ की बेटी मरियम और बेटों- हसन और हुसैन की विदेश में कंपनियां थीं. कंपनियों के जरिए कई लेनदेन हुए थे. नवाज शरीफ और उनके परिवार ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को खारिज किया और कुछ भी गलत करने से इनकार किया.
मामला आखिरकार कोर्ट में पहुंचा. पाकिस्तान की एक अकाउंटबिलिटी कोर्ट ने भ्रष्टाचार मामले में नवाज शरीफ को 10 साल और उनकी बेटी मरियम को सात साल की सजा सुनाई. अकाउंटबिलिटी कोर्ट प्रथम के जज मोहम्मद बशीर ने नवाज शरीफ पर करीब 73 करोड़ रुपए (80 लाख पाउंड) और मरियम पर 18 करोड़ 24 लाख रुपए (20 लाख पाउंड) का जुर्माना भी लगाया.
इसके अलावा नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन (रिटायर्ड) सफदर को एक साल की सजा सुनाई गई. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके परिवार के खिलाफ यह फैसला 25 जुलाई को होने वाले आम चुनाव से पहले आया. फिर इन्हें जेल में डाल दिया गया. इसी मामले में पिछले साल मरियम नवाज को गिरफ्तार भी किया गया था. अक्टूबर 2017 में लंदन से इस्लामाबाद पहुंचने पर एनएबी की टीम ने मरियम और उनके पति मुहम्मद सफदर को हिरासत में ले लिया था. हालांकि बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी.
क्या था इन खुलासों में?
पनामा पेपर लीक्स की रिपोर्ट में कहा गया कि टैक्स सेविंग फर्म्स जो सेवाएं उपलब्ध कराती हैं, वे बेशक पूरी तरह कानूनी हैं लेकिन ये दस्तावेज दिखाते हैं कि बैंकों, लॉ फर्म्स और ऐसी ही अन्य एजेंसियों ने सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया. कई मामलों में पाया गया है कि इन मध्यस्थों ने अपने क्लाइंट्स के संदिग्ध लेनदेनों को या तो छिपाया या ऑफिशल रेकॉर्ड्स के छेड़छाड़ कर उन्हें सामने नहीं आने दिया.