दिल्ली के कैंसर अस्पताल में 80% बेड दिल्लीवालों के लिए रिजर्व
अच्छे और सस्ते इलाज का सपना लेकर दिल्ली के आस-पास के राज्यों के मरीज अक्सर दिल्ली में आ जाते हैं. लेकिन दिल्ली सरकार अब ऐसे लोगों पर बंदिशें लगाने जा रही है. दरअसल, दिल्ली सरकार के दो फरमानों से अब लोग नाराज़ दिख रहे हैं. एक तरफ सरकार ने दिल्ली के कैंसर हॉस्पिटल की 80 फीसदी सीटें दिल्ली वालों के लिए रिजर्व कर दी. तो दूसरी तरफ 10 सितंबर से दिल्ली के GTB हॉस्पिटल में बाहरी राज्यों के साथ भेदभाव होगा. बाहर के लोगों को मुफ्त दवा और मुफ्त टेस्ट की सुविधा पर रोक लगा दी जाएगी. सरकार चाहती है कि अस्पताल में दिल्ली वालों को बेहतर सुविधा मिले और बाहर के राज्यों के लोग कम से कम आए.
‘इंडिया टुडे’ के हाथ एक्सक्लूसिव कॉपी लगी है, जिसमें 10 सितंबर से निम्नलिखित काम करने के आदेश दिए गए हैं.
-बाहर के मरीज दूर से ही पहचाने जा सकें. इसके लिए ओपीडी कार्ड का रंग बदला जाएगा. दिल्ली के मरीजों का ओपीडी कार्ड सफेद रंग का होगा जबकि बाहर के मरीजों का ओपीडी कार्ड नीले रंग का होगा.
-ओपीडी कार्ड बनवाने के लिए दिल्ली का वोटर कार्ड साथ लेकर आना होगा. अगर नाबालिक हैं तो राशन कार्ड या मार्कशीट लेकर आना होगा.
-बाहर के मरीजों का इलाज तभी होगा, जब उनके राज्य की अस्पताल ने दिल्ली के लिए रेफर किया होगा.
-बाहर के लोगों के ब्लड और यूरीन टेस्ट के अलावा किसी भी तरह की टेस्ट नहीं किए जाएंगे. अल्ट्रासाउंड, सिटी स्कैन एक्सरे जैसे टेस्ट नहीं किए जाएंगे.
-दिल्ली के बाहर के मरीजों को ओपीडी की दवा फ्री में नहीं दी जाएगी.
इतना ही नहीं बुधवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के कैंसर अस्पताल में एक ऐसी घोषणा की, जिसे दिल्ली के बाहर का कोई भी व्यक्ति पसंद नहीं करेगा. केजरीवाल ने दिल्ली के कैंसर हॉस्पिटल की 80 फ़ीसदी सीटें यानी बेड दिल्ली के लोगों के लिए रिज़र्व करने का आदेश दिया.
जीटीबी हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट कुमार कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर अस्पताल दिल्ली के बॉर्डर पर है. ऐसे में यहां पर रोजाना 8 हजार मरीज का OPD कार्ड बनता है. जबकि अस्पताल के पास इतने रिसोर्सेज नहीं है. 40 पर्सेंट लोग दिल्ली के बाहर के यहां पर इलाज कराने आते हैं. ऐसे में दिल्ली वालों को बेहतर इलाज मिले इसलिए हम ये स्कीम ला रहे हैं. इस अस्पताल में तकरीबन 15,00 बेड हैं.
वहीं अस्पताल में इलाज कराने आए लोगों से बात की तो ज़्यादातर लोगों ने इसी स्कीम का विरोध किया । बागपत से अपनी पत्नी का इलाज कराने आए राकेश कहते हैं कि दिल्ली तो सबकी है, केजरीवाल जी ने ऐसा कदम क्यों उठाया समझ नहीं आ रहा, बागपत में कोई अच्छा अस्पताल नहीं है इसलिए हम दिल्ली इलाज कराने आते हैं.
वहीं गाजियाबाद से आए हरेंद्र बताते हैं कि दिल्ली की मेडिकल फैसिलिटी का इस्तेमाल तो बहुत पहले से किया जा रहा है. कई सरकारें आईं किसी ने रोक नहीं लगाई, फिर अब क्यों. हरेन्द्र बीते 3 साल से अपनी मां का इलाज यहां करा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में रहने वाली 55 साल की अमीना बेगम केजरीवाल के इस आदेश से बेहद दुखी है. अमीना को कैंसर है और उनका इलाज दिल्ली के कैंसर अस्पताल में बीते दो सालों से चल रहा है. वो कहती है कि मुरादाबाद और आस-पास कोई भी अच्छा कैंसर का अस्पताल नहीं है. इसलिए मजबूरी में दिल्ली में इलाज करा रही हैं. लेकिन अब यहां भी इलाज मुश्किल हो जाएगा.
सोशल एक्टिविस्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं कि ये फैसला संविधान के खिलाफ है. सरकारें इलाज के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं कर सकती है. अशोक अग्रवाल इस मामले को हाईकोर्ट में चैलेंज करने की भी बात कह रहे हैं.
वहीं दिल्ली BJP के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी केजरीवाल के फैसले के खिलाफ नज़र आ रहे हैं. मनोज तिवारी ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इलाज के नाम पर भेदभाव किया जा रहा है. केजरीवाल खुद दिल्ली के बाहर के हैं. यूपी और बिहार के लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. इससे पता चलता है कि अरविंद केजरीवाल दिमागी रूप से बीमार हैं.